जलवायु

जलवायु परिवर्तन: 2080 तक पक्षियों की प्रजातियों में आएंगे भारी बदलाव

शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर कुल 8,768 पक्षी प्रजातियों का मूल्यांकन कर यह अनुमान लगाया कि क्षेत्रीय आधार पर कितने वंशों का नुकसान हो सकता है तथा ये जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कैसे करती हैं

Dayanidhi

जैव वैज्ञानिकों ने अपने नवीनतम शोध में पूर्वानुमान लगाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2080 तक दुनिया भर के पक्षियों में भारी बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि मुख्यतः उनकी सीमाओं में होने वाले बदलाव के कारण ऐसा हो सकता है।

यह अध्ययन यूके की डरहम यूनिवर्सिटी और जर्मनी के सेन किनबर्ग बायोडायवर्सिटी एंड क्लाइमेट रिसर्च सेंटर के जैव वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया है।

वर्ष 2080 तक पक्षी समुदायों के बारे में अनुमान लगाने के लिए, वैज्ञानिकों की टीम ने पिछले पक्षी वितरण को जलवायु के आंकड़ों से जोड़ा है और फिर इन संबंधों को भविष्य के दो जलवायु परिदृश्यों पर लागू किया। पहला निम्न और मध्यम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर आधारित है तथा दूसरा प्रजातियों के वितरण में परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाने के लिए था।

टीम ने न केवल क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या में बदलाव देखा, बल्कि प्रजातियों के प्रकारों पर भी गौर किया। प्रजातियों के प्रकारों में बदलावों को संक्षेप में प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने फाइलोजेनेटिक विविधता नामक कुछ की गणना की जो बताती है कि कितने अलग-अलग प्रकार के पक्षी होंगे।

उदाहरण के लिए, एक समुदाय जिसमें बहुत अधिक निकटता से संबंधित प्रजातियां थीं, जैसे कि कीट-खाने वाले सॉन्गबर्ड्स, एक समुदाय की तुलना में बहुत कम वंशावली या फाईलोजेनेटिक विविधता स्कोर होगा जिसमें अधिक दूर से संबंधित प्रजातियों का मिश्रण शामिल होता है, उदाहरण के लिए सॉन्गबर्ड्स और अन्य प्रजातियां जैसे शिकार किए जाने वाले पक्षी, तीतर या सीगल।

यहां बताते चलें कि फाइलोजेनेटिक्स या वंशावली जीव विज्ञान में, जीवों के समूहों के बीच या उसके भीतर विकासवादी इतिहास और संबंधों का अध्ययन है।

उन्होंने पता लगाया कि भविष्य में दुनिया भर में पक्षियों के समुदाय कैसे बदल सकते हैं और पता चला कि जलवायु परिवर्तन न केवल प्रजातियों की संख्या को प्रभावित करेगा बल्कि फाइलोजेनेटिक विविधता और सामुदायिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।

पक्षी प्रजातियों के उदाहरण जो वर्तमान में यूके में फाईलोजेनेटिक विविधता में वृद्धि कर रहे हैं। संभवतः जो बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन से प्रेरित हैं, उनमें यूरोपीय मधुमक्खी खाने वाले, एक प्रकार के कीट-खाने वाले पक्षी, काले पंखों वाले स्टिल्ट और स्पूनबिल शामिल हैं। जो सभी सामान्य रूप से आगे दक्षिण यूरोप में प्रजनन करते हैं। लेकिन अब कभी-कभी ये ब्रिटेन में भी प्रजनन करते हैं।

मधुमक्खी खाने वाले केवल अन्य वर्तमान यूके में प्रजनन करने वाले पक्षी प्रजातियों के दूर के रिश्तेदार हैं। इसी तरह, हाल के वर्षों में नई प्रजनन करने वाली प्रजातियों जैसे कि स्पूनबिल्स और ब्लैक-विंग्ड स्टिल्ट्स ने यूके में पक्षियों की फाइटोलैनेटिक विविधता को बढ़ाया है।

शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर कुल 8,768 पक्षी प्रजातियों के आंकड़ों का मूल्यांकन किया ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि क्षेत्रीय आधार पर कितने अलग-अलग वंशों का नुकसान हो सकता है, या ये बढ़ सकते हैं, क्योंकि प्रजातियां अपने वितरण को बदलकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करती हैं।

हालांकि शोधकर्ताओं का अनुमान है कि प्रजातियों के नुकसान उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे आम हैं, दुनिया भर में प्रजातियों के समुदायों के फाइलोजेनेटिक पुनर्गठन होने की उम्मीद है।

अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि स्थानीय फाईलोजेनेटिक विविधता का संरक्षण पर्यावरणीय परिवर्तनों के लिए जैविक विविधता के लचीलेपन के लिए अहम हो सकता है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. अल्के वोस्कैम्प ने कहा कि अध्ययन में, हमने दुनिया भर में स्थलीय पक्षियों के क्षेत्रीय वितरण पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का पता लगाया है। प्रजातियों की समृद्धि के साथ-साथ फाईलोजेनेटिक विविधता के विभिन्न पहलुओं पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी गौर किया गया था। मुख्य रूप से प्रजातियां कितनी बारीकी से एक दूसरे से संबंधित हैं। वोस्कैम्प, सेनकेनबर्ग जैव विविधता और जलवायु अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता हैं।

डरहम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता स्टीफन विलिस ने कहा वंश की विविधता अक्सर प्रजातियों के गुणों की विविधता से संबंधित होती है और इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में उनकी भूमिकाओं और कार्यों से संबंधित होती है। उदाहरण के लिए,अधिक दूर वाले रिश्तेदारों की प्रजातियों के वंश में अक्सर अलग-अलग तरह की चोंच होती हैं, इसलिए वे विभिन्न प्रकार के भोजन खाते हैं।

परिवर्तन का अर्थ है कि पारिस्थितिक तंत्र कार्य जो पक्षी किसी क्षेत्र में करते हैं, भविष्य में भी बदल सकते हैं, खासकर खाद्य जाल, बीज के फैलाव और पौधों के परागण के संभावित परिणामों के साथ ऐसा हो सकता है।

यह अध्ययन जलवायु प्रभाव आकलन में विविध उपायों पर विचार करने के महत्व पर प्रकाश डालता है तथा प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।