अंटार्कटिक में बढ़ते तापमान के साथ बर्फ बड़ी तेजी से पिघल रही है। नतीजन वहां शैवाल (काई) तेजी से पनप रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

जलवायु परिवर्तन: अंटार्कटिक में नाटकीय रूप से बढ़ रही हरियाली, चार दशकों में दस गुणा हुई वृद्धि

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में विदेशी आक्रामक प्रजातियों के फैलने का भी अंदेशा जताया है

Lalit Maurya

आमतौर पर दुनिया के किसी भी क्षेत्र में हरियाली का बढ़ना इस बात का सबूत है कि वहां पर्यावरण तेजी से फल फूल रहा है। लेकिन अंटार्कटिक में बढ़ती हरियाली ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि अंटार्कटिक में हरियाली नाटकीय रूप से बढ़ रही है, जिसमें पिछले चार दशकों के दौरान दस गुणा से ज्यादा की वृद्धि हुई है।

रिसर्च से पता चला है कि अंटार्कटिक क्षेत्र, वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। इतना ही नहीं यहां भीषण गर्मी की घटनाएं बेहद आम होती जा रही हैं।

एक्सेटर और हर्टफोर्डशायर यूनिवर्सिटी के साथ-साथ ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन में इस बात की जांच की गई है कि पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन के चलते इस क्षेत्र के पर्यावरण में कितना बदलाव आया है और वहां मौजूद हरियाली में कितना इजाफा हुआ है।  

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की भी मदद ली है। इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनसे पता चला है कि इस प्रायद्वीप पर वनस्पति का आवरण जो 1986 में एक वर्ग किलोमीटर से भी कम था, वो बढ़कर 2021 तक करीब 12 वर्ग किलोमीटर हो गया।

अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे यह भी दर्शाते हैं कि 1986 से 2021 की तुलना में 2016 से 2021 के बीच हरियाली के बढ़ने की दर में 30 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है, तथा इस दौरान हरियाली में सालाना 400,000 वर्ग मीटर से अधिक का विस्तार हुआ है।

अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर काई-प्रधान पारिस्थितिकी तंत्र पर किए पिछले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि हाल के दशकों में पौधों की वृद्धि दर में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। वहीं इस नए अध्ययन में उपग्रह से प्राप्त छवियों से पुष्टि हुई है कि अंटार्कटिक में हरियाली तेजी से बढ़ रही है।

इस बारे में एक्सेटर विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर थॉमस रोलैंड ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा, "अंटार्कटिक पर पाए जाने वाली वनस्पति, जिनमें से अधिकांश काई हैं, पृथ्वी पर सबसे कठोर परिस्थितियों में उगती हैं।" उनके मुताबिक इस भूदृश्य अभी भी अधिकांश हिस्सा बर्फ और चट्टानों से ढंका है, वहीं केवल एक छोटा से हिस्से में वनस्पति मौजूद है।

हालांकि यह छोटा सा हिस्सा अब नाटकीय रूप से बढ़ रहा है, जो दर्शाता है कि यह विशाल निर्जन बर्फ का 'जंगल' भी इंसानों की वजह से होते जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित नहीं है और बड़ी तेजी से प्रभावित हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन से अंटार्कटिक के पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे हैं व्यापक बदलाव

वहीं इस बारे में हर्टफोर्डशायर विश्वविद्यालय से जुड़े डॉक्टर ओली बार्टलेट ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, "जैसे-जैसे ये पारिस्थितिकी तंत्र बढ़ते जाएंगे और जलवायु गर्म होती जाएगी, हरियाली का क्षेत्र कहीं ज्यादा बढ़ सकता है।"

उनके मुताबिक अंटार्कटिका में ज्यादातर मिट्टी या तो अनुपजाऊ है या मौजूद ही नहीं है, लेकिन पौधे के बढ़ने के साथ कार्बनिक पदार्थ बढ़ेंगे, जो मिट्टी बनने में मदद करेंगे। इसकी वजह से अन्य पौधों के उगने और बढ़ने की संभावना बढ़ जाएगी।

वैज्ञानिकों ने इस बात की भी आशंका जताई है कि इससे विदेशी आक्रामक प्रजातियों के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा, जो संभवतः पर्यटकों, वैज्ञानिकों या महाद्वीप के दूसरे हिस्सों से आने वाले लोगों के जरिए यहां पहुंच सकती है।

ऐसे में वैज्ञानिकों ने हरियाली की बढ़ती प्रवृत्ति के लिए जिम्मेवार जलवायु और पर्यावरणीय कारकों को समझने के लिए और अधिक अध्ययन की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है।

डॉक्टर रोलैंड के मुताबिक, यह अब स्पष्ट हो चुका है कि अंटार्कटिक में पौधे जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। भविष्य में हम इंसानों की वजह से बढ़ती गर्मी के चलते इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र के परिदृश्य और जीवों में व्यापक बदलाव सामने आ सकते हैं।