जलवायु

जलवायु परिवर्तन एवं विकास के समय में कार्बन न्याय होना बहुत जरूरी

एक गरीब व्यक्ति कार्बन का लगभग गैर-उत्सर्जक या न्यूनतम उत्सर्जक है, परन्तु वह जलवायु परिवर्तन से अत्याधिक त्रस्त है

S P Singh

जलवायु परिवर्तन एक भूमण्डलीय समस्या है इसलिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस पर चर्चा होती रहती है, और उसमें राष्ट्रों के प्रतिनिधि समझौतें और निर्णय लेते है।  विश्व के धनवान देश, दुनिया के अधिकांश जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल, डीजल आदि) के कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। तर्क भी दिए  जाते हैं कि इसके लिए सुधारात्मक कदम उठाने की जिम्मेदारी मूलतः विकसित राष्ट्रों की ही हो।

जलवायु परिवर्तन का मुद्दा विगत दशकों में अत्यधिक अंतर्राष्ट्रीय बनता गया तथा थके हारे, निर्धन और स्थानीय समुदाय इसके विमर्श से बाहर रह गए। यहां, मेरा आशय  कई देशों के उन गरीब एवं निर्बल लोगों की दुर्दशा पर है, जिन्होंने वर्षों में जीवाश्म ईंधनीय कार्बन (फोसिल फ्यूल कार्बन, एफएफसी) लगभग न के बराबर उत्सर्जित किया, लेकिन वे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।

यह विशेष रूप से हिमालय के लोगों पर लागू होता है, जहां वर्ष 2020 में भी प्रति व्यक्ति सीओ2 उत्सर्जन वैश्विक औसत 4.79 टन प्रति वर्ष (क्लाइमेट वॉच, 2020) की तुलना में 1 टन प्रति वर्ष से कम है। यू.एस.ए. सहित कई देश प्रतिवर्ष 15 टन कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। 

जलवायु परिवर्तन में एक गरीब व्यक्ति की स्थिति

एक गरीब व्यक्ति कार्बन का लगभग गैर-उत्सर्जक या न्यूनतम उत्सर्जक है, परन्तु वह  जलवायु परिवर्तन से अत्याधिक त्रस्त है। यह ज्ञातव्य है कि गरीब लोगों ने एफएफसी के गैर-उत्सर्जक या बहुत कम उत्सर्जक रहकर, ग्लोबल वार्मिंग को एक सीमा के भीतर रखने में योगदान दिया है। परन्तु समाज के कमजोर एवं निर्बल लोगों के इस योगदान का अमीर और सक्षम लोगों ने कभी सन्दर्भ नहीं लिया न ही उसके लिए कृतज्ञता का शिष्टाचार निभाया।

आमतौर पर ये थके हारे लोग जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को झेलने में असक्षम होते हैं। उदाहरण के तौर पर इनमें शामिल हैं: एक मोची जो सड़क के किनारे जमीन पर बैठकर हमारे जूतों की मरम्मत करता है और वाहनों के प्रदूषकों से सबसे अधिक प्रभावित होता है; हिमालय में पिघलते ग्लेशियरों के समीप रहने वाली महिलाएं जिनको रोज पानी लाना होता है, एक छोटा किसान, जिसकी नदी के पास की कृषि भूमि बार-बार भूस्खलन से नष्ट हो जाती  है; और एक फेरीवाला जो हर दिन पैदल चलकर हमारे लिए फल लाता है जबकि दुनिया ने उसके लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है] जहां वह अधिकार स्वरुप अपना ठेला खड़ा कर सके।

वर्षों से बढ़ती अनिश्चितताओं के बावजूद ये लोग जीवाश्म ईंधन (फोसिल फ्यूल जैसे पेट्रोल) का उपभोग किए बिना जीवित रहने के लिए संघर्ष रत हैं। सच है, गरीब आनुवंशिक रूप से अमीरों से अलग नहीं हैं, उन्होंने एफएफसी का उत्सर्जन इसलिए नहीं किया क्योंकि वे इसे वहन नहीं कर सकते थे, और वे भी एफएफसी का उत्सर्जन करेंगे जब उनके पास पैसे होंगे।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे गरीबी और जलवायु परिवर्तन -प्रेरित तूफान और बाढ़ दोनों से अति पीड़ित नहीं हैं और उनके प्रति हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं है। हमें उनके प्रति संवेदनशील और दयालु होना चाहिए। वे न केवल एफएफसी के गैर-उत्सर्जक हैं, उन्हें इसका भी संज्ञान नहीं है कि ऐसा करके वे हमारे इकोसिस्टमस को बचाए हुए हैं। 

कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन सेवा के भुगतान में सुधार एवं हमारा योगदान

सभी कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन भुगतान के लिए पात्र नहीं हैं,  किसी को कार्बन क्रेडिट तभी मिलता है, जब वह "नए कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन" में योगदान देता है, पूर्व से चलते आ रहे कार्बन बचत प्रावधानों को कार्बन भुगतान के लिए योग्य नहीं माना जाता हैं। कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन के प्रयास भूमंडलीय स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करना होता है।

हिमालय में एक वन उपयोगकर्ता समूह जो दशकों से अपने वनों को बनाए रखता है, उसे कार्बन क्रेडिट नहीं दिया जाता है, हालांकि, जिन्होंने वनों को पूर्व में नष्ट कर दिया और अब कार्बन  स्टॉक में सुधार करते हैं तो उन्हें  कार्बन क्रेडिट मिलता है।

इसमें अभाव की मज़बूरी में किये गए कार्बन उत्सर्जन के लिए कोई रियायत भी नहीं है। हिमालय में महिलाओं ने घास, लकड़ी आदि के लिए वनों का दोहन एक सीमा के अंदर रखकर कार्बन बचत में योगदान दिया है (डेनियलसन एवं अन्य  2011)।

इसके विपरीत आधुनिक मशीनों की सहायता से हम आज एक दिन में सड़को के निर्माण आदि के लिए एक दिन में सैकड़ो पेड़ को काट देते हैं। हमारे द्वारा इस प्रकार से काटे गए पेड़ों के बराबर जीवन निर्वाह हेतु घास लकड़ी काटने में ग्रामीण महिलाओ को कई दशक लगते हैं। इन लोगों को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने का पूरा अधिकार होना चाहिए (सिंह और सिंह, 1992)।

जलाऊ लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई को रोकने के कारण जंगलों में बढ़े हुए कार्बन सेक्वेस्ट्रेशन  द्वारा उन्हें रसोई गैस के नियमित समर्थन को उचित ठहराया जा सकता है।

शिक्षित, सुसंस्कृत और सक्षम लोगों को गरीबों एवं निर्बल लोगों की समस्याओं के प्रति विचारशील और दयालु (कम्पेशनट) होना चाहिए, और कार्बन न्याय के लिए योगदान देना चाहिए। जो आर्थिक रूप से सफल नहीं हो सके, उनके प्रति अनुकम्पा विकास का अंग होना चाहिए। कुल मिलाकर, एक देश के भीतर एफएफसी उत्सर्जन से बचने वाली सभी प्रथाओं को मान्यता दी जानी चाहिए और भुगतान किया जाना चाहिए।

हम आम आदमियो के पास कार्बन बचत हेतु भुगतान के लिए पर्याप्त धन नहीं हैं, लेकिन हम कुछ लोगों के दुश्वारियों  को दूर करने के लिए कुछ न कुछ  धन एकत्र कर सकते हैं और सहायता दे सकते हैं ताकि वे  लोग  अपनी आय अर्जित करते हुए गैर-उत्सर्जक बने रहें। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्बन न्याय को गरीबी में कमी के साथ एकीकृत करके, हम लोगों को जलवायु परिवर्तन संकट और इसके संभावित प्रभाव के बारे में व्यापक रूप से जागरूक कर सकते हैं।

यह जलवायु परिवर्तन संकट को विकास की मुख्य धारा में लाने में मदद करेगा, जो प्रभावी अनुकूलन रणनीतियों को लेने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन पर होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और अनजान निर्बल लोगों की समस्याओं के बीच की दूरी को कम करना होगा। 

गरीबों से जुड़े कौशल और नौकरियों का विलुप्त होना

बेरोजगारी आज सतत विकास के लिए मुख्य समस्या है। गरीबों के कारण, कई सेवाएं, कौशल और नौकरियां अभी भी मौजूद हैं और वे अक्सर स्थिर विकास को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, एक मोची ने एक कौशल विकसित किया है, यदि हम इसकी आर्थिकी में योगदान करने में विफल रहते हैं तो यह कौशल विलुप्त हो सकता है। यह आवश्यक है कि उस पेशे से मोची को ठीक से जीने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं मिलता रहे।

उन्हें जूते को सिलने की मशीन देकर हम शहरी क्षेत्रों की अनिश्चित स्थिति में उनकी कमाई को सम्मान के साथ जीने लायक बना सकते हैं। फिर, जूतों की मरम्मत करके एक मोची कूड़े के ढेर को कम करता है। कई लोगों को मरम्मत और बनावट कार्यों जैसे कपड़े की मरम्मत, खाना पकाने के चूल्हे, साइकिल बनाना, काष्ठकला, बागवानी एवं अन्य निर्माण कार्य आदि में लगाए रख कर नियोजित किया जाता है, जो कि एक शहरी व्यवस्था में अहम हिस्सा है। यह सब न केवल कार्बन बचत के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं बल्कि रोजगार और कौशल विकास के स्रोत के रूप में भी इसका महत्त्व होगा।

अर्थव्यवस्था को रैखिक के बजाय चक्राकार होना चाहिए, और इसमें न केवल रिसायकल बल्कि सतत विकास के लिए वस्तुओ की मरम्मत और पुन: उपयोग भी शामिल है। एक लकड़ी की मेज न केवल फर्नीचर का एक टुकड़ा है बल्कि कार्बन स्टॉक भी है। उस कार्बन स्टॉक को वायुमंडल से अलग रखने के लिए इसका उपयोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक किया जा सकता है। 

अभिस्वीकृति

इस लेख हेतु राजेश थड़ानी, दिग्विजय सिंह, एस. पी. सती एवं सुरभि गुम्बर ने समय समय पर सहायता दी है।