जलवायु

प्रदूषण रहित ईंधन से चलने वाले चूल्हों के नाम पर हो रहा है खेल: रिपोर्ट

Lalit Maurya

रिसर्च से पता चला है कि क्लीन कुकस्टोव के जलवायु पर पड़ते सकारात्मक प्रभावों को परियोजनाएं 10 गुना बढ़ा चढ़ाकर बता रही हैं, ऐसे में अध्ययन का दावा है कि कमजोर तबके को जहरीले धुएं से बचाने की यह लोकप्रिय योजना, उत्सर्जन के त्रुटिपूर्ण आंकलन के चलते कमजोर हो रही है।

गौरतलब है कि कमजोर देशों में खाना पकाने के साफ-सुथरे साधनों के लिए जद्दोजहद करते लोगों के लिए क्लीन कुकस्टोव यानी स्वच्छ ईंधन पर चलने वाले चूल्हे किसी वरदान से कम नहीं, जो लोगों की बुनियादी जरूरत को पूरा करने के साथ बढ़ते उत्सर्जन में कटौती करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।

आज भी दुनिया भर में करीब 240 करोड़ लोग अपना खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, केरोसीन, जैसे जीवाश्म ईंधन से चलने वाले साधनों पर निर्भर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह दूषित साधन बड़े पैमाने पर प्रदूषण पैदा करते हैं, जो हर साल असमय होने वाली 32 लाख मौतों की वजह बन रहे हैं। इतना ही नहीं इनसे पैदा होता धुआं हर साल वैश्विक उत्सर्जन में भी दो फीसदी का योगदान दे रहा है। जो जलवायु में आते बदलावों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि खाना पकाने के इन दूषित साधनों की जगह इलेक्ट्रिक कुकर जैसे स्वच्छ विकल्पों का चयन उत्सर्जन में गिरावट के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी फायदेमंद साबित हो सकता है। विशेषज्ञों को भरोसा है यह बदलाव सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के नजरिए से भी फायदेमंद साबित होगा। इससे न केवल वायु गुणवत्ता में सुधार आएगा, साथ ही लकड़ी और ईंधन जमा करने में लगने वाले समय की बचत होगी, साथ ही वनों को होते नुकसान में भी कमी आएगी।

यही वजह है कि इन क्लीन कुकस्टोव परियोजनाओं ने कार्बन बाजार में बड़े पैमाने पर कंपनियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। जो अपने आप को कार्बन-न्यूट्रल दिखाने के लिए इन परियाजनाओं को फाइनेंस कर रही हैं, ताकि उन्होंने जो उत्सर्जन किया है वो उससे छुटकारा पा सकें।

लेकिन हाल ही में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि यह क्लीन कुकस्टोव परियोजनाएं जो कार्बन-ऑफसेट पहल का एक लोकप्रिय हिस्सा हैं वो जलवायु पर पड़ते अपने सकारात्मक प्रभावों को 10 गुणा अधिक बता रही हैं।

अध्ययन के मुताबिक इन क्लीन कुकस्टोव के बढ़ा चढ़ा के आंके गए यह कार्बन क्रेडिट, उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में बाधा डाल रहे हैं। चूंकि कंपनियां वास्तविकता में उत्सर्जन को कम किए बिना अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने और कई बार अपने उत्पादों को कार्बन न्यूट्रल बता कर बेचने के लिए इन ऑफसेट का सहारा लेती हैं।

ऐसे में इसकी वजह से कार्बन बाजार पर जो भरोसा है वो भी दरक रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से बाजार द्वारा लंबे समय तक इन क्लीन कुकस्टोव परियोजनाओं के लिए वित्त पोषित करने की राह भी मुश्किल हो रही है।

गौरतलब है कि कार्बन रजिस्ट्रियां ऐसी पद्धतियां अपनाती हैं जो यह तय करती है कि कौन सी परियोजनाएं ऑफसेट बाजार का हिस्सा हो सकती हैं और उत्सर्जन पर उनके प्रभाव का अनुमान कैसे लगाया जाए।

यह प्रोजेक्ट डेवलपर्स, जैसे कि कुशल कुकस्टोव की आपूर्ति करने वाली कंपनियां इन पद्धतियों की मदद से यह ट्रैक करने और अनुमान लगाने के लिए जिम्मेवार होती हैं कि उनकी परियोजना उत्सर्जन में कितनी कमी करती हैं। इसी आधार पर उन्हें मिलने वाले कार्बन क्रेडिट का निर्धारण किया जाता है।

बता दें कि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जिसमें किसी ऑफसेट परियोजना की गुणवत्ता का गहन मूल्यांकन किया गया है। अपने इस अध्ययन में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने स्वच्छ कुकस्टोव की वजह से उत्सर्जन में आती कमी को मापने के लिए पांच अलग-अलग तरीकों की जांच की है। उन्होंने इन तरीकों की तुलना मौजूदा अध्ययनों से करने के साथ-साथ, स्वतंत्र रूप से अपना विश्लेषण भी किया है। इस अध्ययन के नतीजे 23 जनवरी 2024 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं।

क्या होता है कार्बन क्रेडिट और कार्बन ऑफसेट?

कार्बन बाजार को एमिशन ट्रेडिंग के रूप में भी जाना जाता है। यह ऐसे समझौते हैं जिसमें देश, संस्थाएं या कंपनियां ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए आपस में अनुमति पत्र का आदान प्रदान करते हैं, जिसे कार्बन क्रेडिट कहा जाता है। यह एक तरह का टोकन होता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं, एक देश या कंपनियों के लिए उत्सर्जन का एक तय स्तर होता है। ऐसे में यदि वो कंपनियां अपने तय स्तर से कम उत्सर्जन करती हैं तो वो बचाए उत्सर्जन को कार्बन क्रेडिट के रूप में दूसरे को बेच सकती हैं।

इन कार्बन क्रेडिट को वो कंपनियां खरीद लेती हैं जो तय सीमा से अधिक उत्सर्जन कर रही होती हैं। यह कार्बन क्रेडिट सरकारों द्वारा कंपनियों को जारी किए जाते हैं। इसमें प्रत्येक क्रेडिट एक टन कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं कार्बन ऑफसेट कंपनियों द्वारा ही बनाए जाते हैं और कंपनियों द्वारा ही उनका कारोबार किया जाता है।

उदाहरण के लिए यदि कोई कंपनी पेड़ लगाने या क्लीन कुकस्टोव बनाने का काम करती है, तो वो पेड़ लगाने या कुकस्टोव की वजह से वातावरण को हुए फायदे को कार्बन ऑफसेट के रूप में उपयोग कर सकती है।

उत्सर्जन में इस कमी के बदले इस कंपनी को कार्बन क्रेडिट दिए जाते हैं, जिसका व्यापार यह दूसरी कंपनियों या व्यक्तिगत रूप से किया जा सकता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है, यदि कोई कंपनी तय सीमा से ज्यादा उत्सर्जन करती है तो वो उसकी भरपाई के लिए इस तरह की कार्बन ऑफसेट परियोजनाएं चलाने वाली कंपनियों से कार्बन क्रेडिट खरीद लेती हैं, ताकि उस परियोजना से मिले कार्बन क्रेडिट की मदद से उनकी छवि साफ हो सके।

देखा जाए तो यह उत्सर्जन कंपनियों को ग्रीनवॉशिंग करने में मदद करता है क्योंकि अपने द्वारा उत्सर्जित कार्बन की एवज में कार्बन क्रेडिट खरीदकर यह कंपनियां जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेती हैं।