जलवायु

जलवायु परिवर्तन के चलते खतरे में बाल अधिकार, संयुक्त राष्ट्र समिति ने जारी किए नए दिशानिर्देश

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति का कहना है कि जलवायु संकट के मामलों में बच्चों की आवाज सुनी जानी चाहिए

Lalit Maurya

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति ने बच्चों के अधिकारों और पर्यावरण के संबंध में महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और बच्चों के अधिकारों पर मंडराते खतरे का भी जिक्र किया गया है। यह मार्गदर्शन उन कानूनों और कार्रवाइयों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं, जिन्हें देशों को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए, ताकि वो बच्चों के अधिकारों पर पर्यावरणीय क्षति और जलवायु परिवर्तन के पड़ते हानिकारक प्रभावों का सामना कर सकें।

इनका उद्देश्य वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ, स्वस्थ और बेहतर दुनिया बनाना है। इन दिशानिर्देशों में गहराते जलवायु संकट के बीच संयुक्त राष्ट्र ने सरकारों से बच्चों की सुरक्षा करने के लिए तत्काल कार्रवाई का आहवान किया है।

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति ने सरकारों, राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज, विशेषज्ञों और बच्चों के साथ की गई चर्चा के बाद “सामान्य टिप्पणी संख्या 26” के नाम से यह आधिकारिक दिशानिर्देश जारी किए हैं।

यह दिशानिर्देश आपसी प्रयासों का परिणाम है। इस बारे में 121 देशों के 16,331 बच्चों ने अपने विचार साझा किए थे। इन बच्चों ने अपने जीवन और समुदायों पर पर्यावरण में आती गिरावट और जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की थी।

गौरतलब है कि इन दिशानिर्देशों में पहली बार बच्चों के लिए स्वच्छ, स्वस्थ व बेहतर वातावरण में रहने के अधिकार की पुष्टि की गई है। इन दिशानिर्देशों में बाल अधिकारों पर हुई संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत, सदस्य देशों के दायित्वों की व्यापक रूप से व्याख्या की गई है, जिसका 196 देशों ने समर्थन किया था।

बता दें कि 20 नवंबर 1989 की अपनाई गई इस संधि में बाल अधिकारों को रेखांकित किया गया था, जिसमें जीवन, स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, के साथ जीवन का अस्तित्व और विकास जैसे मुद्दे शामिल थे।

सरल शब्दों में कहें तो यह सामान्य टिप्पणी इस बात पर कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करती है कि किसी विशिष्ट विषय या कानून से बच्चों के अधिकार कैसे प्रभावित होते हैं। ऐसे में इन नए दिशानिर्देशों में, जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, पर्यावरण संबंधी अधिकारों को सम्बोधित किया गया है।

समिति ने सरकारों से पर्यावरणीय खतरों को लेकर युवाओं की चिंताओं पर प्रतिक्रिया देने का भी आग्रह किया है। समिति के मुताबिक जलवायु संबंधी मामलों में बच्चे तेजी से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में उनकी आवाज सुनी जानी चाहिए।

जलवायु संकट पर सुनी जानी चाहिए बच्चों की आवाज

इस बारे में भारत के जलवायु और बाल अधिकार कार्यकर्ता और समिति के बाल सलाहकारों में से एक 17 वर्षीय कार्तिक का कहना है कि, "बच्चे आज की दुनिया के निर्माता, नेता, विचारक और बदलावों के अग्रदूत हैं।" उनका आगे कहना है कि, "यह दिशानिर्देश, वो उपकरण है जो हमें पर्यावरण और जलवायु खतरों के सामने अपने अधिकारों को समझने और उनका प्रयोग करने में मदद करेगा।"

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति ने इन दिशानिर्देशों में पर्यावरणीय में आती गिरावट सहित जलवायु संकट को बच्चों के विरुद्ध एक प्रकार की संरचनात्मक हिंसा का नाम दिया है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को कानूनी उपायों तक पहुंच मिले, इसमें उन बाधाओं को दूर करना भी शामिल है, जो बच्चों को अपने दम पर कानूनी कार्रवाई शुरू करने से रोक सकती हैं। समिति के मुताबिक जलवायु आपातकाल, जैव विविधता में आती गिरावट और बढ़ता प्रदूषण, वैश्विक स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए बड़ा खतरा है।

समिति के अध्यक्ष एन स्केल्टन ने इस सामान्य टिप्पणी के कानूनी महत्व पर प्रकाश डाला है। उन्होंने जोर देकर कहा है कि, “यह सामान्य टिप्पणी पर्यावरण को होते नुकसान से निपटने के लिए बाल अधिकार सम्मेलन के तहत देशों की जिम्मेवारियों को रेखांकित करती है। साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि बच्चे अपने अधिकारों का पूरी तरह आनंद ले सकें।“

“इसमें बच्चों को पर्यावरणीय नुकसान और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए सूचना, भागीदारी और न्याय तक पहुंच के अधिकार और जरूरत पड़ने पर उपचार शामिल हैं।“

यह दिशानिर्देश स्पष्ट करते हैं कि बच्चों के अधिकार पर्यावरण संरक्षण से कैसे सम्बंधित हैं। यह इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चों को साफ, स्वस्थ और बेहतर वातावरण का अधिकार है। यह अधिकार कन्वेंशन में निहित है, जो जीवन, अस्तित्व, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास जैसे प्रमुख अधिकारों से निकटता से जुड़ा है। ऐसे में बच्चों को अपने अधिकारों का पूर्ण अनुभव कराने के लिए यह अधिकार भी जरूरी है।

इसमें स्पष्ट किया गया है कि देश, न केवल बाल अधिकारों की रक्षा के लिए जिम्मेवार हैं। साथ ही वर्तमान में निष्क्रियता के चलते यदि भविष्य में उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उसके लिए भी वही जवाबदेह होंगें।

वर्तमान ही नहीं भविष्य को लेकर भी है देशों की जवाबदेही

इन दिशानिर्देशों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि देशों को उनकी सीमाओं के भीतर या बाहर होने वाले पर्यावरण के नुकसान के लिए भी जिम्मेवार ठहराया जा सकता है। इसमें देशों से पर्यावरण पर प्रभाव डालने वाली व्यावसायिक गतिविधियों से बच्चों को होने वाले नुकसान से बचाने की बात भी कही है।

यह बताता है कि देशों का कर्तव्य है कि वे ऐसे कानून, नियम और तंत्र स्थापित करें जो व्यवसायों से बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा कर सकें। व्यवसायों को भी इसका आंकलन करने की जरूरत है कि उनके कार्य बच्चों और पर्यावरण को कैसे प्रभावित करते हैं। यदि बच्चों को नुकसान होता है तो इससे उबरने, अधिक नुकसान को रोकने के साथ उनके स्वास्थ्य और विकास की सुरक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

गौरतलब है कि जिन देशों ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सन्धि पर मुहर लगाई है, उनसे इस दिशानिर्देशों में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करके, अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की बात कही गई है। साथ ही वायु गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ साफ पानी तक पहुंच सुनिश्चित करने और जैवविविधता की रक्षा जैसे तात्कालिक मुद्दों पर पहल करने का आग्रह किया गया है।

समिति का मानना है कि कई देशों में, बच्चों को कानूनी रूप से अपने अधिकारों के लिए खड़े होने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इससे उनके लिए पर्यावरण से संबंधित अपने अधिकारों का दावा करना कठिन हो जाता है। इसलिए, देशों को पर्यावरणीय क्षति के संबंध में बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन होने पर उनके न्याय पाने के मार्ग को आसान करना चाहिए।

यह शिकायत प्रणालियों के माध्यम से किया जा सकता है, जो बच्चों के लिए उपयोग करना आसान है। इसके अलावा, भविष्य में होने वाले संभावित नुकसान के साथ-साथ बच्चों के अधिकारों का अतीत और वर्तमान दोनों समय में होने वाले उल्लंघन को संबोधित करने के लिए तंत्र मौजूद होना चाहिए।

दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि पर्यावरण सम्बन्धी फैसलों में बच्चों के दृष्टिकोण का भी सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही, पर्यावरण शिक्षा की भूमिका पर भी बल दिया गया है।

मार्गदर्शन में विकसित देशों से भी जलवायु वित्त में मौजूदा अंतर को तुरंत पाटने की बात कही गई है। इसमें बच्चों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए विकासशील देशों को ऋण के बदले अनुदान देने पर जोर दिया गया है।

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि अक्सर क्लाइमेट फाइनेंस नुकसान और क्षति से निपटने और अनुकूलन के बजाय शमन का पक्ष लेता है। जो उन क्षेत्रों में जहां अनुकूलन से जुड़े उपायों की आवश्यकता ज्यादा है वहां बच्चों को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है।

समिति पर्यावरणीय क्षति और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों से तत्काल सामूहिक कार्रवाई का भी पुरजोर आह्वान करती है।