जलवायु

बदलती जलवायु से खतरे में पड़े एशिया के ऊंचे पहाड़ों की जलविद्युत परियोजनाएं: अध्ययन

अध्ययन में 1960 के दशक से लेकर वर्तमान तक इस क्षेत्र के ग्लेशियरों तथा पर्माफ्रॉस्ट से जुड़े पर्वतीय खतरों से जलविद्युत को होने वाले नुकसान के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

Dayanidhi

हिमालय और इससे सटे पर्वत श्रृंखला या एशिया के ऊंचे पहाड़, ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर धरती के सबसे बड़े इलाकों में फैले बर्फ के पहाड़ों में से एक हैं। 

इस क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता है और कई बांध और जलाशय निर्माणाधीन या योजना में शामिल हैं। हालांकि नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए एक नए अध्ययन में कहा गया है कि, जलवायु परिवर्तन इन जगहों को अस्थिर कर रहा है और कई जलविद्युत परियोजनाओं को इससे खतरा है।

हाल के वर्षों में, हिमालय में जलवायु संबंधी पर्वतीय खतरों के कारण जलविद्युत परियोजनाओं (एचपीपी) पर महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभावों की जानकारी मिली है।

फरवरी 2021 में, भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले में एक हिमस्खलन हिमालय के ग्लेशियरों की घाटी से टकराया और इसके परिणामस्वरूप पानी के साथ मलबे के प्रवाह में तेजी आई और यह विनाशकारी बाढ़ में बदल गया, जिसमें एक निर्माणाधीन सहित दो जलविद्युत परियोजनाएं बह गईं।

इसी तरह, जुलाई 2016 में, नेपाल के ऊपरी भोटेकोशी जलविद्युत परियोजना को गोंगबटोंगशा ग्लेशियल झील के फटने के बाद आई बाढ़ ने इसे नष्ट कर दिया था।

अध्ययनकर्ता डॉ. डोंगफेंग ली ने कहा हमारा अध्ययन हिमालय में इन हालिया जलविद्युत परियोजनाओं को होने वाले नुकसान को लेकर है। हमने सोचा कि पहाड़ में इस तरह के खतरे जलवायु परिवर्तन से संबंधित हो सकते हैं।

इस प्रकार पूरे एशिया में ऊंचे पहाड़ों पर बने जलविद्युत बांधों और जलाशयों पर जलवायु संबंधी खतरों की व्यवस्थित रूप से जांच करने के लिए एक परियोजना शुरू की गई। डॉ. ली एनयूएस में फैकल्टी ऑफ आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज में भूगोल विभाग के अध्ययन और शोधकर्ता हैं। 

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के सहयोग से आयोजित इस अध्ययन में ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जलविद्युत प्रणालियों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने की दिशा में सिफारिशें की गई हैं।

अध्ययन में 1960 के दशक से लेकर वर्तमान तक इस क्षेत्र में ग्लेशियर, पर्माफ्रॉस्ट से जुड़े पर्वतीय खतरों और संबंधित जलविद्युत को होने वाले नुकसान के आंकड़ों का मिलान और जांच की गई। इसमें पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बर्फ के पिघलने की मात्रा और समय में खतरनाक तरीके से बदलाव हो रहा है।

एशिया के ऊंचे पहाड़ों से आने वाले पानी की मात्रा, नीचे स्थित प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जिन पर कि अरबों लोग निर्भर हैं।

धारा प्रवाह को एक तरह से नियमित करने और जलविद्युत उत्पादन के लिए डिज़ाइन किए गए अधिक जलाशयों का निर्माण इन बदलाव को अपनाने के लिए रणनीतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि अध्ययन से पता चला है कि ये परियोजनाएं अत्यधिक संवेदनशील हैं जो पूरे क्षेत्र में परिदृश्य को अस्थिर कर रही हैं।

खतरा और होने वाले बदलाव की गति को देखे तो इन प्रक्रियाओं में ग्लेशियरों का पीछे हटना और टूटना, पर्माफ्रॉस्ट पिघलना और संबंधित भूस्खलन, कठोर बर्फ का हिमस्खलन, मलबे का प्रवाह और ग्लेशियरों से बनी झीलों और भूस्खलन से बनी झीलों से आने वाली बाढ़ इसमें शामिल हैं।

इसके चलते बड़ी मात्रा में गाद या तलछट जमा हो रही है जो जलाशयों को भर सकती है, बांध को तोड़ सकती है और बिजली टर्बाइनों को नष्ट कर सकती है।

जलविद्युत बांधों की सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं के बावजूद, वे स्थायी ऊर्जा को बढ़ावा देने में अहम योगदान देते हैं। जीवाश्म-ईंधन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करते हैं और कार्बन तटस्थता को हासिल करने में सहायता करते हैं।

सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर वाल्टर इमरजील ने कहा बांधों और जलाशयों का निर्माण उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में भविष्य के जल संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन जल चक्र को बदल रहा है। प्रोफेसर इमरजील नीदरलैंड में यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय के शोधकर्ता हैं।

बांधों और जलाशयों पर जलवायु में बदलाव से पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए, टीम ने भविष्य के लिए निम्नलिखित की पहचान की है: -

सबसे पहले, पैराग्लेशियल जोन या ग्लेशियर के पीछे हटने से बना इलाका, तलछट की अधिकता और खतरे की संवेदनशीलता के नक्शे जो वर्तमान और भविष्य में अस्थिर परिदृश्य और कटाव वाले क्षेत्रों का बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सके। विशेष रूप से जलविद्युत परियोजनाओं वाले इलाकों के लिए यह किया जाना जरूरी है। मौजूदा एचपीपी को बनाए रखने और नए एचपीपी की योजना बनाने के संबंध में नीति विकास ऐसे खतरों का मानचित्रों द्वारा निर्देशित होने चाहिए।

दूसरा, तलछट या गाद के मुद्दों को जलविद्युत विकास के लिए एक मूलभूत विचार के रूप में देखा जाना चाहिए। अध्ययनकर्ता प्रोफेसर जिक्सी लू ने बताया कि भविष्य के जलाशयों की योजना बनाते समय, भंडारण क्षमता डिजाइन को जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तलछट के भार से जुड़े संभावित भंडारण से होने वाले नुकसान पर विचार करना चाहिए। इससे निपटने और जलवायु संबंधी खतरों को लेकर इसकी अतिरिक्त भंडारण क्षमता होनी चाहिए।

तीसरा, निगरानी, ​​पूर्वानुमान और पूर्व-चेतावनी प्रणाली को और विकसित तथा  तेज किया जाना चाहिए। हम रिमोट-सेंसिंग और ग्राउंड-आधारित अवलोकनों जैसे दृष्टिकोणों का उपयोग करके ग्लेशियरों, पर्माफ्रॉस्ट, अस्थिर ढलानों, ग्लेशियरों से बनी झीलों, क्षरण और तलछट की निगरानी में सुधार कर सकते हैं।  

अध्ययनकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि नीति निर्माताओं और हितधारकों को ऐसे उभरते खतरों के बारे में अधिक जागरूक किया जाएगा। ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में सफल स्थायी जलविद्युत विकास हासिल करने के लिए दूरंदेशी अनुकूलन और शमन उपायों को अपनाया जाएगा। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है।