क्या आप जानते हैं जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश के पैटर्न में जो बदलाव आ रहा है, वो तितली जैसे ‘एक्टोथर्म’ जीवों की आबादी के लिए बड़ा खतरा है। गौरतलब है कि बाह्ययोष्मी या ऍक्टोथर्म, वो जीव होते हैं जो अपने शरीर को गर्म बनाए रखने के लिए आसपास के वातावरण में मौजूद गर्मी का उपयोग करते हैं। इनके शरीर की अंदरूनी प्रक्रियाएं उनके अपने शरीर के तापमान पर नियंत्रण नहीं रख पाती हैं।
देखा जाए तो जब हम अक्सर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बात करते हैं तो बढ़ते तापमान के कारण आते बदलावों के बारे में ही सोचते हैं, कि कैसे बढ़ता तापमान दुनिया भर में प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है। लेकिन हाल ही में नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में वर्षा के पैटर्न में आते बदलाव से जीवों पर पड़ते असर का अध्ययन किया गया है।
अध्ययन के अनुसार यदि हम प्रत्येक प्रजाति के जीवन चक्र पर पर्यावरण से जुड़ी घटनाओं के प्रभावों को समझ लेते हैं तो हमें इन प्रजातियों पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में भी मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने मियामी ब्लू बटरफ्लाई (साइक्लार्गस थोमासी बेथुनेबेकेरी) पर ध्यान केंद्रित किया है जोकि तितली की एक दुर्लभ प्रजाति है, जोकि विलुप्त होने की कगार पर है। तितली की यह प्रजाति अमेरिका के दक्षिण फ्लोरिडा में पाई जाती है। इसके संरक्षण पर काम करने के लिए यह समझना जरुरी है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन इसके जीवन चक्र को प्रभावित कर सकता है।
कैसे इन जीवों की आबादी और विकास को प्रभावित कर रहा है बारिश में आया बदलाव
देखा जाए तो कीटों की कई अन्य उष्णकटिबंधीय प्रजातियों की तरह ही इस तितली (मियामी ब्लू बटरफ्लाई) के जीवनचक्र में भी 'डायपॉज' नामक एक अवस्था आती है। यह तब होता है जब तितली का लार्वा सूखे मौसम में अपने विकास को रोक लेते हैं और दोबारा बारिश के आने का इन्तजार करते हैं। बारिश के मौसम में यह 'डायपॉज' लार्वा एक बार फिर व्यस्क तितली बनने की अपनी यात्रा शुरू करता है। ऐसे में सूखे मौसम और 'डायपॉज' की अवधि, इस तितली की आबादी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि लार्वा के 'डायपॉज' की यह अवधि छोटी होती है तो उसके वयस्क होने और प्रजनन की सम्भावना अधिक होती है, जबकि यदि लम्बे डायपॉज के साथ सूखे का मौसम भी बड़ा होता है, तो उनके वयस्क होने की सम्भावना उतनी कम हो जाती है। इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता एरिका हेनरी ने बताया कि बारिश के पैटर्न में आया बदलाव यह तय कर सकता है कि मियामी ब्लू बटरफ्लाई की आबादी बढ़ेगी या कम होगी।
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता एरिका हेनरी ने बताया कि बारिश के पैटर्न में आया बदलाव यह तय कर सकता है कि मियामी ब्लू बटरफ्लाई की आबादी बढ़ेगी या कम होगी। उनके अनुसार यह प्रभाव केवल इस दुर्लभ तितली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन सभी कीटों के लिए भी है जो वर्षा संचालित प्रणालियों पर निर्भर हैं।
दुनिया में कई प्रजातियां ऐसी हैं जो अपने जीवनचक्र में बारिश से प्रभावित होती हैं। जहां जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में वृद्धि हो रही है उसके विपरीत बारिश के पैटर्न में अलग तरह से बदलाव आ रहे हैं। जहां कुछ क्षेत्रों में बारिश की कमी के चलते सूखा पड़ सकता है, वहीं कहीं इतनी बारिश होगी की वहां बाढ़ आ जाएगी जबकि कुछ क्षेत्रों में कोई बदलाव नहीं आएगा। यदि दक्षिण फ्लोरिडा जैसे क्षेत्रों की बात की जाए तो वहां जलवायु में आते बदलावों के साथ बारिश के पैटर्न में किस तरह बदलाव आएगा, वो पूरी तरह अनिश्चित है।
ऐसे में इस तितली पर भविष्य में बारिश में आए बदलावों का क्या असर होगा इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने जलवायु के 20 अलग-अलग मॉडल का उपयोग करके उसकी गणना की है। इन सभी में यह सामने आया है कि जब बारिश की अवधि में देरी हुई और डायपॉज की अवधि बढ़ गई तब उनकी आबादी में गिरावट दर्ज की गई, हालांकि उस दौरान पर्यावरण सम्बन्धी अन्य कारकों में कोई बदलाव नहीं आया था।
इस बारे में शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता एडम टेरांडो का कहना है कि उष्ण और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, पारिस्थितिक तंत्र के एक अत्यंत विविध सेट को कवर करता है, जो बारिश में आते बदलावों के प्रति संवेदनशील होते हैं। समस्या यह है कि तापमान की तुलना में जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश में कैसे बदलाव आएगा उसमें बहुत ज्यादा अनिश्चितता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह उन शुरूआती प्रयासों में से एक है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के स्थान पर बारिश के चलते उष्णकटिबंधीय कीटों पर कैसे प्रभाव पड़ेगा उसे जांचने की कोशिश की गई है। अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के चलते इन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बारिश में गिरावट की पूरी सम्भावना है जिसका असर इस तितली की तरह ही क्षेत्र में पाए जाने वाले अन्य कीटों के जीवनचक्र पर भी पड़ सकता है।
इसके कारण उन कीटों की आबादी में गिरावट हो सकती है। देखा जाए तो वर्षा के पैटर्न में आता बदलाव इन कीटों की घटती आबादी की व्याख्या कर सकता है। शोधकर्ता एरिका हेनरी के मुताबिक आज जलवायु परिवर्तन का असर हर जगह पड़ रहा है। ऐसे में इन बदलाव दुनिया के अलग-अलग हिस्सों पर कैसे व्यापक प्रभाव डाल रहे हैं इसे समझकर इनके जैवविविधता पर पड़ते नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।