जलवायु

ऑनलाइन कॉन्‍फ्रेंसिंग की मदद से 94 फीसदी तक कम किया जा सकता है कार्बन पदचिह्न

यदि कांफ्रेंस को पूरी तरह ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किया जाए तो उसकी मदद से कार्बन पदचिह्न को 94 फीसदी तक कम किया जा सकता है, साथ ही ऊर्जा उपयोग में भी 90 फीसदी तक की कटौती की जा सकती है

Lalit Maurya

पिछले एक या दो वर्षों में कोविड-19 के डर से जिस तरह से राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले सम्मेलन अब ऑनलाइन होते जा रहे हैं उसकी वजह से जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने का एक नया और प्रभावी तरीका दुनिया के सामने आया है।

हाल ही में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने की जगह ऑनलाइन होने वाले सम्मलेन जलवायु और पर्यावरण के दृष्टिकोण से कहीं ज्यादा बेहतर विकल्प हैं। कॉर्नेल विश्वविद्यालय द्वारा किए इस अध्ययन में सामने आया है कि यदि किसी प्रोफेशनल कांफ्रेंस को पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया जाए तो उससे कांफ्रेंस के कार्बन पदचिह्न को 94 फीसदी तक कम किया जा सकता है। इसी तरह से कांफ्रेंस के ऊर्जा उपयोग में भी 90 फीसदी तक की कटौती की जा सकती है। 

इतना ही नहीं जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित इस शोध से पता चला है कि यदि सम्मलेन को पूरी तरह ऑनलाइन करने की जगह हाइब्रिड कर दिया जाए, तो भी इससे जलवायु परिवर्तन को रोकने में काफी मदद मिलेगी। अनुमान है कि यदि कांफ्रेंस में भाग लेने वाले आधे से ज्यादा लोग ऑनलाइन न होकर व्यक्तिगत तौर पर उपलब्ध होते हैं, तो भी उसके बावजूद कांफ्रेंस का कार्बन फुटप्रिंट 67 फीसदी तक घट सकता है। 

यदि वैश्विक स्तर पर होने वाले सम्मेलन, आयोजनों और उससे जुड़े उद्योग के कुल कार्बन पदचिह्न को देखें तो वो अमेरिका के कुल वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग बराबर है। इस बारे में शोध और कॉर्नेल विश्वविद्यालय से सम्बन्ध रखने वाले शोधकर्ता फेंग्की यू ने बताया कि हम सभी सम्मेलनों में जाते हैं जिसके लिए हवाई जहाज की यात्रा करते हैं और सड़क परिवहन का उपयोग करते हैं। साथ ही होटलों में रहते हैं, लोगों से मिलते-जुलते और बात करते हैं।

एक साल में 150 करोड़ लोगों ने सम्मेलनों में भाग लेने के लिए की थी यात्राएं

यदि इस पर्दे के पीछे की समस्या को व्यापक रूप से देखें तो यह सब गतिविधियां बहुत बड़े पैमाने पर ऊर्जा की खपत करती है और कार्बन उत्सर्जन करती हैं। हम इन सम्मेलनों के लिए बहुत सारे प्रिंट लेते हैं, अलग-अलग भोजन की पेशकश करते हैं जिससे बड़े पैमाने पर म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट उत्पन्न होता है, लेकिन हम उनका उल्लेख नहीं करते हैं। हालांकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए भी बहुत सारे उपकरणों और ऊर्जा की जरुरत पड़ती है। ऐसे में इन सम्मेलनों के आयोजन में बहुत सी ऐसी बाते होती हैं, जिसपर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।

ऐसे में यू ने जानकारी दी है कि यदि उत्सर्जित होने वाली कार्बन की मात्रा का अध्ययन करने के साथ ही, क्षेत्रीय तौर पर सम्मेलनों के लिए सही स्थान का चयन करके और ऑनलाइन भागीदारी में इजाफा करके इन सम्मेलनों के कारण उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों में कमी की जा सकती है। 

शोध के अनुसार, 2017 में, करीब 180 देशों के 150 करोड़ लोगों ने सम्मेलनों में भाग लेने के लिए यात्राएं की थी। जिन पर करीब 189.7 लाख करोड़ रुपए का खर्च आया था। अध्ययन से पता चला है कि नियमित होने वाले अंतराष्ट्रीय सम्मलेन जिनमें औसतन 50 से ज्यादा लोग भाग लेते हैं उनकी संख्या पिछले एक दशक में दोगुनी हो चुकी है। इतना ही नहीं अनुमान है कि कन्वेंशन इंडस्ट्री का बाजार अगले एक दशक में 11.2 फीसदी की दर से बढ़ सकता है।

क्या है समाधान

शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि ऐसा होता है तो उससे उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों में भी वृद्धि हो जाएगी। यह भी पता चला है कि इन कॉन्फ्रेंस में प्रति भागीदार का कार्बन पदचिह्न 3,000 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के बराबर तक पहुंच चुका है। 

ऐसे में यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना है तो कार्यक्रम के आयोजकों को पर्यावरण और जलवायु पर भी ध्यान देने चाहिए। साथ ही महामारी से उबरने के बाद भी ऑनलाइन कांफ्रेंस को बढ़ावा देना चाहिए। वहीं यदि प्रतिभागियों को बुलाना भी है तो उन्हें उड़ान बुक करते समय रास्ते में ठहराव को कम करना चाहिए।

साथ ही हाइब्रिड और इन-पर्सन मीटिंग आयोजित करते समय आयोजकों को वो मीटिंग कहां करनी है उस स्थान का चयन भी ध्यान से करना चाहिए, जिससे परिवहन के साधनों और दूरी का भी ख्याल रखना होगा। वहीं ऊर्जा दक्षता में सुधार के साथ-साथ, नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को भी बढ़ाना महत्वपूर्ण है।