हवाई स्थित मौना लोआ वेधशाला के पूर्वानुमान के मुताबिक वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 2025 में खतरनाक रूप से बढ़ सकता है। गौरतलब है कि इसमें 2023 से 2024 के बीच सबसे तीव्र वृद्धि दर्ज की गई थी।
ब्रिटेन के मौसम कार्यालय द्वारा 17 जनवरी, 2025 को साझा की गई जानकारी के मुताबिक मई 2025 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 429.6 पीपीएम तक पहुंच सकता है। 20 लाख वर्षों में यह पहला मौका है, जब सीओ2 का यह स्तर इतना अधिक होगा।
आंकड़ों के मुताबिक 2024 से 2025 के बीच इसमें 2.26 पीपीएम की वृद्धि होने की आशंका है, जो वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के आईपीसीसी के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है।
पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए, सीओ2 और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में होती वृद्धि को पहले धीमा करना होगा और फिर उनमें कमी लानी होगी। आईपीसीसी के मुताबिक इसका मतलब है कि सीओ2 के बढ़ते स्तर को प्रति वर्ष करीब 1.8 पीपीएम तक धीमा करना होगा।
हालांकि, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर घटने की जगह बढ़ता जा रहा है और इसमें गिरावट के कोई संकेत नहीं दिख रहे।
1958 में हवाई के मौना लोआ में माप शुरू होने के बाद से 2024 में सीओ2 के स्तर में सबसे तेज दर से वृद्धि दर्ज की गई, जो मौसम विभाग के अनुमानों से कहीं ज्यादा थी। आंकड़ों के अनुसार 2023-2024 के बीच कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 3.58 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) की वृद्धि दर्ज की गई, जो 2.84 पीपीएम के पूर्वानुमान से कहीं ज्यादा है। वहीं उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों ने भी दुनिया भर में अच्छी-खासी वृद्धि की पुष्टि की है।
मौसम विभाग द्वारा किए अध्ययन के मुताबिक, सीओ2 के स्तर में रिकॉर्ड वृद्धि जीवाश्म ईंधन के रिकॉर्ड उत्सर्जन, वनों द्वारा कार्बन अवशोषण में आती कमी, और जंगलों में धधकती आग से होते उत्सर्जन से प्रेरित थी। इसके साथ ही प्राकृतिक स्रोतों द्वारा कार्बन अवशोषण में आती कमी ने भी इसमें भूमिका निभाई थी।
जब जंगल जलते हैं, तो वे बड़ी मात्रा में जमा कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, यूरोपीय यूनियन की कोपरनिकस एटमॉस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस (सीएएमएस) के अनुसार, 2023 में दुनिया भर के जंगलों में लगी आग से 730 करोड़ टन सीओ2 उत्सर्जित हुई थी।
2024 में जीवाश्म ईंधन से होने वाला वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 4,160 करोड़ टन के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया, जो 2023 में 4,060 करोड़ टन था।
इस साल सीओ2 का औसत स्तर 426.6 पीपीएम तक बढ़ने की आशंका है। हालांकि पिछले साल की रिकॉर्ड वृद्धि की तुलना में यह धीमी है। देखा जाए तो यह धीमी वृद्धि अभी भी आईपीसीसी के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के अनुरूप नहीं है।
क्या हैं इसके मायने
बता दें कि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड एक जाल के रूप में काम करती है जिसका उच्च स्तर गर्मी को रोकता है। इससे वैश्विक तापमान में इजाफा होता है। इसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं, जिसमें समुद्र के जलस्तर का बढ़ना, भयंकर सूखा, तूफान और बाढ़ की घटनाओं का होना शामिल है।
साथ ही वन्यजीवों और महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रणालियों को नुकसान होने के साथ-साथ इसके अन्य गंभीर प्रभाव भी पड़ते हैं।
वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर ने पहले ही वैश्विक तापमान को खतरनाक रूप से बढ़ा दिया है। 2023 को पीछे छोड़ 2024 में तापमान कहीं आगे निकल गया, जिससे यह अब तक का सबसे गर्म वर्ष बन गया है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के वार्षिक विश्लेषण के मुताबिक, 2024 में चरम मौसमी घटनाएं अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई, जो जलवायु परिवर्तन के बढ़ते जोखिमों को दर्शाता है।
2024 में रिकॉर्ड तापमान ने भीषण गर्मी, सूखा, लू, जंगल की आग, तूफान और बाढ़ जैसी घटनाओं को बढ़ावा दिया। इसकी वजह से जहां हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वहीं लाखों लोगों को अपने आशियानों को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के वार्षिक जलवायु सारांश, 2024 के मुताबिक, भारत में चरम मौसमी घटनाओं ने कम से कम 3,200 जिंदगियों को लील लिया था।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) का अनुमान है कि 2025 में बढ़ते वैश्विक तापमान से निजात मिलने की उम्मीद नहीं है। इसके चलते यह रिकॉर्ड के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक बन जाएगा।
इसकी वजह से चरम मौसमी घटनाएं भी बढ़ जाएंगी, जिन्हें 2025 से 2027 के लिए दूसरा सबसे गंभीर वैश्विक जोखिम माना गया है। अब यह जोखिम 28 देशों में शीर्ष पांच में है, जबकि पिछले वर्ष यह 24 देशों में था।
मौसम कार्यालय में पूर्वानुमान टीम का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर रिचर्ड बेट्स का कहना है, "तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि की प्रवृत्ति जारी रहेगी, क्योंकि वायुमंडल में सीओ2 बढ़ती रहेगी।"
उनका आगे कहना है कि, “हालांकि ला नीना के कारण इस साल वन और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक कार्बन अवशोषित कर सकते हैं। इससे अस्थाई रूप से सीओ2 की वृद्धि धीमी पड़ सकती है। लेकिन वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को थामने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को पूरी तरह से रोकना और फिर उसमें कमी लाना आवश्यक है।“
“उत्सर्जन में तेजी से की गई महत्वपूर्ण कटौती वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने में मदद कर सकती है, लेकिन इसके लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है।“