जलवायु

खतरे की घंटी: कार्बन डाइऑक्साइड ने तोड़ा पिछले आठ लाख वर्षों का रिकॉर्ड

एनओएए की एटमॉस्फेरिक बेसलाइन ऑब्जर्वेटरी के मुताबिक मई 2023 में वातावरण में मौजूद सीओ2 का स्तर 424 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) पर पहुंच गया है

Lalit Maurya

वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर नित नए रिकॉर्ड बना रहा है, जोकि पूरी मानवता के लिए खतरा है। ऐसा ही कुछ मई 2023 में भी दर्ज किया गया, जब कार्बन डाइऑक्साइड ने पिछले आठ लाख वर्षों का रिकॉर्ड का रिकॉर्ड तोड़ दिया था।

इस बारे में नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की मौना लोआ एटमॉस्फेरिक बेसलाइन ऑब्जर्वेटरी द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि मई 2023 में वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 424 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) पर पहुंच गया है। गौरतलब है कि ऐसा पिछले लाखों वर्षों में नहीं देखा गया है।

यदि पिछले आंकड़ों को देखें तो वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर औद्योगिक काल के शुरूआत की तुलना में अब 50 फीसदी तक बढ़ चुका है।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर उत्तरी गोलार्ध में अपने चरम पर पहुंच गया था। वहीं यदि मई 2022 से इसकी तुलना करें तो इसके स्तर में तीन पीपीएम की वृद्धि दर्ज की गई है। देखा जाए तो एनओएए के यह रिकॉर्ड कीलिंग कर्व के शिखर में चौथी सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं स्क्रिप्स इंस्टिट्यूट के के वैज्ञानिक, जो सीओ2 के स्वतंत्र रिकॉर्ड रखते हैं, उनकी गणना के मुताबिक मई में मासिक औसत स्तर 423.78 पीपीएम रिकॉर्ड किया था, जो उनके मई 2022 के औसत से तीन पीपीएम ज्यादा है।

देखा जाए तो यह कोई पहला मौका नहीं है जब कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में इस तरह से वृद्धि हो रही है। इससे पहले भी मई 2021 में महामारी के बावजूद सीओ2 का औसत मासिक स्तर 419.13 पीपीएम पर पहुंच गया था। देखा जाए तो यह कोई पहला मौका नहीं है जब कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में इस तरह से वृद्धि हो रही है। इससे पहले भी मई 2021 में महामारी के बावजूद सीओ2 का औसत मासिक स्तर 419.13 पीपीएम पर पहुंच गया था। वहीं मई 2020 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 417.1 पीपीएम रिकॉर्ड किया गया था।

इस बारे में एनओएए की ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी से जुड़े एक वरिष्ठ वैज्ञानिक पीटर टैन्स का कहना है कि इंसानों द्वारा उत्सर्जित की जा रही ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख गैस है, जोकि उत्सर्जन के बाद हजारों वर्षों तक वातावरण और महासागरों में बनी रह सकती है। उनके अनुसार हम हर वर्ष वातावरण में करीब 4,000 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ रहे हैं, जो हमारे वातावरण को दूषित कर रही है।

गौरतलब है कि मौना लोआ मौसम स्टेशन पर ऑन-साइट कार्बन डाइऑक्साइड के अवलोकन का श्रेय 1958 में स्क्रिप्स ओशनोग्राफी के एक भू-वैज्ञानिक चार्ल्स डेविड कीलिंग को जाता हैं, जिन्होंने सबसे पहले इसकी शुरूआत की थी।

उन्होंने सबसे पहले नोटिस किया था कि उत्तरी गोलार्ध में पैदावार के सीजन में सीओ2 का स्तर कम हो गया था। वहीं जब पतझड़ में पौधे मर गए तो इसका स्तर दोबारा बढ़ गया था। उन्होंने कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में इस बदलाव को कीलिंग कर्व के रूप में दर्ज किया था।

मानवता के लिए खतरा बन चुका है बढ़ता स्तर

इस बारे में एनओएए के प्रशासक रिक स्पिनराड का कहना है कि, "हर साल हम जलवायु में आते बदलावों के कारण बाढ़, सूखा, लू, भीषण गर्मी, दावाग्नि, और हमारे चारों और उठ रहे तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाओं को देख रहे हैं। हम इन आपदाओं से बच नहीं सकते हमें इनके अनुकूल होने की जरूरत है। इनसे बचने के लिए हमें बढ़ते कार्बन प्रदूषण को कम करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए जिससे इस ग्रह और इसे घर कहने वाले जीवन को बचाया जा सके।“

उनके मुताबिक वनों का होता विनाश, सीमेंट निर्माण, कृषि, परिवहन, विद्युत के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग वातावरण में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड प्रदूषण के लिए जिम्मेवार है।

कार्बन डाइऑक्साइड अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तरह सतह से परिवर्तित होने वाली ऊष्मा को ट्रैप कर लेती है और उसे अंतरिक्ष में जाने से रोक  देती है। नतीजन धरती का तापमान बढ़ रहा है उसकी वजह से चरम मौसमी घटनाएं कहीं ज्यादा विकराल रूप ले रहीं हैं और उनकी आवृति भी पहले से ज्यादा बढ़ गई है।

इतना ही नहीं वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर समुद्रों के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड और अतिरिक्त गर्मी को सोख लेते हैं। इसकी वजह से न केवल समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है साथ ही उनका पानी में अम्लीकरण बढ़ रहा है।

समुद्री जल में मौजूद ऑक्सीजन का स्तर घट रहा है। इसकी वजह से जीवों के विकास पर असर पड़ रहा है। देखा जाए तो इसका खामियाजा समुद्र में रहने वाले किसी एक जीव को नहीं बल्कि पूरे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भुगतना पड़ रहा है।