जलवायु

क्या जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल करने में मददगार हो सकता है बड़े जीवों का संरक्षण

Lalit Maurya

क्या बड़े स्तनधारी जीवों जैसे हाथी, गैंडा, जिराफ, व्हेल आदि का संरक्षण जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल करने में मददगार हो सकता है। इसे समझने के लिए हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड ने एक नया अध्ययन किया है जोकि जर्नल करंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

यदि हम अपने समय की पर्यावरण से जुड़ी दो सबसे बड़ी समस्याओं की बात करें तो उनमें जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता में तेजी से आती गिरावट प्रमुख है। ऐसे में इन दोनों समस्याओं से एक साथ निपटना अत्यंत जरुरी हो जाता है। हालांकि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जानवरों की तुलना में वनस्पति पर कहीं ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। 

यदि हम अपने समय की पर्यावरण से जुड़ी दो सबसे बड़ी समस्याओं की बात करें तो उनमें जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता में तेजी से आती गिरावट प्रमुख है। ऐसे में इन दोनों समस्याओं से एक साथ निपटना अत्यंत जरुरी हो जाता है। हालांकि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जानवरों की तुलना में वनस्पति पर कहीं ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में इस शोध में यह समझने का प्रयास किया गया है कि क्या बड़े जंगली जीव पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने और जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से निपटने में मददगार हो सकते हैं। 

इस बारे में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रोफेसर यदविंदर मल्ही का कहना है कि आमतौर पर संरक्षण के प्रयास पेड़ों और कार्बन या फिर बड़े स्तनधारी जीवों के व्यापक संरक्षण पर केंद्रित हैं। इस शोध में यह समझने का प्रयास किया गया है कि क्या बड़े जंगली जीवों की रक्षा और उनकी बहाली जलवायु परिवर्तन से निपटने और अनुकूलन में भी मददगार हो सकती है। 

अपने इस शोध में वैज्ञानिकों ने जिन तीन प्रमुख इको-टचपॉइंट्स पर प्रकाश डाला है उनमें कार्बन स्टॉक, एल्बिडो प्रभाव (सौर विकिरण को प्रतिबिंबित करने की  सतह की क्षमता) और जंगल में लगने वाली आग को शामिल किया है। इन इको-टचपॉइंट्स को हाथी, गैंडा, जिराफ और व्हेल जैसे बड़े जंगली जीव प्रभावित कर सकते हैं और इस तरह वो जलवायु परिवर्तन पर भी असर डालते हैं।  

जलवायु परिवर्तन से निपटने में कैसे मददगार होते हैं यह जीव

गौरतलब है कि जब बड़े शाकाहारी जीव जैसे हाथी, गैंडा और जिराफ आदि चरते हैं तो वो बड़ी संख्या में बीजों को फैलाते, वनस्पति को साफ करते और मिट्टी को उर्वरक बनाते हैं। उनकी यह गतिविधियां कहीं अधिक जटिल और लचीले पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण में मदद करती हैं। इन गतिविधियों की वजह से मिट्टी, जड़ों और पौधों के ऊपरी हिस्सों में कार्बन स्टॉक को बनाए रख सकती हैं या फिर उसमें इजाफा कर सकती हैं। देखा जाए तो इसकी वजह से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है।    

इसी तरह जब यह बड़े जीव वनस्पतियों को चरते और रौंदते हैं तो वो घनी झाड़ियों और पेड़ों के झुरमुट को ज्यादा बिखरा देते हैं, जिससे वो खुले में बदल जाते हैं। इतना ही नहीं यह जीव ध्रुवों पर भी सतह को वनस्पति मुक्त कर देते हैं जिससे बर्फ की सतह भी प्रकट हो जाती है। इसकी वजह से सूर्य से आने वाला विकरण वनस्पति द्वारा अवशोषित होने की जगह कहीं ज्यादा मात्रा में परावर्तित होने लगता है। परिणामस्वरूप सतह तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा ठंडी रहती है।  

यदि 2021 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उस दौरान वैश्विक स्तर पर जंगल में लगी आग से होने वाला कार्बनडाइऑक्साइड उत्सर्जन अपने चरम पर पहुंच गया था। गौरतलब है कि जंगल में लगने वाली आग से बड़ी मात्रा में कार्बनडाइऑक्साइड वातावरण में मुक्त होती है जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देती है। वहीं जब हाथी, जेबरा, गैंडे जैसे बड़े चरने वाले जीव विचरण करते हैं तो वो वनस्पति को रौंदते हुए चलते हैं जिस वजह से वनस्पति और पेड़ों के बीच अंतराल बन जाता है यह अंतराल एक बैरियर के रूप में काम करता है जो आग को आगे फैलने से रोकता है जिसकी वजह से दावाग्नि का जोखिम कम हो जाता है। 

वैज्ञानिकों के मुताबिक उष्ण, उपोष्ण और समशीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों में भी यह बड़े जंगली जीव झाड़ियों को कम करने और एल्बिडो को बढ़ाने में मददगार होते हैं, साथ ही वो वनस्पति और मिट्टी में मौजूद कार्बन को बनाए रखने में भी मददगार होते हैं। ऐसे में इन बड़े जीवों का संरक्षण इन जटिल परिस्थितिकीतंत्रों में स्थानीय जैवविविधता और इकोसिस्टम को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के काबिल बनाती है। 

इस बारे में शोध और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से जुड़ी शोधकर्ता टोन्या लैंडर का कहना है कि यह जीव वनस्पतियों और आवासीय में विविधता में वृद्धि करके इन स्थानीय तौर पर इन इकोसिस्टम को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद कर सकते हैं। प्रजातियों और सूक्ष्म आवासों में विविधता इन पारिस्थितिकी तंत्रों को और अधिक सक्षम बना सकती है।

इसी तरह जब टुंड्रा इकोसिस्टम में बड़े शाकाहारी जीव मौजूद होते हैं तो वो अन्य पौधों के अतिक्रमण को कम करके स्थानीय फूलों वाले पौधों और घासों को बढ़ावा देते हैं। इसकी वजह से सतह का ज्यादा हिस्सा ठंडी हवा के संपर्क में आ पाता है। इस तरह का संपर्क पर्माफ्रॉस्ट को बनाए रखने में मदद करता है, साथ ही यह कार्बन को मिट्टी से वातावरण में भी मुक्त होने से रोकता है। ऐसे में आर्कटिक टुंड्रा में बायसन जैसे जीवों को दोबारा पुनर्जीवित करने वाले कार्यक्रम स्थानीय स्तर पर जीवों के संरक्षण और जलवायु अनुकूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 

वहीं समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में, व्हेल और अन्य बड़े जीव फाइटोप्लांकटन को बढ़ाने में मदद करते हैं। अनुमान है कि यह फाइटोप्लांकटन हर साल करीब 3,700 करोड़ टन कार्बन को सोख सकते हैं। इतना  ही नहीं यह जीव सूर्य से आने वाले विकिरण को भी परावर्तित करने में मददगार होते हैं। इनके साथ ही समुद्र और स्थलों पर रहने वाले बड़े मांसाहारी जीव भी इसमें अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि यह जीव शाकाहारी जीवों की आबादी और व्यवहार पर असर डालते हैं। 

यदि पर्यावरण पर बढ़ते इंसानी प्रभाव की बात करें तो जैवविविधता पर इंसान ने व्यापक प्रभाव डाला है। धरती पर मौजूद कुल जंगली स्तनपायी जीवों को देखें तो उनका कुल बायोमास कार्बन यूनिट में करीब 7 टेराग्राम (700 करोड़ किलोग्राम) है, जोकि आज से करीब एक लाख साल पहले प्लाइस्टोसीन युग के दौरान 40 टेराग्राम (4,000 करोड़ किलोग्राम) था।

इसका मतलब है कि इस अवधि के दौरान इसमें करीब छह गुना कमी आई है, जो अभी भी तेजी से जारी है। वहीं दूसरी तरफ यदि इंसानी बायोमास की बात करें तो वो बढ़कर 60 टेराग्राम (6,000 करोड़ किलोग्राम) और पशुधन 100 टेराग्राम (10,000 करोड़ किलोग्राम) पर पहुंच चुका है। ऐसे में जिस तरह से इन जीवों की विविधता और आबादी में कमी आ रही है वो न केवल इन जीवों बल्कि पूरे इकोसिस्टम के लिए खतरा है।

ऐसे में इन जीवों का संरक्षण और बहाली एक तरफ जहां इन जीवों के अस्तित्व को बचाने में मददगार होगा साथ ही पूरे इकोसिस्टम को बचाने में भी अहम भूमिका निभाएगा और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी योगदान देगा।