जलवायु

हिमालयी क्षेत्र में मिले ग्लेशियर्स को नुकसान पहुंचाने वाले भूरे रंग के कार्बन टारबॉल्स

गंगा के मैदानी भागों में बॉयोमास या जीवाश्म ईंधन के जलाए जाने से प्रकाश अवशोषित करने वाले यह कार्बन कण (टारबॉल्स) निकलते हैं जो कि जमी हुई बर्फ पर बैठ जाते हैं

Vivek Mishra

दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव से बाहर अगर कहीं ग्लेशियर वाली बर्फ सबसे ज्यादा जमा है तो वह जगह है हिमालय-तिब्बती पठार। इसे तीसरा ध्रुव (थर्ड) पोल भी कहा जाता है। दशकों से ग्लेशियर्स की गुणवत्ता खराब हो रही है। वहीं, अब हिमालयी वातावरण में उत्तरी ढलान पर वातावरण में प्रकाश अवशोषित करने वाले टारबॉल्स (काले और भूरे रंग के कार्बन कण) की निशानदेही हुई है जो कि ग्लेशियर्स को पिघलाने की प्रक्रिया को बढ़ा सकते हैं।

एसीएस एनवॉयरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स में 4 नवंबर, 2020 को प्रकाशित जर्नल में शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट किया है कि हिमालय के उत्तरी सिरे वाली ढलान पर बेहद ऊंचाई पर मौजूद रिसर्च स्टेशन से झिजियांग यूनिवर्सिटी के वीजुन ली और उनके सहयोगियों ने हवा का नमूना लिया था और वे यह देखना चाहते थे कि किस तरह के एअरोसोल पार्टिकल उसमें मौजूद हैं। हवा के नमूनों की जांच के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का इस्तेमाल किया गया और परिणाम चौंकाने वाले रहे।

वैज्ञानिकों ने पाया कि हवा के नमूनों में अप्रत्याशित तौर पर एक हजार कणों में 28 फीसदी कण टारबॉल्स थे। गंगा के मैदानी भागों में बॉयोमास या जीवाश्म ईंधन के जलाए जाने से प्रकाश अवशोषित करने वाले यह कार्बन कण (टारबॉल्स) निकलते हैं जो कि जमी हुई बर्फ पर बैठ जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कणों से ग्लेशियर्स के पिघलने की गति बढ़ सकती है। हालांकि, अभी भूरे रंग के टारबॉल्स के होने का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला है।

पूर्व के शोध यह बताते हैं कि ब्लैक कॉर्बन नाम से पुकारे जाने वाले कण हिमालयी क्षेत्र में हवा के जरिए लंबी दूरी तय कर सकते हैं। लेकिन भूरे कार्बन कण, जिनके होने के बारे में अभी जानकारी बहुत ही कम है। यह भी टारबॉल्स का ही एक रूप हैं। टारबॉल्स बेहद छोटे और खतरनाक कण होते हैं जो अपने साथ कॉर्बन, ऑक्सीजन और कम मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर व पोटेशियम को भी लिए रहते हैं।

ताजा शोध में कहा गया है कि उच्च प्रदूषण वाले दिनों में टारबॉल्स में बढ़ोत्तरी देखी गई है। यह सिर्फ ग्लेशियर्स को पिघलाने वाली ही नहीं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाली भी है। शोध में प्राप्त आंकड़ों में कहा गया है कि गंगा के मैदानी भागों में बेहद घनी और सक्रिय आग थी, यह गेहूं के अवशेषों को जलाए जाने की थी, जहां से उठने वाले कण हवा के साथ हिमालय के उत्तरी ढ़लान पर स्थित स्टेशन तक पहुंच रहे थे। 

अध्ययन में कहा गया है कि अत्यधिक मिश्रित टारबॉल्स का औसत आकार 213 और आंतरिक तौर पर मिश्रित टारबॉल्स का औसत आकार 348 नैनोमीटर था। शोधार्थी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि टारबॉल्स जो कि लंबी दूरी हवा के साथ तय कर सकते हैं वे जलवायु प्रभाव के बड़े कारक हो सकते हैं साथ ही हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर्स के पिघलने का वाहक भी बन सकते हैं। ऐसे में इन टारबॉल्स पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।