जलवायु

जलवायु टिपिंग प्वाइंट्स को पार करने की दुनिया को चुकानी पड़ सकती है तीन गुना कीमत

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन आज दुनिया के सामने खड़ी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, जिसके परिणाम सारी दुनिया को भुगतने पड़ रहे हैं। कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा, कहीं तूफान और लू (हीटवेव), जैसी आपदाओं का आना आम होता जा रहा है, जिसकी अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

हाल ही में इस विषय पर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस, डेलावेयर और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि यदि जलवायु टिपिंग पॉइंटस अपनी सीमा को पार कर जाते हैं तो उसके चलते मौजूदा जलवायु संकट और उसके आर्थिक प्रभावों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। गौरतलब है कि इन आर्थिक प्रभावों का अनुमान लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक नए मॉडल की मदद ली है।

अध्ययन से पता चला है कि यदि यह टिपिंग प्वाइंट्स अपनी सीमा को पार कर जाते हैं तो पिछले अनुमानों की तुलना में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में लगभग 25 फीसदी का इजाफा हो सकता है। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने जिस जलवायु परिदृश्य का मॉडल तैयार किया है उसमें नुकसान को बहुत कम करके आंका गया है। यह जलवायु टिपिंग पॉइंट वास्तव में इससे बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।

उनके अनुसार शोध से पता चला है कि इस बात की करीब 10 फीसदी सम्भावना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान दोगुना हो सकता है जबकि इस नुकसान के तीन गुना होने की 5 फीसदी सम्भावना है। यही नहीं स्थानिक विश्लेषण से पता चलता है कि इनके कारण होने वाले आर्थिक नुकसान का बोझ दुनिया के लगभग हर स्थान पर पड़ेगा। इस मॉडल में दुनिया के 180 देशों में बढ़ते तापमान और समुद्र के जलस्तर के कारण राष्ट्रीय स्तर पर होती जलवायु क्षति को शामिल किया गया है। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

क्या हैं यह जलवायु टिपिंग पॉइंट्स

यह टिपिंग पॉइंटस विनाश की ड्योढ़ी हैं, जिसको पार करने के बाद धरती पर विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे। मान्यता है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि एक बार निर्धारित सीमा को पार कर जाएगी तो उसके चलते वातावरण में अचानक बड़े बदलाव सामने आएंगे, जो सबसे ज्यादा इन टिप्पिंग पॉइंट पर ही प्रकट होंगें जैसे कि अमेज़न वर्षावन सूख जाएंगे और पहाड़ों और समुद्रों पर जमा बर्फ की चादर पिघल जाएंगी।

इस शोध में शोधकर्ताओं ने जिन आठ टिप्पिंग पॉइंट का अध्ययन किया हैं उनमें:

  • पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना शामिल है जिसके कारण अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जित होती है जो वापस कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन चक्रों में प्रवाहित हो सकती है।
  • महासागरों में मीथेन हाइड्रेट्स का अलग होना, जिसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त मीथेन उत्सर्जित होती है।
  • आर्कटिक समुद्र में जमा बर्फ का पिघलना जो ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करता है।
  • अमेजन वर्षा वनों को होने वाला नुकसान, जिसके कारण कार्बन डाइऑक्साइड दोबारा वातावरण में मुक्त होती है।
  • ग्रीनलैंड में जमा बर्फ का पिघलना जो समुद्र के बढ़ते जलस्तर के लिए जिम्मेवार है।
  • पश्चिम अंटार्कटिक में जमा बर्फ की चादर का पिघलना जो समुद्र के जलस्तर में होती वृद्धि का कारण है।
  • अटलांटिक सर्कुलेशन पर पड़ता असर जो सतह के औसत वैश्विक तापमान पर असर डालता है।
  • और भारतीय मानसून में आता बदलाव जो सीधे तौर पर भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद को प्रभावित करता है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन सभी आठ टिपिंग प्वाइंट्स में से महासागरों में मीथेन हाइड्रेट्स का अलग होना और पर्माफ्रॉस्ट दो ऐसे टिप्पिंग पॉइंट हैं जिनके कारण सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान होगा। अकेले महासागरों में मीथेन हाइड्रेट्स के अलग होने से आर्थिक नुकसान में करीब 13.1 फीसदी की वृद्धि होगी जबकि पर्माफ्रॉस्ट, नुकसान में होने वाली 8.4 फीसदी वृद्धि के लिए जिम्मेवार होगा। शोधकर्ताओं ने इन टिपिंग प्वाइंट्स में भारतीय मानसून में आ रहे बदलावों और उसके कारण आ रही बाढ़ और सूखे को भी शामिल किया है जो वैश्विक स्तर पर नुकसान में होने वाली 1.3 फीसदी वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। 

हाल ही में जर्नल नेचर में छपे एक अन्य शोध से पता चला है कि यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को जल्द से जल्द रोक दिया जाए तो क्लाइमेट टिपिंग पॉइंटस के विनाशकारी परिणामों को रोका जा सकता है। हालांकि शोध के अनुसार हमारे पास इसपर काम करने के लिए कितना समय बाकी है यह ग्लोबल वार्मिंग के स्तर और प्रत्येक टिपिंग पॉइंट में शामिल टाइमस्केल पर निर्भर करेगा। ऐसे में यह जरुरी है कि इन विनाशकारी परिणामों को रोकने के लिए हम जल्द से जल्द ठोस और कारगर कदम उठाएं।