बिहार में नई सत्ता के लिए चुनाव का दौर जारी है। जीत और हार की बहस के गोले में अहम मुद्दे विलीन दिखाई पड़ते हैं, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो चुनावी घोषणा पत्रों पर अंकित हो गए हैं और जिनके जरिए पांच साल तक सरकार को उसकी याद दिलाई जा सकती है। इन्हीं में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं। बिहार में संभवतः पहली बार बाढ-सुखाड़ की समस्या से जनता को निजात दिलाने के वादे से इतर वायु प्रदूषण के मुद्दे को भी चुनावी घोषणा पत्र में जगह मिली है। डाउन टू अर्थ ने बिहार में राजनीतिक दलों की ओर से जारी चुनावी घोषणा पत्रों में इन मुद्दों की जांच-परख की है। पढ़िए विश्लेषण:
वायु प्रदूषण इन दिनों दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि निम्न आय वर्ग वाले राज्यों के लिए भी एक बड़ी समस्या है। शायद यही वजह है कि वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए चुनावी घोषणापत्रों में उसे जगह दी गई है।
वायु प्रदूषण के मुद्दे पर जहां जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने सात सूत्री घोषणापत्र में स्पष्ट और प्रत्यक्ष तौर पर कुछ नहीं कहा है। वहीं, सबसे स्पष्ट तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और फिर दूसरे स्थान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपनी योजनाओं का जिक्र चुनावी घोषणापत्र में किया है।
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने 20 पृष्ठ वाले अपने चुनावी घोषणा पत्र में जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रतिबद्धताओं में क्लीन एयर को लेकर एक पन्ना रखा है। इसमें आरजेडी ने कहा है कि बिहार में क्लीन एयर फ्रेमवर्क बनाया जाएगा, प्रमुख शहरों में क्लीन एयर प्रोग्राम भी बनेगा। वायु गुणवत्ता की निगरानी पर भी जोर होगा। रीयल टाइम मॉनिटिरिंग एयर स्टेशन भी लगाए जाएंगे। इसके अलावा स्थायी परिवहन व्यवस्था के लिए डीजल वाहनों को सीएनजी और इलेक्ट्रिकल वाहनों में तब्दील किय जाएगा। पटना, गया, मुजफ्फरपुर में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर भी बनाने की बात कही गई है।
जबकि कोरोना के लिए फ्री टीके का वादा करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 5 सूत्र, एक लक्ष्य और 11 संकल्प वाले अपने 12 पृष्ठ के चुनावी घोषणापत्र में यूएनओ के बहाने वाहनों से होने वाले प्रदूषण के प्रति चिंता दिखाई है और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को ठीक करने का वादा किया है। इसके लिए सभी प्रमंडलों में अंतरर्राज्यीय बस टर्मिनल का निर्माण करने का वादा किया गया है। कचरे के प्रबंधन पर भी विशेष जोर की बात कही गई है।
जनता दल यूनाइटेड ने जल-जीवन-हरियाली अभियान के जरिए पर्यावरण संरक्षण की बात कही है। हालांकि सीधे-सीधे वायु प्रदूषण को लेकर कुछ भी नहीं कहा है। न ही सार्वजनिक परिवहन की आगे की योजना को लेकर कोई बात कही गई है।
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वायु प्रदूषण को लेकर कुछ भी नहीं कहा है। हां, पटना में मेट्रो परियोजना और स्मार्ट व इंटरसिटी बसों के संचालन का वादा किया है। इसके अलावा कचरा संकलन एवं निष्पादन का भी वादा किया गया है। यानी अप्रत्यक्ष तौर पर वेस्ट बर्निंग मुद्दे को शामिल किया गया है।
कृषि, बटाईदारी, जमीन का मालिकाना, भूमिहीन किसानों जैसे मुद्दों पर जोर देने वाले भाकपा माले और भाकपा (एम) के घोषणापत्रों में भी वायु प्रदूषण और सार्वजनिक परिवहनों की योजनाओं को लेकर खामोशी है।
लोक जनशक्ति पार्टी के विजन डॉक्यूमेंट-2020 में भी वायु प्रदूषण और सार्वजनिक परिवहन को लेकर कोई बात नहीं की गई है।
जल संरक्षण, जल प्रदूषण, जलभराव, बाढ़, सुखाड़ :
बिहार की राजधानी पटना में 2019 में जीवन हर लेने वाले जलभराव की समस्या के दृश्य शायद समाज के दिमाग से मिटे नहीं होंगे। भूलने की कोशिश यदि की भी होगी तो हाल ही में हैदराबाद ने याद दिला दिया होगा। इस जलभराव की समस्याओं की तहों में बरसात के पानी के निकासी के लिए प्राकृतिक नालियों, तालाबों के अतिक्रमण जैसी समस्याएं मूल हैं। वहीं, बाढ़, सुखाड़ और जल प्रबंधन को लेकर ज्यादातर पार्टियों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर चुनावी घोषणा पत्रों में जगह तो दी है लेकिन यह नहीं बताया है कि वह कोई पुराने और विफल माने जाने वाले रास्ते ही अपनाएंगे या उनका कोई नया रास्ता होगा।
बिहार के उत्तरी हिस्से में बाढ़ की समस्या है तो दक्षिणी हिस्से में सूखे की समस्या है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इस लाइन को अपने चुनावी मैनिफेस्टो में दोहराया है। लेकिन इसके समाधान का रास्ता क्या होगा? इस बारे में कुछ भी बताने से बचा गया है। मौजूदा सराकर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी तालाबों के अतिक्रमण मुक्त करने का ऐलान किया था लेकिन यह सिर्फ ऐलान ही रह गया।
जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने 7 निश्चय वाले चुनावी मैनिफेस्टो में पर्यावरण संरक्षण के लिए पहले से ही चल रहे जल-जीवन-हरियाली अभियान के कार्यक्रमों को पूरी तरह से लागू करने का वादा किया है। जल जीवन हरियाली कार्यक्रम में जल प्रबंधन और पौधरोपण प्रमुख कार्यक्रम हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन अभी तक ठोस रुप से हुआ नहीं हैं। बहरहाल घोषणापत्र में कहा गया है कि हर घर तक नल का जल और पक्की नालियों की देखभाल की जाएगी। इसके अलावा हर खेत तक सिंचाई की व्यवस्था के लिए जल और जल-मल ट्रीटमेंट की व्यवस्था का वादा भी किया गया है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अपने 20 पेज के चुनावी घोषणा पत्र में एक पन्ना जलवायु परिवर्तन से सबंधिति प्रतिबद्धताओं के लिए रखा है। इस पन्ने में सौर ऊर्जा पर अच्छा खासा जोर दिया गया है। खासतौर से खेतों में सिंचाई के लिए सोलर पंप, सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों को सौर ऊर्जा से लैस करने की बात कही गई है। वहीं, एक विशिष्ट जल नीति बनाने की बात कही गई है जिसमें पारंपरिक जल स्रोतों जैसे तालाब, अहर-पईन आदि के पुनरुद्धार की बात कही गई है। वहीं, पेयजल संकट का समाधान और जल प्रदूषण पर रोकथाम के लिए जोर दिया जाएगा।
भाकपा (एम) अपने मैनिफेस्टो में बाढ़ को सरकारी लूट का जरिया बताती है लेकिन उनके पास बाढ़ से बचाव की क्या नीति है और उनकी सूखाग्रस्त क्षेत्रों में अतिरिक्त जल कहां से और कैसे पहुंचाएंगे। इसे नहीं बताते हैं। बल्कि बाढ़ और सुखाड़ का स्थायी निदान कहकर बात को खत्म करते हैं। इनके मैनिफेस्टो में कृषि संकट के कॉलम में गांवों में होने वाले जलभराव का जिक्र जरूर है लेकिन शहरी जलभराव की व्यवस्था को दुरुस्त करने का कोई आश्वासन नहीं दिखाई देता।
भाकपा-माले ने लिखा है शहरों का लोकतांत्रिकरण होगा लेकिन इस समस्या या इसके समाधान का जिक्र नहीं किया है। हां, यह जरूरी है कि जनसुविधाओं के कॉलम में सिर्फ आपदा प्रबंधन की बात कही गई है।
कांग्रेस ने लिखा है बिहार के सभी शहरों का मास्टर प्लानिंग का रिव्यू किया जाएगा और तय समयसीमा में क्रियान्वयन कराया जाएगा। इसमें जलभराव की समस्या का न तो जिक्र है और न ही कोई समाधान की बात। हालांकि, सभी को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति और अधिकार की बात पर जोर दिया गया है।
नदियों का पानी: सभी का भरोसा
लोजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि वे नदियों के जोड़ परियोजना की तरह बिहार की नदियों के पानी को नहरों के द्वारा एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाएंगे।
जनता दल यूनाइटेड इस तरह का काम कर रही है।
कांग्रेस ने जल का अधिकार पर जोर दिया है। साथ ही बांधों में जल भंडारण क्षमता को बढ़ाने पर जोर देने की बात की है।
नेपाल से नदियों के पानी की सूचनाओं के आदान-प्रदान और मौसम गतिविधियों पर ज्यादा जोर दिए जाने को लेकर ज्यादातर पार्टियों के पास कोई विजन नहीं है। जबकि असमय और अल्पसमय में वर्षा की तीव्रता ने कृषि प्रधान बिहार के किसानों को काफी परेशान किया है। इसी तरह से सूखाग्रस्त इलाकों में जल उपलब्ध कराने को लेकर पारंपरिक जल स्रोतों पर भरोसा बढ़ाने के बजाए चुनावी घोषणापत्रों में नदियों का पानी ही इधर से उधर पहुंचाने पर जोर दिया गया है। हालांकि, वायु प्रदूषण और पारंपरिक जल स्रोतों के साथ ही अक्षय ऊर्जा पर ज्यादा जोर दिए जाने की बहस का चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल होना, आगामी चुनावों के लिए एक नया संकेत है।