जलवायु

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ काम करने में विफल रहे हैं एडिडास, प्यूमा, अंडर आर्मर और नाइक जैसे बड़े ब्रांड

इस स्कोरकार्ड में फैशन और स्पोर्टस से जुड़े 47 बड़े नामों द्वारा उत्पादों के निर्माण, सामग्री और शिपिंग में जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा की गई है

Lalit Maurya

हाल ही में फैशन उद्योग को लेकर जारी वार्षिक फॉसिल फ्री फैशन स्कोरकार्ड से पता चला है कि दुनिया के प्यूमा, लिवाइस और नाइक जैसे नामी-गिरामी ब्रांड जलवायु परिवर्तन को लेकर की गई अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहे हैं। इस स्कोर कार्ड को आज 24 अगस्त 2021 को स्टैंड डॉट अर्थ द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस स्कोरकार्ड में दुनिया के 47 प्रमुख ब्रांड द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने के लिए उठाए गए कदमों और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए किए योगदान की समीक्षा की गई है। इसके आधार पर इन ब्रांडस को ग्रेड दी गई है।

देखा जाए तो फैशन खरबों डॉलर की इंडस्ट्री है, जिसके बारे में अनुमान है कि उसके कारण होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन आने वाले दशकों में काफी बढ़ सकता है। ऐसे में पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उससे उम्मीद थी कि वो अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतरेगी, पर हाल ही में प्रकाशित इस स्कोरकार्ड से तो कुछ अलग ही तस्वीर सामने आई है। इससे पता चलता है कि फैशन कंपनियां जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं कर रही हैं, जिसकी सख्त जरुरत है। 

इस स्कोरकार्ड से पता चला है कि स्पोर्ट्सवियर बनाने वाले ब्रांड इस दौड़ में सबसे आगे हैं। जिसमें मैमट को बी- स्कोर दिया गया है, जो सबसे ऊपर है। वहीं नाइक को सी +, एसिक्स, प्यूमा, लिवाइस, वीएफ कॉर्प को सी ग्रेड दी गई है, जबकि एडिडास, एच एंड एम और पेटागोनिया को सी-  दिया गया है। गैप, एलीन फिशर, न्यू बैलेंस, इंडीटेक्स, राल्फ लॉरेन आदि को डी दिया गया है। वहीं बरबरी, सी एंड ए, चैनल, कोलोम्बिया, गैंट, गेस, सोलोमन, लुलुलेमोन जैसे ब्रांड को डी- दिया है। वहीं आल्डो, एवरलेन, स्पिरिट, कैप्री, मार्क्स एंड स्पेंसर, पेंटलैंड, प्राडा, प्रीमार्क और अंडर आर्मर जैसे ब्रांड्स को एफ ग्रेड दिया गया है। 

बेहतर कल के लिए जरुरी है बदलाव  

जीवाश्म ईंधन का उपयोग इन कंपनियों की एक बड़ी समस्या है। यह उद्योग बड़े पैमाने पर सामग्री के प्रसंस्करण, कपड़ों, जूतों और अन्य उत्पादों के निर्माण के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हैं।  यही नहीं यह अपने उत्पादों के निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में प्लास्टिक फाइबर का इस्तेमाल करते हैं जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से हानिकारक है। 

इस बारे में स्टैंड डॉट अर्थ के मुहन्नद मालास ने बताया कि कंपनियों को अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाने होंगे। अगर फैशन कंपनियां वास्तव में जलवायु संकट को हल करना चाहती हैं तो उन्हें अपने जीवाश्म ईंधन के उपयोग को बंद करने और पॉलिएस्टर जैसी सामग्री को अलविदा कहने की जरुरत है। 

इनमें से काफी उद्योग वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों में स्थापित है जो काफी हद तक थर्मल पॉवर पर निर्भर हैं ऐसे में वो बड़े पैमाने पर उत्सर्जन कर रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण का कारण बन रहा है जिसमें बदलाव की जरुरत है। हालांकि कुछ कंपनियां अक्षय ऊर्जा के उपयोग पर बल दे रही हैं। वहीं कई कंपनियों ने हाल ही में पॉलिएस्टर और नायलॉन जैसी सामग्री के स्थान पर चरणबद्ध तरीके से बेहतर सामग्री के उपयोग की घोषणा की है। लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर इनसे होने वाला कचरा लैंडफिल में जा रहा है जो पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसे खत्म करना जरुरी है।     

देखा जाए तो फैशन उद्योग बड़े पैमाने पर समुद्र और वायु मार्ग से शिपिंग पर निर्भर है, जो बड़े पैमाने पर दुनियाभर में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेवार है। अनुमान है कि आनेवाले कुछ दशकों में शिपिंग की यह जरुरत नाटकीय रूप से काफी बढ़ जाएगी। स्कोरकार्ड के मुताबिक एडिडास, मैमट, नाइक और प्यूमा जैसे कुछ ब्रांड ने अपनी आपूर्ति श्रृंखला के दौरान होने वाले उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य में शिपिंग को शामिल किया है।

हाल ही में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा जारी रिपोर्ट में भी जलवायु परिवर्तन को दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बताया है। रिपोर्ट के मुताबिक यदि हम जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करने में विफल रहते हैं तो आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम सामने आएंगे।  ऐसे में यह जरुरी है कि फैशन कंपनियां जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए ठोस कदम उठाएं। साथ ही अक्षय ऊर्जा और पर्यावरण अनुकूल सामग्री पर जोर दिया जाना चाहिए, जिससे हम अपने आने वाले कल को बेहतर बना सकें।