जलवायु

बाइडेन - जलवायु शिखर सम्मेलन: ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती को फिर तैयार हुई दुनिया

Avantika Goswami

अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन ने पिछली 22 अप्रैल को जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन ने जलवायु को एक बार फिर से वैश्विक फलक पर महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में स्थापित कर दिया है। साथ ही सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए भी बाध्य किया है। अमेरिका ने सम्मेलन के समापन के अवसर पर पेरिस समझौता - 2015 के आधार पर अपने नये राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों को भी घोषित किया।

क्या हैं अमेरिका के नये एनडीसी लक्ष्य –

अमेरिका ने अपने नये और दोबारा से तय किए गए एनडीसी लक्ष्यों में ग्रीन हाउस गैसों ( जीएचजी ) के उत्सर्जन में बड़ी कमी का ऐलान किया है। नए एनडीसी लक्ष्य के मुताबिक अमेरिका ने कहा है कि वह वर्ष 2005 के जीएचजी उत्सर्जन स्तर की तुलना में 2030 तक 50 से 52 प्रतिशत की कमी करेगा। इसके अलावा अमेरिका ने साल 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को  ”नेट जीरो उत्सर्जन” तक पहुंचाने की प्रतिबद्दता भी जाहिर की है।

बहरहाल विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि 2030 तक जीएचजी में 38 प्रतिशत की कमी  का लक्ष्य उनकी पिछली प्रतिबद्धता उत्सर्जन के लक्ष्य से 12 प्रतिशत अधिक है। यह अमेरिका के उस दावे के भी उलट है, जिसमें उसने अपने पिछले एनडीसी के दोगुने स्तर को हासिल करने का दावा किया है। क्योंकि अमेरिका का पिछला एनडीसी लक्ष्य था कि वर्ष 2025 तक वह जीएचजी उत्सर्जन में 25 से 26 प्रतिशत की कमी करेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अमेरिका के दावे की तुलना 2005 के बजाए 1990 को आधार वर्ष मान कर करें तो जीएचजी के उत्सर्जन में कमी साल 2005 के 50-52 प्रतिशत के बजाए 1990 के स्तर के 40-43 प्रतिशत के बराबर ही होगी।

अन्य देशों के एनडीसी  का तुलनात्मक अध्ययन -

जलवायु शिखर सम्मेलन के अवसर पर कई अन्य देशों ने भी अपने नये एनडीसी लक्ष्यों की घोषणा की।

जापान ने साल 2030 तक अपने 2013 के जीएचजी के उत्सर्जन के स्तर में 46 प्रतिशत तक की कमी लाने की प्रतिबद्धता जाहिर की। ये उनके अपने पिछले लक्ष्य का सुधार है। जो जीएचजी के उत्सर्जन में 26 प्रतिशत की  कमी लाने का लक्ष्य तय किया गया था। जबकि आकांक्षी लक्ष्य उत्सर्जन में 50 प्रतिशत तक कमी लाने का रखा गया था।

कनाडा ने उत्सर्जन में 30  प्रतिशत कमी लाने के अपने पिछले लक्ष्य की तुलना में साल 2030 तक उत्सर्जन में 40 से 45 प्रतिशत की कमी लाने का वादा किया है।

वहीं यूरोपीय संघ (ईयू) और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने उत्सर्जन को कम करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य की घोषणा की है। जो कि क्रमशः साल 2030 और 2035 तक 1990 के उत्सर्जन स्तर से 55 और 78 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। व्यक्तिगत रूप से, दोनों ही पहले से निर्धारित ईयू के दिसंबर 2020 में 40 प्रतिशत और यूके के 2030 तक 68 प्रतिशत उत्सर्जन में कटौती करने के लक्ष्य से अधिक हैं।

भारत ने अपने नये एनडीसी लक्ष्यों की घोषणा नहीं की है, क्योंकि भारत का वर्तमान एनडीसी पहले से ही क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ( कैट) के मानक के अनुरूप, 2 डिग्री सेल्सियस निर्धारित है। लेकिन भारत ने स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश जुटाने के लिए एक नई भारत-यूएस जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा साझेदारी- 2030 घोषित की है।

कार्बन ब्रीफ के साइमन इवांस ने अपने विश्लेषण में बताया कि कैसे प्रतिबद्धताओं और लक्ष्यों का विस्तार होता है। साथ ही उन्होने अपने विश्लेषण में कहा कि साल 1990 को आधार वर्ष मानने पर यूके का लक्ष्य सबसे महत्वाकांक्षी है। इसके बाद क्रमशः यूरोपीय संघ, अमेरिका, जापान और कनाडा हैं।

वहीं 2005 को आधार वर्ष मानने पर भी  यूके ही अग्रणी है, जबकि अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और जापान का स्थान इसके बाद है।

क्या अमेरिका के एनडीसी पर्याप्त हैं –

क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ( कैट ) के अनुसार अमेरिका के वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 50 से 52 प्रतिशत की कमी से वैश्विक उत्सर्जन अंतर में भी 5 से 10 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। जो कि प्रति वर्ष 1.5 से 2.4 गीगाटन कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर की कमी होगी।

1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि, वर्ष 2030 के 5 से 10 प्रतिशत उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य के संगत है। जो कि प्रति वर्ष 0.3 से 0.8 गीगा टन सीओटू के उत्सर्जन में कमी के बराबर है।

इस लक्ष्य को पाने के लिए कैट ने अमेरिका से अपने घरेलू लक्ष्य का 57 से 63 प्रतिशत तक हासिल करने का अनुसान लगाया है। साथ ही विकासशील देशों को अतिरिक्त सहायता देने का भी प्रावधान रखा गया है।

फेयर शेयर एनडीसी के अनुमान के मुताबिक उत्सर्जन में 50 से 52 प्रतिशत कमी का लक्ष्य सही अनुपात से कम है। कई प्रमुख समूहों जैसे एक्शन एड, यूएस क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क, फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ यूएस और 350.ओआरजी ने भी इस बात का समर्थन किया है।  

1.5 डिग्री सेल्सियस और ऐतिहासिक जिम्मेदारी के दोहरे लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन समूहों ने गणना की है। जिसके अनुसार अमेरिका को साल 2030 तक 2005 के स्तर से 70 प्रतिशत घरेलू उत्सर्जन में और विकासशील देशों के समर्थन से विदेशों में 125 प्रतिशत उत्सर्जन में कमी पाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

साथ ही बाइडेन प्रशासन ने 2024 तक ओबामा-बाइडेन प्रशासन की दूसरी छमाही के दौरान औसत स्तर के सापेक्षिक विकासशील देशों के लिए "वार्षिक सार्वजनिक जलवायु वित्त" को दोगुना करने का वादा किया है। जो कि लगभग  5.7 बिलियन डॉलर (या 42,000 डॉलर, प्रति वर्ष) है।  

अमेरिका इस लक्ष्य को यूएसएआईडी, मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन और बहुपक्षीय बैंकों जैसे संस्थानों के माध्यम से पाने का इरादा रखता हैं।लेकिन लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाएगा, ये बारीकियां अभी स्पष्ट नहीं की गई हैं।

बाइडेन प्रशासन ने भी ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) के लिए कोई नई प्रतिबद्धता नहीं जाहिर की है।लेकिन जैसा कि वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने बताया कि जीसीएफ के लिए बाइडेन ने 1.2 बिलियन डॉलर की राशि तय की है, जो अभी तक जारी नहीं की गई है।  जबकि यह राशि ओबामा-बाइडेन प्रशासन द्वारा तय किए गए  2 बिलियन डॉलर की राशि के तहत ही आती है।

द फेयर शेयर एनडीसी ने विश्लेषण कर साल 2021 - 2030 के लिए 800 बिलियन डॉलर के जलवायु वित्त के योगदान की सिफारिश की है। इसके अलावा विकासशील देशों की सहायता के लिए आईएमएफ के विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) से अंतर्राष्ट्रीय ऋण राहत के तहत  3 ट्रिलियन डॉलर तक का अमेरिकी सहयोग शामिल है। हालांकि कई देशों ने कोविड-19 के लिए हरित बकाया की वसूली एसडीआर का उपयोग किया है,लेकिन साथ ही इन्हे अमेरिका जैसे अमीर देशों से समर्थन की भी आवश्यकता है।

सम्मेलन में यह महसूस किया गया कि विभिन्न देश के राजनेताओं की दो दिवसीय वर्चुअल बैठक, वर्तमान जलवायु संकट के मुद्दे को संबोधित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।  जलवायु संकट के संदर्भ में तेज और दूरगामी परिणाम लाने के लिए हमें केवल तकनीकी ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी प्रतिबद्ध होना पड़ेगा।

इस सम्मेलन ने जलवायु को एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय एजेण्डे के रूप में स्थापित किया है। साथ ही विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु संकट की समस्याओं का नये सिरे से सामना करने के लिए प्रतिबद्ध किया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति, जो.बाइडेन का पेरिस समझौते को एक बार फिर से स्वीकार करना, अपने व्यक्तव्यों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को केन्द्र में रखना और अमेरिकी नौकरियों की योजना के माध्यम से घरेलू संरचनात्मक नीतियों को जलवायु अनुकूल बनाने पर जोर देना साथ ही अन्य बड़े देशों से संवाद और कूटनीति कायम करना, जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाए जा रहे सराहनीय कदम हैं।

अमेरिका में ऐसा कुछ बेहतर काम डोनाल्ड ट्रम्प के विज्ञान विरोधी और ज़ीनोफोबिक गतिविधियों के दुखदः चार वर्षों के बाद हो रहा है। जो.बाइडेन की ओर से जलवायु परिवर्तन की दिशा में किए जा रहे प्रयास, पिछले किसी भी राष्ट्रपति के प्रयासों की तुलना में अधिक बड़े और प्रभावशाली हैं।

अमेरिका को अब घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकासशील देशों का सहयोग पाने के लिए जबानी जंग से आगे बढ़ कर जमीनी हक़ीकत में डी- कार्बनाइजेशन और उत्सर्जन में कमी को ठोस रूप से सुनिश्चित करना होगा।