जलवायु परिवर्तन आज एक ऐसा खतरा बन चुका है, जो अनगिनत तरीकों से हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन की वजह से स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम को उजागर किया है।
इस बारे में जर्नल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित अपनी नई रिसर्च में शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि तापमान में नाटकीय रूप से आते बदलाव की वजह से स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से वैश्विक स्तर पर स्ट्रोक से जुड़ी मौतों और विकलांगता में इजाफा हो सकता है।
बता दें कि हमारे शरीर को सही तरीके से काम करने के लिए एक निर्धारित तापमान की जरूरत होती है। उससे बहुत ज्यादा या कम तापमान शरीर के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। लेकिन जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं और वैश्विक तापमान बढ़ रहा है वो अपने साथ स्वास्थ्य से जुड़ी नई समस्याएं भी पैदा कर रहा है।
यह अध्ययन पिछले तीन दशकों (1990 से 2019) के आंकड़ों पर आधारित है। इसमें 200 से अधिक देशों में स्वास्थ्य और तापमान से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक स्ट्रोक और अननुकूल तापमान का आपस में गहरा नाता है। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया है कि यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन और स्ट्रोक के बीच सम्बन्ध को तो उजागर करता है, लेकिन यह साबित नहीं करता कि जलवायु परिवर्तन स्ट्रोक का कारण बनता है।
रिसर्च में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि 2019 में स्ट्रोक की वजह से हुई 521,031 मौतों के लिए कहीं न कहीं प्रतिकूल तापमान जिम्मेवार था। इतना ही नहीं इसकी वजह से 94.2 लाख से अधिक विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों का भी नुकसान हुआ था। बता दें कि एक विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष स्वास्थ्य को पूरे एक वर्ष के लिए हुई नुकसान के बराबर है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक स्ट्रोक की वजह से हुई इनमें से करीब 91 फीसदी मौतें आदर्श से कम तापमान के कारण हुई थी। मतलब की स्ट्रोक की वजह से होने वाली इनमें से 474,002 मौतों के लिए आदर्श से कम तापमान जिम्मेवार था। वहीं तुलनात्मक रूप से आदर्श से ज्यादा तापमान तुलनात्मक रूप से कम मौतों के लिए जिम्मेवार था। हालांकि रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि बढ़ते तापमान का प्रभाव भी तेजी से बढ़ रहा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक विशेष रूप से बुजुर्गों और ऐसे क्षेत्र में जहां स्वास्थ्य देखभाल को लेकर असमानता मौजूद है। वहां बढ़ते तापमान की वजह से स्ट्रोक का जोखिम बढ़ सकता है। इसी तरह मध्य एशिया में भी बढ़ते तापमान की वजह से स्ट्रोक के मामलों में चिंताजनक रूप से वृद्धि हुई है, जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि तापमान में आते बदलावों की वजह से महिलाओं की तुलना में पुरुषों में स्ट्रोक का खतरा कहीं अधिक है। आंकड़ों के मुताबिक जहां तापमान में आए उतार-चढ़ाव से पुरुषों में स्ट्रोक से होने वाली मृत्यु दर 7.7 प्रति दस लाख थी। वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा 5.89 दर्ज किया गया।
तापमान में बदलाव और स्ट्रोक के बीच क्या है संबंध
वहीं यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो अननुकूल तापमान और स्ट्रोक से जुड़ी मृत्यु दर मध्य एशिया से सबसे ज्यादा थी, जो प्रति लाख 18 दर्ज की गई। वहीं देशों के लिहाज से देखें तो उत्तरी मैसेडोनिया में यह मृत्यु दर प्रति लाख 33 रिकॉर्ड की गई।
गौरतलब है कि स्ट्रोक या आघात एक ऐसी स्थिति है, जिसके दौरान मस्तिष्क में सही मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता या अचानक रक्तस्राव होने लगता है। शोधकर्ताओं ने तापमान में आते बदलावों और स्ट्रोक के बीच संबंधों को उजागर करते हुए जानकारी दी है कि जब तापमान शरीर के लिए आदर्श तापमान से कम होता है तो उसकी वजह से रक्त वाहिकाएं सिकुड़ सकती हैं, नतीजन रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ सकता है। यह उच्च रक्तचाप स्ट्रोक का एक संभावित कारक है।
वहीं दूसरी तरफ बढ़ते तापमान शरीर में पानी की कमी (निर्जलीकरण) का कारण बन सकता है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रभावित करता है। इसकी वजह से रक्त प्रवाह धीमा हो सकता है, नतीजन स्ट्रोक आ सकता है।
जर्नल न्यूरोलॉजी में 17 मई, 2023 को प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि इस्केमिक स्ट्रोक की वजह से 1990 के दौरान दुनिया भर में 20 लाख लोगों की मौत हो गई थी। मौतों का यह आंकड़ा 2019 में बढ़कर 30 लाख पर पहुंच गया। वहीं शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि 2030 तक इस्केमिक स्ट्रोक 50 लाख से ज्यादा मौतों की वजह बन सकता है। इस्केमिक स्ट्रोक, स्ट्रोक का सबसे आम रूप है जो मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में आती रुकावट के कारण होता है।