जलवायु

बढ़ते जलस्तर और इंसानी कंक्रीट के बीच पिसते समुद्र तट

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके चलते सदी के अंत तक 30 फीसदी तक समुद्र तट और टीले गायब हो जाएंगे या डूब सकते हैं

Lalit Maurya

दुनिया भर में बढ़ते जलस्तर और इंसानी कंक्रीट के बीच कहीं न कहीं समुद्र तट और रेतीले टीले घुटते जा रहे हैं। यही वजह है कि बढ़ते कंक्रीट और बुनियादी ढांचे के चलते इन्हें नित नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

यही वजह है कि आज दुनिया में आपको किसी समुद्र तट से पास की सड़क या बिल्डिंग तक पहुंचना हो तो महज 390 मीटर चलना होगा। ऐसे में यदि आप वहां एक या दो दिन के लिए घूमने जाए तो निश्चित तौर पर यह आपको सुविधाजनक लग सकता है लेकिन सच यही है कि तटों के आसपास यह बढ़ता विकास पर्यावरण के लिहाज से ठीक नहीं है।

जलवायु परिवर्तन के चलते जिस तरह से समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है वो इंसानी सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। इतना ही नहीं इन सिकुड़ते तटों के चलते पेयजल आपूर्ति और जैव विविधता भी प्रभावित हो रही है।

इसमें कोई शक नहीं कि यह समुद्र तट रेखाएं और रेतीली टीले हमारे लिए बेहद मायने रखते हैं। वे हमें बाढ़ के खतरे से सुरक्षित रखते हैं, साफ पानी उपलब्ध कराने में मदद करते हैं और कई तरह के जीवों और पौधों के लिए आवास उपलब्ध कराते हैं। इनकी प्राकृतिक सुंदरता लाखों-करोड़ों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि जब हम समुद्र तटों और टीलों को पर्याप्त जगह देते हैं, तो वे अपने महत्वपूर्ण कार्य बेहतर तरीके से पूरा कर पाते हैं। लेकिन जिस तरह से इंसानी विकास और बढ़ता जलस्तर इन तटों को निगल रहा है वो इंसानों के साथ-साथ अनगिनत जीवों के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रहा है।

क्या इंसानी विकास की महत्वाकांक्षा खुद के विनाश की बन रही है वजह  

वैश्विक स्तर पर यह समुद्र तट और टीले किस हद तक सिकुड़ रहे हैं इसे मैप करने के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले शोधों और ओपन स्ट्रीट मैप से मिली जानकारी का उपयोग किया है। उन्होंने अपने इस अध्ययन में यह मापने का प्रयास किया है कि इन समुद्र तटों से एक सीधी रेखा में निकटतम सड़क या इमारत कितनी दूर है। उन्होंने इसके लिए दुनिया भर के सभी रेतीले समुद्र तटों के हर किलोमीटर पर इसकी जांच की है।

जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक इमारतें और सड़कें आमतौर पर समुद्र के बेहद करीब हैं। औसतन इनकी समुद्र तट से दूरी महज 390 मीटर ही है। वहीं भीड़भाड़ वाले नीदरलैंड में तो यह दूरी 210 मीटर या उससे करीब है, जबकि फ्रांस में, यह औसतन केवल 30 मीटर ही दूर है।

यदि यूरोप को देखें तो वहां समुद्र तटों और टीलों से इंसानी कंक्रीट औसतन केवल 130 मीटर दूर है, जबकि ओशिनिया में इन तटों पर सबसे कम दबाव है, जिनकी कंक्रीट से औसत दूरी 2.8 किलोमीटर है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में इन तटों पर बढ़ता दबाव और बढ़ जाएगा। इसमें जलवायु परिवर्तन भी योगदान देगा। आशंका है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर से इंसानी कंक्रीट और समुद्रों के बीच की दूरी और कम हो जाएगी।

प्राकृतिक तौर पर जलस्तर बढ़ने से समुद्र तट और टीले समुद्र से दूर जमीन की ओर बढ़ते हैं, लेकिन इंसानी कंक्रीट उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके चलते सदी के अंत तक 30 फीसदी तक समुद्र तट और टीले गायब हो जाएंगे या डूब सकते हैं।

हालांकि अध्ययन के मुताबिक उम्मीदें अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। शोधकर्ताओं को पता चला है कि जब इन समुद्र तटों और टीलों को संरक्षित क्षेत्र का दर्जा दिया जाता है तो इमारतें और सड़कें असंरक्षित क्षेत्रों की तुलना में चार गुणा अधिक दूर पाई जाती हैं।

हालांकि मौजूदा समय में दुनिया के केवल 16 फीसदी रेतीले तट ही संरक्षित हैं। ऐसे में इन टीलों और समुद्र तटों को सुरक्षा देना पर्यावरण और इंसानों की खुद की सुरक्षा के लिए बेहद अहम है।