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जलवायु

सावधान! भारत में महिलाओं की त्वचा को समय से पहले बूढ़ा बना रहा जलवायु परिवर्तन

भारतीय महिलाओं पर किए अध्ययन से पता चला है कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती गई, माथे पर काले धब्बे और झुर्रियां भी बढ़ती गई

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान आपकी त्वचा को समय से पहले बूढ़ा बना सकता है? जलवायु परिवर्तन मौजूदा समय की एक ऐसी समस्या है जो अनगिनत तरीकों से इंसानों को प्रभावित कर रही है।

दुनिया में तेजी से बढ़ता तापमान और भीषण गर्मी लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहे हैं। शोधों से पता चला है कि तापमान और आर्द्रता, जिन्हें एक साथ हीट इंडेक्स कहा जाता है, एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जैसे-जैसे यह हीट इंडेक्स बढ़ता है, वैसे-वैसे हृदय और फेफड़ों की समस्याओं जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।

हालांकि हमारी त्वचा जो सीधे तौर पर बाहरी वातावरण के संपर्क में आती है, उसके बारे में यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि क्या जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान त्वचा के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है या नहीं। हालांकि कुछ हालिया शोधों से पता चला है कि गर्मी शरीर की जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती है, जिसकी वजह से त्वचा समय से पहले बूढ़ी हो सकती है।

ऐसे में इसे समझने के लिए लीबनिज रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंटल मेडिसिन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे से जुड़े शोधकर्ताओं के साथ मिलकर एक नया अध्ययन किया है।

भारतीयों पर किए अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात की जांच की है कि तापमान और आर्द्रता त्वचा की बढ़ती उम्र को कैसे प्रभावित करते हैं। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल डर्माटाइटिस में प्रकाशित हुए हैं।

त्वचा को प्रभावित कर रही बढ़ती गर्मी और आद्रता

यह अध्ययन भारतीय महिलाओं पर किया गया है। बता दें कि भारत, अपनी विविध जलवायु और उच्च तापमान की वजह से इस शोध के लिए एक आदर्श स्थान है।

अध्ययन में, तीन शहरों की 1,510 भारतीय महिलाओं को शामिल किया गया है। उनकी त्वचा की बढ़ती उम्र के लक्षणों जैसे कि पिगमेंटेशन स्पॉट और झुर्रियों की, स्कोरिंग सिस्टम (एससीआईनेक्सा) की मदद से जांच की गई है।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने उन क्षेत्रों में जहां यह महिलाएं रहती हैं, वहां पिछले पांच वर्षों के तापमान, आद्रता (हीट इंडेक्स), पराबैंगनी विकिरण और वायु प्रदूषण के आंकड़ों को भी एकत्र किया है। वायु प्रदूषण के यह आंकड़े पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के थे।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में एक विशेष सांख्यिकीय मॉडल का भी उपयोग किया है, ताकि हीट इंडेक्स और त्वचा की बढ़ती उम्र के संकेतों के बीच संबंध का पता चल सके।

अध्ययन में पाया गया कि जैसे-जैसे गर्मी (हीट इंडेक्स) बढ़ती गई, माथे पर काले धब्बे और गहरी झुर्रियां भी बढ़ती गईं। विशेष बात यह है कि ऐसा इस बात पर ध्यान दिए बिना हुआ कि लोगों की उम्र कितनी थी या फिर सूर्य के प्रकाश, धूम्रपान और वायु प्रदूषण जैसी अन्य चीजों का उन पर कितना प्रभाव पड़ा था।

मतलब की ये प्रभाव प्रतिभागियों की उम्र या अन्य पर्यावरणीय कारकों जैसे यूवी विकिरण, धूम्रपान और वायु प्रदूषण जैसे अन्य कारकों से प्रभावित नहीं थे।

प्रेस विज्ञप्ति में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर जीन क्रुटमैन के हवाले से कहा गया है कि, "यह पहला अध्ययन है जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से इंसानों की त्वचा की उम्र तेजी से बढ़ रही है।" उनका आगे कहना है कि “हम इसके पीछे के कारणों का अध्ययन कर रहे हैं और इससे बचाव से जुड़ी रणनीति विकसित करने के उद्देश्य से इसके लिए जिम्मेवार तंत्रों का विश्लेषण कर रहे हैं।“