जलवायु

गर्म होती जलवायु के कारण अधिक ऊंचाई पर हो रहे हैं हिमस्खलन

निम्न-से-मध्यम ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं की बर्फ में भविष्य में होने वाले बदलावों से अधिक ऊंचे पर्वतीय वातावरण में होने वाले खतरों का अनुमान लगाया जा सकता है।

Dayanidhi

एवलांच या हिमस्खलन पर्वतीय वातावरण में एक बड़े खतरे का हिस्सा हैं, जहां वे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाते हैं और हर साल सैकड़ों लोगों की जान लेते हैं। यहां शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के साथ हिमस्खलन के उतार-चढ़ाव का दस्तावेजीकरण किया हैं। यह एक ऐसा तंत्र है जिसके अस्तित्व को पहले प्रदर्शित नहीं किया जा सका था।

शोध से पता चलता है कि निम्न-से-मध्यम ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं की बर्फ में भविष्य में होने वाले बदलावों और अधिक ऊंचे पर्वतीय वातावरण में होने वाले खतरों का अनुमान लगाया जा सकता है।

पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहे हैं। क्रायोस्फीयर जिसमें बर्फ और पर्माफ्रोस्ट पर पड़ने वाले प्रभावों का अच्छी तरह से वर्णन किया गया है। ग्लेशर और बर्फ के आवरण में बदलाव का एक दूसरे से संबंध है। लेकिन इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आखिर बढ़ते तापमान की वजह से एवलांच या हिमस्खलन  की गतिविधियों पर क्या असर पड़ता है। 

शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे पास लंबे समय से होने वाले हिमस्खलन की घटनाओं के आंकड़ों की कमी है। क्योंकि मौजूदा सांख्यिकीय तकनीकों को हमारे पास मौजूद कुछ श्रृंखलाओं में कई अनुमानों को ध्यान में रखने के लिए नहीं बनाया गया है।

यह समस्या हाल ही में समुद्र और क्रायोस्फीयर पर आईपीसीसी की रिपोर्ट में विशेष तौर से उजागर किया गया है, जिसमें विशेष रूप से उच्च पर्वतीय क्षेत्रों से संबंधित जानकारी शामिल है। इस खतरे को देखते हुए कि हिमस्खलन लोगों और बुनियादी ढांचे जैसे भवन, परिवहन और संचार नेटवर्क, आदि को प्रभावित करता है।

शोध टीम ने अठारहवीं शताब्दी के अंत से 2013 तक वोसगेस पर्वत में हिमस्खलन गतिविधि के इतिहास का अध्ययन किया। उनका यह दृष्टिकोण नया और बहुत सारे विषयों से जुड़ा हुआ था, यह न केवल ऐतिहासिक बल्कि सांख्यिकीय मॉडलिंग और जलवायु विज्ञान का संयोजन भी है।

अधिक ऊंचाई पर भी कम हो रहे हैं हिमस्खलन

टीम इस काम के माध्यम से यह देखने में सक्षम रही है कि वोसगेस पर्वत के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हुई है जो 19वीं शताब्दी के मध्य और बीसवीं की शुरुआत के बीच हुई थी। पूरे क्षेत्र में प्रत्येक सर्दियों में हर जगह हिमस्खलन की औसत संख्या में सात गुना कमी आई है।

हिमस्खलन का औसत आकार उल्लेखनीय रूप से कम हो गया था। 1952 में असाधारण आकार का एक आखिरी हिमस्खलन हुआ था, जबकि हिमस्खलन के मौसम की अवधि भी कम हो गई थी जो की औसतन 23 दिन की थी। बर्फ के आवरण के विश्लेषण से पता चलता है कि ये बदलाव छोटे हिमयुग के अंत में, बर्फ के आवरण की गहराई और सीमा में निचली और मध्य ऊंचाई में होने वाली स्पष्ट कमी से जुड़े हैं।

नतीजतन, वोसगेस पहाड़ों में इन ऊंचाई से हिमस्खलन लगभग गायब हो गए है। वर्तमान में, हिमस्खलन अभी भी केवल पर्वत-समूह के सबसे अधिक ऊंचाई पर होता है। यह लगभग 1200 मीटर के इलाके में सबसे न्यूनतम ऊंचाई पर है, हालांकि हिमस्खलन गतिविधि अभी भी एक संभावित खतरा बनी हुई है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि अंततः कई पर्वत श्रृंखलाओं में, हिमस्खलन गतिविधि धीरे-धीरे हमेशा के लिए अधिक ऊंचाई तक सीमित हो जाएगी। उनके औसत आकार में कमी और मौसम की बढ़ती अवधि में कमी होगी। इस तरह से भविष्य में बढ़ता तापमान बर्फ के आवरण को और कम कर देता है।

परिणाम बताते हैं कि कम से मध्यम ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाएं जैसे वोसगेस पर्वत बढ़ते तापमान के प्रभावों को समझने के लिए प्रहरी के रूप में कार्य कर सकते हैं। जिससे हमें दुनिया भर के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए प्रभावी जलवायु में बदलाव से निपटने के लिए रणनीति तैयार करने में मदद मिलती है। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।