जलवायु

अटलांटिक की हवा बदल रही है भारत के भोजन और पानी की आपूर्ति: शोध

उत्तरी अटलांटिक में वायुमंडलीय परिस्थितियों के प्रभाव के कारण पश्चिमी हिमालय में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी की मात्रा में लगभग 50 प्रतिशत तक का बदलाव आ सकता है।

Dayanidhi

रीडिंग विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पश्चिमी हिमालय में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी की मात्रा में लगभग 50 प्रतिशत तक का बदलाव आ सकता है। यह अजोरेस और आइसलैंड के बीच अटलांटिक महासागर के ऊपर वायु दबाव के ढाल पर निर्भर करता है।

वैज्ञानिकों ने दो क्षेत्रों के बीच एक कड़ी को जोड़ने की कोशिश में दशकों का समय बिताया है। यह नया अध्ययन इस बात के महत्वपूर्ण सबूत देता है जिससे महीनों पहले भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा के स्तर का बेहतर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। परिणामों का उपयोग गेहूं और जौ जैसी महत्वपूर्ण फसलों की पैदावार में सुधार करने और देश में महत्वपूर्ण जल आपूर्ति के प्रबंधन में मदद करने के लिए किया जा सकता है।

रीडिंग विश्वविद्यालय में उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान में एक शोध वैज्ञानिक और प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. किरन हंट ने कहा कई हजार मील दूर होने के बावजूद भी, हम जानते हैं कि उत्तरी अटलांटिक पर दबाव पैटर्न का सर्दियों के मौसम पर कुछ प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी हिमालय हालांकि, उस कड़ी को समझना और यह कितना मजबूत है, यह वैज्ञानिकों को वर्षों से हैरान कर रहा है।

हमें जो कड़ी मिली है वह उत्तर-पश्चिम भारत के राज्यों और ग्रामीणों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है जो भोजन और पानी की आपूर्ति के लिए सर्दियों की बारिश और बर्फ पर निर्भर रहते हैं। उत्तरी अटलांटिक को देखने से नमी या सूखे मौसम की ओर किसी भी बदलाव की अग्रिम सूचना पानी की कमी, या यहां तक कि बाढ़ की तैयारी के लिए अहम हो सकती है।

एक सकारात्मक उत्तरी अटलांटिक दोलन (एनएओ) चरण के दौरान, अजोरेस के आसपास उच्च दबाव और आइसलैंड के आसपास कम दबाव के बीच मजबूत विपरीत उत्तरी अटलांटिक जेट स्ट्रीम को उत्तर की ओर मजबूर करता है, जो बदले में उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम में अधिक अस्थिरता का कारण बनता है जो अफ्रीका से भारत की ओर बढ़ता है।

उपोष्णकटिबंधीय जेट में अतिरिक्त गड़बड़ी होने से यह उत्तर-पश्चिम भारत में तूफान का रूप ले लेता है। शोध से पता चला है कि नकारात्मक चरण की तुलना में सकारात्मक एनएओ चरण के दौरान क्षेत्र में सर्दियों के तूफान औसतन 20  प्रतिशत अधिक लगातार और 7 प्रतिशत अधिक तीव्र थे। यह उन क्षेत्रों में 31  प्रतिशत अधिक बार-बार होने वाले शीतकालीन तूफान तक बढ़ गए जो पहले से ही उन्हें सबसे अधिक बार देखे जाते हैं।

इसके परिणामस्वरूप उपोष्णकटिबंधीय जेट के साथ औसतन 40 प्रतिशत अधिक नमी ले जाई गई और इसलिए सकारात्मक एनएओ चरण के दौरान सर्दियों के महीनों में पश्चिमी हिमालय में 45 प्रतिशत अधिक बारिश और बर्फबारी हुई।

उत्तर-पश्चिम भारत में तूफान के बढ़ने से जम्मू और कश्मीर, पंजाब, गुजरात और दक्षिणी पाकिस्तान जैसे राज्यों पर असर पड़ने की आशंका है। ये ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र हैं लेकिन इनमें श्रीनगर, पेशावर, जोधपुर, हैदराबाद और कराची जैसे शहर शामिल हैं।

अध्ययन में रीडिंग-आधारित यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट और अन्य संगठनों के 70 साल के आंकड़ों के साथ-साथ भारतीय मौसम विभाग द्वारा प्रदान किए गए पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के वर्षा गेज के आंकड़ों का उपयोग किया गया।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि एनएओ अंतर में 2 से 3 और 12 से 16 साल के चक्रों में सहसंबंध सबसे मजबूत था। एनएओ में धीमा अंतर तीन महीने पहले तक उत्तर-पश्चिम भारतीय सर्दियों के औसत से अधिक नमी या सूखे मौसम के पूर्वानुमान में सुधार की गुंजाइश प्रदान करती है।

इस समय के दौरान उगाई जाने वाली फसलों के साथ-साथ सर्दियों की बारिश, हिमालय पर गिरने वाली बर्फ वसंत के दौरान नदियों में बहने वाला पानी जो बर्फ के पिघलने से बनता है, जिससे यह भारत की जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।

इस अध्ययन द्वारा पहचाने गए सहसंबंध की और जांच करने के लिए आगे शोध करने की आवश्यकता है, एनएओ जिस गति से पश्चिमी हिमालयी वर्षा को प्रभावित करता है वह शून्य से छह महीने तक अलग-अलग  होता है, और क्या दक्षिण भारत और श्रीलंका में शीतकालीन मानसून पर कोई प्रभाव पड़ता है?

डॉ हंट ने कहा भविष्य में उत्तर-पश्चिम भारत में आने वाली सर्दियों की बारिश और बर्फ की मात्रा में जलवायु परिवर्तन का भी हाथ हो सकता है, क्योंकि उत्तरी अटलांटिक जेट स्ट्रीम की आकृति और स्थिति और उपोष्णकटिबंधीय जेट की ताकत पर निर्भर करती है। यह ग्रह के गर्म होने पर प्रभावित होंगे। इसका जेट स्ट्रीम के लिए संभावित प्रभाव है जो भारत में तूफान को बढ़ावा देता है।

क्लाइमेट डायनेमिक्स में प्रकाशित नया शोध, उत्तरी अटलांटिक दोलन (एनएओ) के उतार-चढ़ाव वाले चरणों और पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में सर्दियों की बारिश और बर्फ के बीच संबंध पर आधारित है।