जलवायु

बेमौसमी खतरों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों की सूची में शामिल है एशिया प्रशांत

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों में बीमा सुरक्षा की बड़ी कमी है

Dayanidhi

एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में होने आर्थिक खतरों के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा कारण बन जाएगा। खासकर एशिया प्रशांत के इलाकों के देशों को मौसम की चरम घटनाओं  की वजह से अधिक नुकसान झेलना पड़ेगा। 

 स्विस रे इंस्टीट्यूट की इस रिपोर्ट के अनुसार चार तरह के मौसम संबंधी संकट - बाढ़, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, शीतकालीन तूफान और खतरनाक तूफान दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान के सबसे बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं।

रिपोर्ट में विश्लेषकों का तर्क है कि इन खतरों को कम करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए निजी क्षेत्र से धन जुटाया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन किए गए 36 देशों में से, फिलीपींस उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, भयंकर तूफान और बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित है और यहां इन खतरों के बढ़ने की अत्यधिक आशंका जताई गई है।

इससे फिलीपींस को सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी वार्षिक आर्थिक नुकसान (संपत्ति के नुकसान के आधार पर) होता है, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में आठ गुना अधिक है।

लगभग 0.4 फीसदी की सकल घरेलू उत्पाद के नुकसान के साथ अमेरिका और थाईलैंड अगले सबसे बुरी तरह प्रभावित देश हैं। सूची में अन्य एशिया प्रशांत देशों में चीन, ताइवान, भारत और जापान शामिल हैं, सभी की जीडीपी में होने वाला नुकसान लगभग 0.2 फीसदी या उससे अधिक है।

रिपोर्ट के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय चक्रवात पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में मौसम संबंधी आर्थिक नुकसान का प्रमुख कारण हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ताजा उदाहरण टाइफून हाइकुई है जिसने सितंबर 2023 की शुरुआत में चीन, हांगकांग, ताइवान और फिलीपींस में भीषण तबाही मचाई थी।

पेरिस समझौते का उद्देश्य इस शताब्दी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है।

हालांकि क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुसार, 2030 तक उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहेगी, जिससे दुनिया 2100 तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की राह पर है।

रिपोर्ट के मुताबिक, यदि ग्लोबल वार्मिंग वर्तमान प्रक्षेपवक्र पर बनी रहती है, दुनिया भर में 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद का सात से 10 फीसदी का नुकसान हो सकता है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह रिपोर्ट विभिन्न देशों में चरम मौसम की स्थिति की आशंका पर जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के वैज्ञानिक साक्ष्य के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप संपत्ति के नुकसान के बारे में स्विस रे के बीमा जानकारी पर आधारित है।

इसमें कहा गया है कि लोगों की संपत्ति पर प्रभाव के संदर्भ में, अकेले चार प्रमुख मौसम संबंधी संकटों के कारण सालाना 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अपेक्षित आर्थिक नुकसान होता है।

खतरे को कम करना

रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि कम उत्सर्जन और अनुकूलन उपायों के द्वारा खतरों को कम करना, जैसे भवन नियमों को लागू करना, बाढ़ सुरक्षा बढ़ाना और प्राकृतिक आपदा-प्रवण क्षेत्रों में निपटना, ये सभी ग्लोबल वार्मिंग की आर्थिक लागत का मुकाबला करने के लिए जरूरी हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, थाईलैंड जलवायु परिवर्तन के खतरे के प्रति अतिसंवेदनशील देशों में से एक है, जहां अचानक बाढ़ और नदी के बाढ़ की तीव्रता की उच्च और मध्यम आसार हैं, खासकर चाओ फ्राया नदी बेसिन का निचला क्षेत्र।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2011 की विनाशकारी बाढ़ के बाद से, जिसने देश के लाखों लोगों को प्रभावित किया, थाईलैंड ने बाढ़ के खतरों को कम करने के लिए कई उपाय किए हैं।

रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों का निवेश करने और निजी क्षेत्र की पूंजी को वित्तपोषण समाधान का हिस्सा बनाने का मामला बताती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों की आवश्यकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में, आर्थिक बदलाव लाने के लिए 270 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (सालाना 9.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) से अधिक के कुल वैश्विक निवेश अंतर का अनुमान लगाया है जो 2050 तक कुल शून्य उत्सर्जन प्रदान करेगा।

विश्व बैंक के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर अनुकूलन वित्त का दो फीसदी से भी कम निजी निवेश से आता है।

जलवायु परिवर्तन को कम करना दुनिया भर में सबकी भलाई के लिए है और इस अंतर की कुछ सीमाएं हैं कि इस अंतर को सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जा जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों में बीमा सुरक्षा में बड़ी कमी है, इसलिए भविष्य में अधिक चरम मौसम के झटकों के वित्तीय प्रभाव को प्रबंधित करने के लिए वे पूरी तरह तैयार नहीं हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में, एशिया में 86 फीसदी आपदा से होने वाले नुकसान का बीमा नहीं हुआ था।

जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए निवेश अहम

रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवर्तनकारी जलवायु कार्रवाई के लिए निजी क्षेत्र का निवेश महत्वपूर्ण है। बीमा क्षेत्र में कुछ नेतृत्वकारी भूमिका देखी जा रही हैं, लेकिन खतरों को कम करने के लिए इसे और बढ़ाने की जरूरत है।

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जलवायु संबंधी चरम मौसम की घटनाएं जैसे बाढ़, चक्रवात और लू पहले से ही हजारों अतिरिक्त मौतें और बीमारियां पैदा कर रही हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया का बड़ा हिस्सा पहले से ही लंबे समय तक लू का सामना कर रहा है, जिसके और बदतर होने के आसार हैं, जिससे स्वास्थ्य और खुशहाली पर अच्छा खासा असर पड़ेगा।

गर्मी का तनाव, हीट स्ट्रोक और गर्मी के प्रति संवेदनशील हृदय संबंधी रोग पहले से ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और वित्त पर भारी बोझ डाल रहे हैं और बढ़ते तापमान के साथ यह और भी बद से बदतर हो रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल भारी प्रदूषण फैलाने वाले देशों द्वारा तेजी से डीकार्बोनाइजेशन प्रयास, अनुकूलन समाधानों के कार्यान्वयन के साथ मिलकर, मानव स्वास्थ्य और आजीविका की रक्षा करने में सक्षम बना सकते हैं।

तूफान और विनाशकारी हो रहे हैं

दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात और अधिक उग्र हो जाएंगे, जिसमें सबसे तीव्र तूफानों (श्रेणी तीन से पांच) और चरम हवा की गति दोनों के अनुपात में वृद्धि होगी।

पीएनएएस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में तूफानों के लिए श्रेणी छह के वर्गीकरण का प्रस्ताव दिया गया है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण तूफान अधिक तीव्र होते जा रहे हैं।

अध्ययन के मुताबिक छठी श्रेणी में काल्पनिक विस्तार का उद्देश्य जनता को चेतावनी देना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात मजबूत हो गए हैं। जलवायु परिवर्तन के अनुसार ऐसा करना जारी रहेगा।