जलवायु

क्या हम कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में वनों की भूमिका को अधिक आंक रहे हैं?

Avantika Goswami

9 अगस्त को जारी हुई संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि मौसम में आ रहे भयावह परिवर्तन के लिए न केवल इंसान दोषी है, बल्कि यही परिवर्तन इंसान के विनाश का भी कारण बनने वाला है। मासिक पत्रिका डाउन टू अर्थ, हिंदी ने अपने सितंबर 2021 में जलवायु परिवर्तन पर विशेषांक निकाला था। इस विशेषांक की प्रमुख स्टोरीज को वेब पर प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ीदूसरी कड़ी, तीसरी कड़ी,पढ़ें  चौथी कड़ी - 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के नवीनतम वैज्ञानिक आकलन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि को रोकने के लिए आवश्यक पैमाने पर ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने में सक्षम नहीं है। इस पैनल के अनुमान बिल्कुल “स्पष्ट” हैं और अब दुनिया के सारे देश वातावरण से उत्सर्जन की मात्रा को कम करने के प्रयास युद्धस्तर पर करेंगे।

इस प्रयास का एक बड़ा हिस्सा भूमि पर केंद्रित होगा। भूमि, अपने जंगलों, पेड़ों और घास के माध्यम से, कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ2) के लिए एक सिंक (सोखना) के रूप में कार्य करती है, जिसका अर्थ है कि यह मानव गतिविधि के माध्यम से उत्सर्जित सीओ2 को सोख लेती है। इसके साथ ही वे कार्बन डाईऑक्साइड के एक स्रोत के रूप में भी कार्य करते हैं, जंगलों के जलने, कटाई या क्षरण से सीओ2 वापस वायुमंडल में चली जाती है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि वनों द्वारा सोखी गई सीओ2 की मात्रा आमतौर पर उनके द्वारा उत्सर्जित मात्रा से अधिक होती है और इसलिए वे कुल मिलाकर कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं लेकिन क्या ये इतना सीधा है जितना दिखता है? ऐसा जरूरी नहीं है। आइए, समझते हैं कैसे।

ऐसे कई अध्ययन हैं, जिन्होंने शुद्ध कार्बन सिंक के रूप में वनों की क्षमता को निर्धारित किया है। जनवरी 2021 में नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि 2001 और 2019 के बीच दुनिया के जंगलों ने जितनी कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित की, उसकी दोगुनी मात्रा फिर से सोखी है। उन्होंने औसतन 8.1 गीगाटन सीओ2 उत्सर्जित करते हुए प्रति वर्ष 15.6 गीगाटन सीओ2 को वातावरण से “हटाया” है।

इस प्रकार वे प्रत्येक वर्ष 7.6 गीगाटन सीओ2 सोखते हैं, जो कि 2020 में चीन के उत्सर्जन (लगभग 10 गीगाटन सीओ2) से थोड़ा कम है और अमेरिका के वार्षिक उत्सर्जन से अधिक है। दो दशकों में, जंगलों ने 15.2 गीगाटन सीओ2 सोखा, जो कि इस अवधि के दौरान उत्सर्जित सीओ2 का लगभग 30 प्रतिशत है। आईपीसीसी की जलवायु परिवर्तन और भूमि पर विशेष रिपोर्ट 2019 (एसआरसीसीएल) का यह भी अनुमान है कि 2007 और 2016 के बीच, भूमि उपयोग सीओ2 उत्सर्जन के लगभग 13 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार है, लेकिन इसने प्रति वर्ष 11.2 गीगाटन नेट सीओ2 सोखा, जो कि इस अवधि में उत्सर्जित कुल सीओ2 का 29 प्रतिशत है।

उत्सर्जन को कम करने के माध्यम के रूप में वनों की भूमिका वास्तव में 1992 की सोच है, जब इसे यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनफसीसीसी) में मान्यता दी गई थी। 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल ने इस धारणा का समर्थन किया कि सरकारों को अपने क्षेत्रों में भूमि की कार्बन सोखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए नीतियों को नियोजित करना चाहिए और जीवाश्म ईंधन की खपत से उत्सर्जन में कमी के लिए आवश्यकताओं के खिलाफ इस तरह की कमी को निर्धारित करना चाहिए।

2009 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में, प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) के एक स्थिति पत्र (पोजिशन पेपर) ने “2012 के बाद के जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में प्रकृति-आधारित समाधानों का पूर्ण उपयोग करने” की वकालत की। इसके बाद 2011 में, आईयूसीएन ने बॉन चैलेंज शुरू किया, जिसका लक्ष्य “2020 तक कटाई से प्रभावित विश्व के 150 मिलियन हेक्टेयर (2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर) जंगलों को पुनः बहाल करना था।” इसमें कई देशों ने बढ़-चढ़कर वादे किए।

पिछले कुछ वर्षों में उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रकृति आधारित समाधानों की मांग ने गति पकड़ी है। मार्च 2019 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021-2030 को “दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण को रोकने, और उलटने” के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के रूप में घोषित किया। जनवरी, 2020 में कई बड़ी कंपनियों ने 2030 तक एक ट्रिलियन पेड़ लगाने के लिए स्विट्जरलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में “1 ट्रिलियन पेड़” पहल पर हस्ताक्षर किए। मई 2021 में जी-7 देशों (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों) ने 2030 तक कम से कम 30 प्रतिशत वैश्विक भूमि और 30 प्रतिशत महासागर को संरक्षित करने का संकल्प लिया।

इसका लक्ष्य जैव विविधता को हुई हानि को उलट देना और जलवायु परिवर्तन को संबोधित करना है। एक महीने पहले, अप्रैल 2021 में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व में हुए शिखर सम्मेलन में, लीफ (लोवरिंग एमिशनज बाय ऐक्सिलेरेटिंग फॉरेस्ट फीनानस) गठबंधन को यूएस, यूके और नॉर्वे के नेतृत्व में सार्वजनिक निजी प्रयास के रूप में घोषित किया गया था। यह यूनिलीवर, अमेजन, नेस्ले और एयरबीएनबी जैसे निगमों द्वारा समर्थित था और उन देशों के लिए था, जो अपने उष्णकटिबंधीय जंगलों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध थे।

इस संगठन का लक्ष्य एक बिलियन अमरीकी डालर जमा करना था। एक विश्लेषण से पता चलता है कि जिन गणनाओं ने जंगलों को सिंक के रूप में स्थापित किया है, वे पद्धतिगत मुद्दों और अनिश्चितता से भारी हैं और जिन पर जलवायु परिवर्तन का असर भी पड़ता है। गर्मी का बढ़ा हुआ स्तर जंगलों में नमी के दबाव को बढ़ा रहा है, जिससे लगातार आग लग रही है। आईपीसीसी के नवीनतम आकलन से पता चलता है कि अतिरिक्त वार्मिंग इन सभी सिंक को और कमजोर कर देगी।

आइए जानें ये सिंक कहां हैं

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने अपनी 2020 की वन संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा है कि प्रत्येक हेक्टेयर वन 163 टन कार्बन स्टॉक उत्पन्न करता है, जो जीवित बायोमास में, मृत लकड़ी, कूड़े और मिट्टी में संग्रहीत रहता है, लेकिन यह मात्रा वनों के प्रकार और भूगोल के आधार पर भिन्न भी हो सकती है। यह कहता है, “वन क्षेत्र में समग्र कमी के कारण, वैश्विक वन कार्बन स्टॉक 1990 और 2020 के बीच 668 गीगाटन से घटकर 662 गीगाटन हो गया” लेकिन फिर से विविधताओं के साथ। यूरोप, उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया में, दो दशकों में वन क्षेत्र में वृद्धि हुई, लेकिन अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिणी एशिया में वन क्षेत्र में कमी देखी गई।

वास्तव में, ब्राजील, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और इंडोनेशिया में 2010 और 2020 के बीच वन क्षेत्र का औसत वार्षिक शुद्ध नुकसान सबसे अधिक रहा। वे सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों का घर हैं, जो सीओ2 को हटाने की अपनी क्षमता में श्रेष्ठ हैं, वे प्रति वर्ष बोरियल (उत्तरी) और समशीतोष्ण वनों की तुलना में सकल सीओ2 का 55 प्रतिशत हटाते हैं। लेकिन वनों की कटाई, सूखे और भूमि उपयोग में बदलाव के साथ, यह निष्कासन कम हो रहा है।

साथ ही, जैसा कि नेचर क्लाइमेट चेंज स्टडी से पता चलता है, इन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों में वनों की कटाई के कारण सबसे अधिक उत्सर्जन (सकल उत्सर्जन का 78 प्रतिशत) होता है। इसका मतलब है, उष्णकटिबंधीय (31 प्रतिशत) की तुलना में कम उत्सर्जन के कारण प्रमुख वैश्विक कार्बन सिंक अब समशीतोष्ण वन (47 प्रतिशत) और बोरियल वन (21 प्रतिशत) में स्थित हैं।

हालांकि अधिकांश ध्यान वनों पर केंद्रित है, लेकिन शोध से पता चला है कि घास के मैदानों, आर्द्रभूमि और खेत सहित सभी प्रमुख प्राकृतिक स्थलीय आवासों में बेहतर प्रबंधन, 2030 तक आवश्यक सीओ2 शमन का 37 प्रतिशत तक पूरा करने में मदद कर सकता है। इससे तापमान वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस के अंदर रखने में मदद मिल सकती है। इसमें मैंग्रोव वन शामिल हैं, जिनकी कार्बन भंडारण दर वनों और अन्य पारिस्थितिक तंत्रों की तुलना में 45 गुना अधिक है। पीटलैंड, जो केवल 2 से 3 प्रतिशत भूमि घेरने के बावजूद दुनिया की 25 प्रतिशत कार्बन को धारण करते हैं और घास के मैदान, जो जंगलों की तुलना में सूखे और जंगल की आग के प्रति अधिक प्रतिरोधी हैं।



त्रुटियों से भरा हुआ

हालांकि, वनों और अन्य भूमि-आधारित पारिस्थितिक तंत्रों से निकलने वाले अथवा सोखे गए उत्सर्जन की मात्रा की गणना करना आसान नहीं है और गलती की गुंजाइश अभी भी बहुत अधिक है। यही कारण है कि नेचर क्लाइमेट साइंस में प्रकाशित 2018 के एक पेपर में वनों से शुद्ध उत्सर्जन के आकलन के लिए विभिन्न तरीकों के बीच 5.5 गीगाटन सीओ2 प्रति वर्ष (अमेरिका के वार्षिक उत्सर्जन के बराबर) का अंतर पाया जाता है। भूमि सीओ2 प्रवाह को प्रभावित करने वाले कारक-उत्सर्जन और अवशोषण के बीच के आदान-प्रदान को जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा भी पूरी तरह से समझा नहीं गया है। हालांकि मॉडल लगातार विकसित और अधिक सटीक हो रहे हैं, लेकिन वे कार्यप्रणाली में कठिनाइयों की वजह से प्रभावित हैं।

दरअसल हर तरीके में विभिन्न वन बायोम या जैव क्षेत्र (धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं, जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और जीवों (विशेषकर पौधों और प्राणी) की समानता हो) में सीओ2 अवशोषण की दरों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

यह जटिल है, क्योंकि बढ़ते जंगलों में खड़े जंगलों की तुलना में अवशोषण की दर अधिक होती है। फिर सिंक के गणित में वनों को हटाने का सही हिसाब लगाने में कठिनाई होती है। वनों की कटाई के मामले में कार्बन पदार्थ जंगल से हटा दिया जाता है, जबकि जब एक पेड़ जंगल में मर जाता है तो उसका कार्बन पदार्थ मिट्टी में स्थानांतरित हो जाता है, जहां वह हजारों वर्षों तक संग्रहीत रह सकता है। फिर “स्थायित्व” का जटिल प्रश्न है।

वनस्पति और मिट्टी में संग्रहीत कार्बन किसी भी समय बाढ़, सूखा, आग, कीट प्रकोप या खराब प्रबंधन जैसी गड़बड़ी के कारण छोड़ा जा सकता है। आईपीसीसी की एसआरसीसीएल रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वनीकरण, पुनर्वनीकरण और कृषि वानिकी “अनिश्चित काल तक कार्बन का पृथक्करण जारी नहीं रखते हैं” और अंततः “वायुमंडल से सीओ2 का शुद्ध वार्षिक निष्कासन शून्य की ओर गिर जाता है।”

नासा के पूर्व वैज्ञानिक जेम्स हेन्सन (अब कोलंबिया विश्वविद्यालय, यूएस का हिस्सा) ने 2017 में अनुमान लगाया था कि मिट्टी और जीवमंडल बेहतर कृषि और वानिकी प्रथाओं के माध्यम से 100 जीटीसी (367 गीगाटन सीओ2) की अधिकतम अतिरिक्त सीमा को स्टोर कर सकते हैं। उनका पेपर, जिसे लैंड सिंक की अवशोषण सीमा का एक आधिकारिक दृष्टिकोण माना जाता है, नोट करता है कि “जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में 6 प्रतिशत की वार्षिक कमी के साथ मिलकर और इस अवशोषण क्षमता से इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को होलोसीन रेंज के करीब लाया जा सकता है।”

मेलबोर्न यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट एंड एनर्जी कॉलेज की रिसर्च फेलो केट डूले कहती हैं, “कई अध्ययन भूमि अधिकारों और खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 100 गीगाटन को सबसे सटीक अनुमान के रूप में इंगित करते हैं। सटीक होने के बावजूद यह आंकड़ा जोखिम भरा है, क्योंकि सिंक कमजोर हो रहे हैं और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कार्बन भूमि और जंगलों में रहेगा। यहां तक कि नेचर क्लाइमेट चेंज स्टडी में भी बहुत अधिक अनिश्चितता है। अगर हम मान लें कि पूरी दुनिया के वन सालभर में 7 गीगाटन सीओ2 सोखते हैं तो यह अनिश्चितता प्लस अथवा माइनस 49 गीगाटन सीओ2 प्रतिवर्ष होगी।

हरियाली हथियाना?

अनिश्चितताओं के बावजूद, उष्ण कटिबंध में उच्च अवशोषण दर वैश्विक शमन प्रयासों में वनीकरण या पुनर्वनीकरण के लिए इन स्थानों का पक्ष लेती है। ये संभावित सिंक ज्यादातर विकासशील देशों की सीमाओं के भीतर स्थित हैं और वनों के नुकसान की उच्च दर का सामना करते हैं, जैसे कि अमेजन, कांगो बेसिन, दक्षिण पूर्व एशिया। चूंकि इन भूमि के मौजूदा उपयोगकर्ताओं और निवासियों की अक्सर अनदेखी की जाती है। “ग्रीन ग्रैबिंग एक प्रक्रिया है, जिसके तहत पर्यावरण के लिए भूमि और संसाधनों का उपयोग किया जाता है और ऐसी स्थिति में वहां के निवासी समुदायों के भूमि और अन्य अधिकारों का हनन हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया में चार्ल्स डार्विन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में नेचर सस्टेनेबिलिटी में लिखा है कि स्वदेशी लोग, हालांकि वैश्विक आबादी का 5 प्रतिशत हिस्सा ही हैं लेकिन दुनिया में शेष सभी प्राकृतिक भूमि का 37 प्रतिशत हिस्सा उनके कब्जे में है।

उनके कार्यकाल के अधिकारों की सीमित मान्यता उन्हें भूमि-उपयोग योजनाओं (पर्यावरण योजनाओं सहित) के कारण होनेवाली पुनर्वास और आजीविका के नुकसान के खतरे को बढ़ाएगी। और यह तब है, जब राइट्स एंड रिसोर्सेज इनिशिएटिव के अनुसार, 1,075 गीगाटन सीओ2 स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के सामूहिक वनभूमि में संग्रहीत है। वास्तव में, स्वदेशी और आदिवासी क्षेत्रों में वनों की कटाई की दर काफी कम है, जहां सरकारों ने औपचारिक रूप से सामूहिक भूमि अधिकारों को मान्यता दी है।

यह भी सवाल है कि दुनिया उन जंगली क्षेत्रों की रक्षा कैसे करेगी, जहां स्थानीय समुदाय बसे हुए हैं। उदाहरण के लिए, ब्राजील ने विभिन्न व्यवस्था के तहत 190 मिलियन हेक्टेयर अमेजन वर्षावनों की रक्षा की है, जैसे कि सख्ती से संरक्षित, स्थायी उपयोग और स्वदेशी भूमि के लिए इत्यादि। ब्राजील के वैज्ञानिक ब्रिटाल्डो सोरेस फिल्हो के नेतृत्व में 2010 के एक शोध में कहा गया है कि इस संरक्षण ने वनों की कटाई को रोक दिया और 2004 से 2009 के बीच अमेजन से कार्बन अवशोषण की क्षमता को भी बढ़ाया।

अध्ययन में कहा गया है कि इस भूमि को संरक्षण के लिए अलग रखने की लागत को विकासशील देश के लिए इसके प्रतिस्पर्धी मूल्य के संदर्भ में समझने की जरूरत है। 2009 में टीम ने गणना की कि ब्राजील के अमेजन संरक्षित नेटवर्क के लिए अवसर लागत 141 बिलियन डालर या 5.4 डालर प्रति टन कार्बन है। विशेष रूप से घनी आबादी वाले और गरीब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भूमि की रक्षा कैसे होगी यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। और इस सुरक्षा की अवसर लागत का भुगतान कौन करेगा और किसे?

शालीन नेतृत्व

यह भी चिंता का विषय है कि सिंक के रूप में वनों की भूमिका को अधिक आंकने से विभिन्न देशों में जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए अपर्याप्त कदम उठाए जा सकते हैं। अब तक, देशों ने संयुक्त राष्ट्र की तकनीकी भाषा में वनों को शामिल किया है, जिन्हें भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी के रूप में भी जाना जाता है। यह उनके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के हिस्से के रूप में या पेरिस समझौते के तहत ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के रूप में देखा जा सकता है।

जर्मनी में पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट द्वारा 2019 के अनुमान के अनुसार 167 एनडीसी में से भूमि क्षेत्र उनमें से 121 में शामिल है, लेकिन केवल 11 एक लक्ष्य प्रदान करते हैं, जिसे “एनडीसी में प्रस्तुत या संदर्भित जानकारी का उपयोग करके पूरी तरह से निर्धारित किया जा सकता है।” यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड, यूके की नथाली सेडॉन ने 2019 में आईयूसीएन के लिए एक अध्ययन के दौरान पाया कि कम से कम 66 प्रतिशत एनडीसी में किसी न किसी रूप में प्रकृति आधारित समाधान शामिल हैं, लेकिन मजबूत लक्ष्यों की कमी है।

यद्यपि 70 प्रतिशत से अधिक एनडीसी में वन क्षेत्र में प्रयासों के संदर्भ शामिल होने का अनुमान है, इनमें से 20 प्रतिशत में मात्रात्मक लक्ष्य शामिल हैं और 8 प्रतिशत में कार्बन डाईऑक्साइड समकक्ष के टन में व्यक्त लक्ष्य शामिल हैं। रूस, कनाडा, ब्राजील, अमेरिका और चीन जिनके पास बड़ी वन भूमि है, वे भी सीओ2 के बड़े उत्सर्जक हैं और जिन्हें वन सिंक की ऐसी अनिश्चित गणना से सबसे अधिक लाभ होता है।

अमेरिका में 2019 में 6.6 गीगाटन सीओ2 उत्सर्जन में कुछ 0.78 गीगाटन सीओ2 को “सिंक” से कम किया गया था, जिससे 5.8 गीगाटन सीओ2 का शुद्ध उत्सर्जन हुआ, यह लगभग 12 प्रतिशत की कमी थी। फोर्थ नेशनल क्लाइमेट असेसमेंट के अनुसार, अमेरिकी वनों में कार्बन का भंडारण जारी रखने का अनुमान है, लेकिन घटती दरों पर, जो कि 2037 तक 2013 के स्तर से 35 प्रतिशत कम है, क्योंकि भूमि-उपयोग परिवर्तन और वनों के बड़े होने के कारण सीओ2 अवशोषण की मात्रा कम होती है।

इसी तरह, रूस, जो चौथा सबसे बड़ा जीएचजी उत्सर्जक है, का दावा है कि वन अपने सीओ2 उत्सर्जन के 38 प्रतिशत तक की भरपाई कर सकते हैं, 2018 में, लगभग 0.55 गीगाटन सीओ2 के अवशोषण लिए इसके वन सिंक को जिम्मेदार ठहराया गया था। यह रूस के लिए अपनी एनडीसी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने और उत्सर्जन को रोकने के लिए सार्थक उपाय करने की वास्तविक आवश्यकता को अस्पष्ट करता है।

दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक, चीन, प्रकृति-आधारित समाधानों का एक मजबूत समर्थक बन गया है और 2019 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन से पहले अपने एक तिहाई उत्सर्जन को हटाने के लिए उनका उपयोग करने की योजना बताई है। 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की अपनी योजना में, चीन ने बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के प्रयासों और कार्बन को अवशोषित करने के लिए आर्द्रभूमि की बहाली को शामिल किया है। ऐसा तब हो रहा है जब वैज्ञानिक भूमि सिंकों की क्षमता को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हैं। यदि हमेशा की तरह उत्सर्जन जारी रहता है तो लैंड सिंक की ताकत 2040 तक आधी हो सकती है। डेटा से पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय वन कार्बन सिंक संतृप्त (सैचरैटड) हो गए हैं, जबकि यूरोपीय वन कार्बन सिंक संतृप्ति की ओर बढ़ रहे हैं।