बादलों में नाटकीय रूप से आ रहा है बदलाव; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

क्या पृथ्वी पर बढ़ते तापमान की वजह बन रहे हैं घटते बादल, क्या कहते हैं वैज्ञानिक

अध्ययन से पता चला है कि कई क्षेत्रों में बादलों का आवरण हर दशक करीब 1.5 फीसदी की दर से घट रहा है, जिससे वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है

Lalit Maurya

वैश्विक तापमान में होती वृद्धि एक ऐसी चुनौती है, जिससे आज सारी दुनिया जूझ रही है। बढ़ता तापमान किस कदर हावी हो चुका है, अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2024 में बढ़ता तापमान नए शिखर तक पहुंच गया।

औद्योगिक काल से पहले की तुलना में देखें तो 2024 में वैश्विक औसत तापमान 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। मतलब की बढ़ते तापमान ने डेढ़ डिग्री सेल्सियस की लक्ष्मण रेखा को पार कर लिया है।

ऐसा ही कुछ 2023 में भी देखने को मिला था जब बढ़ते तापमान ने नया कीर्तिमान बनाया था। 2023 में तापमान में होती यह वृद्धि 1.45 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड की गई। हालांकि इसमें अल नीनों की बड़ी भूमिका रही। लेकिन कहीं न कहीं यह बढ़ता तापमान इस बात की ओर इशारा है कि धरती पहले से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है।

ऐसे में यह समझना जरूरी है कि वैश्विक तापमान इतना तेजी से क्यों बढ़ रहा है। स्पष्ट है कि इसमें इंसानों द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन की बड़ी भूमिका है। लेकिन कई और भी ऐसे कारक हैं जो बढ़ते तापमान में मददगार साबित हो रहे हैं, वैज्ञानिकों के मुताबिक उनमें से एक है बादलों के आवरण में आती गिरावट। वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि बादलों में आती इस कमी से पृथ्वी का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक बादलों का आवरण अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था। इसमें हमारी कल्पना से कहीं ज्यादा नाटकीय रूप से बदलाव आ रहा है।

वैज्ञानिकों ने चेताया है कि बादलों में आती इस गिरावट से एक फीडबैक लूप सक्रिय हो सकता है, जिससे स्थिति कहीं और बदतर हो सकती है। इस फीडबैक लूप का मतलब है कि बादलों में आती कमी से सूर्य से कहीं अधिक गर्मी पृथ्वी तक पहुंच रही है, जो धरती को गर्म कर रही है। वहीं दूसरी तरफ बढ़ते तापमान का असर बादलों पर भी पड़ रहा है।

बादलों की संख्या घटने से गर्मी फंसी रहती है। नतीजन पृथ्वी और अधिक गर्म हो रही है, जिससे तापमान को बढ़ने से रोकना और मुश्किल हो रहा है।

वैज्ञानिकों ने हाल ही में पाया है कि पृथ्वी जितनी गर्मी वापस अंतरिक्ष में भेज रही है, उससे कहीं ज्यादा अपने पास रख रही है। इससे पृथ्वी का ऊर्जा संतुलन गड़बड़ा रहा है जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो तापमान में हो रही वृद्धि आगे भी जारी रह सकती है।

पिछले कुछ अध्ययनों से पता चला है कि बादलों में आती कमी बढ़ते तापमान में बड़ी भूमिका निभा रही है।

इस बारे में कोलोराडो विश्वविद्यालय, बोल्डर से जुड़े वैज्ञानिक एंड्रयू गेटलमैन ने अध्ययनों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अंग्रेजी अखबार 'द वाशिंगटन पोस्ट' को जानकारी दी है कि, "बादलों का पृथ्वी की जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में बादलों में होने वाला एक छोटा सा बदलाव भी ग्रह के तापमान में बहुत बड़ा अंतर ला सकता है।"

क्या कहते हैं नतीजे

वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो वे एक कंबल की तरह काम करते हैं, जो कुछ गर्मी (इंफ्रारेड रेडिएशन) को वापस सतह पर भेजते हैं, लेकिन साथ ही सूर्य के प्रकाश को भी परावर्तित करते हैं, जिससे ग्रह को ठंडा रखने में मदद मिलती है।

ऐसे में कम ऊंचाई पर मौजूद कपासी (क्यूम्यलस) बादल पृथ्वी को ठंडा रखने में मदद करते हैं, वहीं अधिक ऊंचाई वाले पक्षाभ (सिरस) मेघ गर्मी को रोकते हैं और जिससे गर्मी बढ़ती है।

कोलोराडो विश्वविद्यालय द्वारा किए एक अध्ययन से पता चलता है कि कम ऊंचाई वाले बादलों का आवरण नाटकीय रूप से घट गया है, जिससे ग्रह पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।

2023 में पृथ्वी का तापमान औद्योगिक काल से पहले तुलना में लगभग 1.45 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि इस वृद्धि में 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि कम ऊंचाई वाले बादलों में गिरावट की वजह से हो सकती है।

इस बीच नासा से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आया है कि पिछले दो दशकों में पृथ्वी पर कुछ सबसे अधिक बादल वाले क्षेत्र सिकुड़ गए हैं। इनमें से एक क्षेत्र भूमध्य रेखा के पास और दो उत्तर एवं दक्षिण में तूफानी मध्य अक्षांश क्षेत्रों में स्थित है। ऐसे में सूर्य की रोशनी को परावर्तित करने वाले बादलों की संख्या में गिरावट आने से ग्रह और भी गर्म हो रहा है।

शोध से पता चला है कि इन क्षेत्रों में बादलों का आवरण हर दशक करीब 1.5 फीसदी की दर से घट रहा है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है।

देखा जाए तो बादलों का प्रभाव उनके प्रकार और ऊंचाई पर निर्भर करता है। निचले, कपासी बादल पृथ्वी को अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले पतले पक्षाभ बादलों की तुलना में बेहतर तरीके से ठंडा करते हैं।

बादलों की संख्या में गिरावट से नए नम बादलों का बनना मुश्किल हो सकता है, जिससे एक चक्र (फीडबैक लूप) बन सकता है। इसकी वजह से तापमान में वृद्धि होगी, जिसका वातावरण और प्रकृति पर गंभीर प्रभाव पड़ पड़ेगा।

हालांकि वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं कि बादलों के आवरण में गिरावट के सटीक प्रभावों का अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन इतना जरूर है कि गर्मी को प्रतिबिंबित करने वाले बादलों की संख्या कम होने से पृथ्वी और भी गर्म हो जाएगी।

देखा जाए तो इससे न भीषण गर्मी की घटनाएं बढ़ सकती है, साथ ही कृषि पैदावार भी प्रभावित हो सकती है।