जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया के सभी महासागर गर्म हो रहे हैं, लेकिन आर्कटिक महासागर, जो दुनिया के महासागरों में सबसे छोटा और उथला है, सबसे तेजी से गर्म हो रहा है। आर्कटिक में तापमान बढ़ रहा है जिससे तेजी से समुद्री बर्फ में कमी आ रही है।
दशकों पहले के रिकॉर्ड बताते हैं कि अटलांटिक महासागर से नाजुक ध्रुवीय पारिस्थितिकी तंत्र में गर्म पानी बह रहा था। गर्म पानी के प्रभाव के चलते आर्कटिक महासागर 20वीं सदी की शुरुआत से ही गर्म होना शुरु हो गया था।
शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने ग्रीनलैंड और स्वालबार्ड के बीच फ्रैम स्ट्रेट नामक क्षेत्र में आर्कटिक महासागर के प्रवेश द्वार पर महासागर के गर्म होने के हाल के इतिहास का पुनर्निर्माण किया।
समुद्री सूक्ष्मजीवों में पाए जाने वाले रासायनिक संकेतों का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि आर्कटिक महासागर पिछली शताब्दी की शुरुआत में तेजी से गर्म होना शुरू हो गया था। अटलांटिक से गर्म और खारा पानी बह रहा था, यह घटना अटलांटिसफिकेशन या अटलांटीकरण के नाम से जानी जाती है। इस तरह के परिवर्तन हो सकता है तापमान बढ़ने से पहले हुई हो। 1900 के बाद से, समुद्र के तापमान में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। जबकि समुद्री बर्फ पिघली और खारेपन में भी वृद्धि हुई।
अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि आर्कटिक महासागर के अटलांटीकरण की घटना पर यह पहला ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं। अटलांटीकरण की घटना उत्तरी अटलांटिक से जुड़ी हुई है। यह आर्कटिक जलवायु मैं होने वाले बदलाव को आकार देने में सक्षम है, जो समुद्री-बर्फ के पिघलने और वैश्विक समुद्र के स्तर में वृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है क्योंकि ध्रुवीय बर्फ की चादरें पिघलती रहती हैं।
कैम्ब्रिज के भूगोल विभाग के सह-प्रमुख शोधकर्ता डॉ. फ्रांसेस्को मस्किटिएलो ने कहा, प्रतिक्रिया तंत्र के कारण आर्कटिक में तापमान बढ़ने की दर वैश्विक औसत से दोगुनी से अधिक है। उन्होंने कहा उपग्रह माप के आधार पर, हम जानते हैं कि आर्कटिक महासागर लगातार पिछले 20 वर्षों में गर्म हो रहा है, लेकिन हम हालिया बढ़ते तापमान को लंबे संदर्भ में रखना चाहते थे।
अटलांटिसफिकेशन या अटलांटीकरण आर्कटिक में तापमान बढ़ने के कारणों में से एक है, हालांकि इस प्रक्रिया की निगरानी करने में सक्षम सहायक रिकॉर्ड, जैसे कि उपग्रह, केवल 40 साल पीछे के आंकड़ों के बारे में ही बता सकते हैं।
जैसे-जैसे आर्कटिक महासागर गर्म होता है, इसकी वजह से ध्रुवीय इलाके में बर्फ पिघलने लगती है, जो बदले में वैश्विक समुद्र के स्तर को प्रभावित करता है। जैसे ही बर्फ पिघलती है, यह समुद्र की अधिक सतह को सूर्य के सामने लाती है, समुद्र गर्मी छोड़ने लगता है जो हवा के तापमान को बढ़ाती है। जैसे-जैसे आर्कटिक गर्म होता जाएगा, यह पर्माफ्रॉस्ट को पिघलाएगा, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कहीं अधिक हानिकारक ग्रीनहाउस गैस, मीथेन की भारी मात्रा को जमा करता है।
शोधकर्ताओं ने पिछले 800 वर्षों में जल स्तंभ गुणों में परिवर्तन के पुनर्निर्माण के लिए महासागर तलछट से भू-रासायनिक और पारिस्थितिक डेटा का उपयोग किया। बोलोग्ना में नेशनल रिसर्च काउंसिल के इंस्टीट्यूट ऑफ पोलर साइंसेज के सह-मुख्य शोधकर्ता डॉ. टेसी टॉमासो ने कहा, जब हमने पूरे 800 साल के कालक्रम को देखा तो तापमान और खारेपन के रिकॉर्ड काफी स्थिर दिखते है। लेकिन अचानक 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, तापमान और खारेपन में यह उल्लेखनीय परिवर्तन मिलता है।
मस्किटिएलो ने कहा आर्कटिक महासागर के द्वार पर इस तेजी से होने वाले अटलांटीकरण का कारण पेचीदा है। हमने अपने परिणामों की तुलना निचले अक्षांशों पर समुद्र के संचलन और लैब्राडोर समुद्र में घने पानी के गठन के साथ किया, जिसमें हमें एक मजबूत संबंध मिला। यह अध्ययन जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ है।
भविष्य में बढ़ते तापमान के परिदृश्य में, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने के कारण इस उपध्रुवीय क्षेत्र में गहरे परिसंचरण में और कमी आने के आसार हैं। हमारे परिणामों बताते हैं कि हम भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक में अटलांटीकरण को बढ़ते हुए देख सकते हैं।
टॉमासो ने कहा जलवायु सिमुलेशन आम तौर पर आर्कटिक महासागर में इस तरह के तापमान बढ़ने को पुन: उत्पन्न नहीं करते हैं, जिसका अर्थ है कि अटलांटीकरण को चलाने वाले तंत्र की पूरी समझ इसमें शामिल नहीं है। हम भविष्य के जलवायु परिवर्तन के बारे में पता लगाने के लिए इन सिमुलेशन पर भरोसा करते हैं, लेकिन आर्कटिक महासागर में शुरुआती दौर में बढ़ते तापमान के बारे में पता लगाना किसी पहेली से कम नहीं है।