हिमाचल प्रदेश में भारत तिब्बत सीमा के साथ सटे किन्नौर जिले की रोपा घाटी के बागवान इस बार कम बर्फबारी होने से सेब की फसल कम होने को लेकर चिंतित हैं। इलाके में कम बर्फबारी और बारिश होने की वजह से बागवानों को पानी की कमी की चिंता सताने लगी है।
पौधों को सूखे की स्थिति से बचाने के लिए रोपा घाटी के बागवानों ने अनूठा प्रयास किया है। वे उच्च क्षेत्रों में जाकर अपनी गाड़ियों में बर्फ लेकर आ रहे हैं और सड़क से बाग तक पीठ पर लादकर बर्फ सेब के पौधों के आसपास बिछा रहे हैं।
बागवान सुरेश बोरिश ने बताया कि हम ऐसे क्षेत्रों से बर्फ को इकट्ठा करके ला रहे हैं, जहां धूप कम लगती है और ज्यादा दिनों तक बर्फ टिकी रहती है। इस बर्फ को हम सेब के पौधों के आसपास रख देते हैं इससे उनमें लंबे समय तक नमी रहती है और उनमें सर्वाइवल रेट बढ़ जाता है। जबकि ऐसा न करने पर नए लगाए पौधों में सूखे की वजह से बहुत नुकसान उठाना पड़ता है।
किन्नौर के पूह ब्लॉक के खंड तकनीकी प्रबंधक जय सिंह ने बताया कि क्षेत्र में इस बार बहुत कम बारिश और बर्फबारी हुई है, जिसका असर फलों में देखने को मिलेगा। पौधों में बीमारियां पनपने का खतरा भी अधिक बढ़ गया है। इसका असर पैदावार पर पड़ेगा।
डॉ वाइएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में प्लांट पैथोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर किशोर शर्मा ने बताया कि जिस तरह की सूखे की परिस्थितियां इस बार बनी हैं उनमें पौधों में नमी बनाए रखना किसान-बागवानों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
उन्होंने अनुमान जताया कि सूखे की वजह से इस बार राज्य में 30 फीसदी तक पैदावार कम हो सकती है। यदि ऐसा ही मौसम बना रहता है तो आने वाले समय में फल व फसलों में बीमारियां बढ़ेंगी।
मौसम विभाग की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर से दिसंबर के बीच हिमाचल प्रदेश में 41 फीसदी बारिश कम दर्ज हुई है, जबकि 1 जनवरी से 13 फरवरी 2025 में भी 77 फीसदी कम बारिश हुई है।
वहीं किन्नौर जिले में अक्टूबर से दिसंबर के बीच 41 फीसदी और जनवरी से फरवरी के बीच मे सामान्य से 90 फीसदी कम बारिश हुई है। अकेले फरवरी माह में सामान्य से 84 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है।
मौसम विज्ञान केंद्र, शिमला की ओर से जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि इस साल फरवरी माह में केवल 3 बार बर्फबारी हुई है, जबकि पिछले वर्ष 2024 में फरवरी माह में 13, 2023 में 6 और 2022 में 12 बार बर्फबारी हुई थी।
हिमाचल प्रदेश में इस बार फलों के पौधों और बुरांस के पौधों में समय से पहले फ्लावरिंग देखने को मिल रही है। जिससे विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसी ही परिस्थितियां बनी रहती हैं तो इसका असर फल व फसलों की पैदावार में विपरीत असर देखने को मिल सकता है।