उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हालिया आपदाओं से हुई व्यापक तबाही के बाद देश के कई वरिष्ठ राजनेता, पर्यावरणविद और प्रख्यात हस्तियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। अपीलकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता करण सिंह समेत कई अन्य प्रमुख लोग शामिल हैं।
अपील में मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया गया है कि उत्तराखंड में बन रही चार धाम राजमार्ग परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 14 दिसंबर 2021 के निर्णय की समीक्षा कर उसे वापस लिया जाए। जिसमें सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के 15 दिसंबर 2020 के परिपत्र को वैध ठहराया गया था। इस परिपत्र ने सीमा से लगे पहाड़ी क्षेत्रों में फीडर हाईवे की चौड़ाई 10 मीटर (डीएल-पीएस मानक) अनिवार्य कर दी थी।
अपीलकर्ताओं का कहना है कि यह निर्णय हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के लिए विनाशकारी साबित हुआ है। उनका तर्क है कि चौड़ीकरण के नाम पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई, भूस्खलन और हिमस्खलन का खतरा बढ़ा है।
अपील में जून 2025 में प्रकाशित एक स्टडी का हवाला देते हुए कहा गया है कि चार धाम परियोजना क्षेत्र में 811 भूस्खलन क्षेत्र हैं और इसमें से ज्यादातर राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने की वजह से बने हैं। एक और अध्ययन का हवाला देते हुए बताया गया है कि केवल ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर हर पांच किलोमीटर में औसतन चार भूस्खलन हो रहे हैं।
अपीलकर्ताओं ने कहा है कि यह निश्चित रूप से वह "विकास" नहीं है, जिसे पिछले 15–20 वर्षों से हम पर थोपा जा रहा है।
ज्ञापन में विशेष रूप से भागीरथी ईको-सेंसिटिव ज़ोन का उल्लेख किया गया है। अपीलकर्ताओं ने कहा कि यहाँ सड़क चौड़ीकरण के लिए हजारों पेड़ों की कटाई की योजना है। हाल ही में धराली (उत्तरकाशी) में हुई तबाही के संदर्भ में उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के पेड़ प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करते हैं और उनकी कटाई को “एक अपराध” माना जाना चाहिए।
अपीलकर्ताओं ने यह भी याद दिलाया कि 2013 की केदारनाथ आपदा से लेकर 2023 और 2025 की भीषण बाढ़ तक, हिमालयी राज्यों में बार-बार आपदाएं जान और माल का भारी नुकसान पहुंचा रही हैं। केवल 2025 की आपदाओं में ही उत्तराखंड सरकार ने केंद्र से 15,700 करोड़ रुपए की राहत राशि की मांग की है।
ज्ञापन में चार धाम राजमार्ग परियोजना के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट से दो मांगें रखी गई हैं। एक- 14 दिसंबर 2021 के निर्णय को वापस लिया जाए। दूसरा केंद्रीय सड़क एवं भूतल परिवहन मंत्रालय के 15 दिसंबर 2020 के परिपत्र को निरस्त कर 2018 के परिपत्र को बहाल किया जाए, जिसमें 5.5 मीटर चौड़ी इंटरमीडिएट सड़क की सिफारिश की गई थी।
अपील में कहा गया है, “गंगा–हिमालय बेसिन 60 करोड़ लोगों का जीवन-आधार है। यदि हिमालय नष्ट होता है, तो पूरा देश प्रभावित होगा। इसलिए यह केवल स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आवश्यकता है।”
संविधान के अनुच्छेद 51-A(g) का हवाला देते हुए कहा गया है कि हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करे। “हम उसी संवैधानिक कर्तव्य के तहत यह अपील कर रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय शेष बची हिमालय की धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए तुरंत कदम उठाए।”
अपीलकर्ताओं में हिमालय की चिंता करने वाले कई प्रमुख लोग शामिल हैं। इनमें शेखर पाठक, रामचंद्र गुहा, केएन गोविंदाचार्य, पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह सहित 57 लोगों के हस्ताक्षर हैं।