जलवायु शोधकर्ता अब वैश्विक स्तर पर मौसम के अवलोकन से ग्लोबल वार्मिंग का पता लगा सकते हैं। इस अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं का कहना है कि अब दैनिक मौसम के आधार पर जलवायु परिवर्तन का पता लगाया जा सकता है।
जलवायु शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु और मौसम एक समान नहीं है। जलवायु वह है जिसका प्रभाव लंबे समय बाद दिखता है, जबकि मौसम अपना प्रभाव छोटे अंतराल में दिखाता है। चूंकि स्थानीय मौसम की स्थिति अत्यधिक परिवर्तनशील होती है, यहां लंबे समय तक ग्लोबल वार्मिंग के बावजूद भी उस स्थान पर बहुत ठंड हो सकती है। संक्षेप में कहें तो स्थानीय मौसम में होने वाले बदलाव वैश्विक जलवायु में लंबी अवधि के लिए रुझान हो सकते हैं।
स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (ईटीएच) ज्यूरिख के प्रोफेसर रेटो कुनट्टी की अगुवाई में एक टीम ने तापमान माप और मॉडल का एक नया विश्लेषण किया है। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि केवल स्थानीय मौसम ही जलवायु परिवर्तन के लिए आधार नहीं है। शोधकर्ताओं के अनुसार, दैनिक मौसम के आंकड़ों, जैसे कि सतह की हवा का तापमान और आर्द्रता को समझना होगा, ताकि जलवायु परिवर्तन के संकेतों की पहचान की जा सके। यहां पर वैश्विक और स्थानीय मौसम के पैटर्न को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।
इसका मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग के बावजूद भी विश्व की कुछ जगहों में अक्टूबर के महीने में बहुत कम तापमान दर्ज किया गया है। यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
सिप्पेल और उनके सहयोगियों ने जलवायु मॉडल और माप स्टेशनों से डेटा के साथ सिमुलेशन को जोड़ने के लिए सांख्यिकीय शिक्षण तकनीकों का उपयोग किया है, ताकि दैनिक मौसम के आंकड़ों में जलवायु परिवर्तन के संकेत का पता लगाया जा सके। सांख्यिकीय शिक्षण तकनीक से विभिन्न क्षेत्रों के तापमान और अपेक्षित तापमान व इसमें बदलाव के अनुपात से जलवायु परिवर्तन का पता चल सकता है। मॉडल सिमुलेशन का व्यवस्थित रूप से मूल्यांकन करके शोधकर्ता 2012 के बाद से किसी भी दिन के वैश्विक माप डेटा में से जलवायु परिवर्तन की पहचान कर सकते हैं।
कुनट्टी कहते हैं कि वैश्विक स्तर पर मौसम जलवायु के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है। यह ग्लोबल वार्मिंग की पृष्ठभूमि के खिलाफ क्षेत्रीय मौसम की घटनाओं के बारे में बताता है। यह हाइड्रोलॉजिकल चक्र में बहुत महत्वपूर्ण है, जहां दिन-प्रतिदिन और साल-दर-साल बहुत बड़े प्राकृतिक उतार-चढ़ाव होते हैं। ईटीएच प्रोफेसर कहते हैं कि इसलिए, भविष्य में, हमें मानव-प्रेरित पैटर्न और अन्य जटिल मापदंडों के रुझानों, जैसे कि वर्षा, को पारम्परिक आंकड़ों का उपयोग करके पता लगाना कठिन हो सकता है।