अनिल अग्रवाल डायलॉग को संबोधित करती सुनीता नारायण। फोटो: विकास चौधरी 
जलवायु

अनिल अग्रवाल डायलॉग 2025: बढ़ते तापमान और भारत पर हावी होती चरम मौसमी घटनाओं पर विशेषज्ञों ने जताई चिंता

विश्लेषक किरण पांडे का कहना है, ‘2024 को जलवायु परिवर्तन से पहले और बाद के काल के बीच बदलाव को चिह्नित करने वाले साल के रूप में याद किया जाएगा।‘

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसे चाह कर भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। भारत सहित दुनिया के करीब-करीब सभी देश इस समस्या से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों ने भी भारत में चरम मौसमी घटनाओं के बढ़ते खतरे को लेकर चिंता जताई है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने भी अपनी नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2025” में इसके बढ़ते प्रभावों को उजागर किया है।

यह रिपोर्ट सीएसई के सालाना मीडिया इवेंट ‘अनिल अग्रवाल डायलॉग 2025’ के दौरान जारी की गई है।

रिपोर्ट में यूरोपियन यूनियन की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है 2024 दर्ज जलवायु इतिहास का पहला साल है, जब वैश्विक तापमान में होती वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गई है। गौरतलब है कि 2024 में वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, जो बड़े खतरे की ओर इशारा है।

सीएसई में कार्यक्रम निदेशक और विश्लेषक किरण पांडे का इस बारे में कहना है, "2024 को जलवायु परिवर्तन से पहले और बाद के युगों के बीच बदलाव को चिह्नित करने वाले साल के रूप में याद किया जाएगा।"

वह आगे बताती हैं कि “वैश्विक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ हवा में नमी की मात्रा सात फीसदी बढ़ जाती है। इससे चरम मौसम घटनाओं और ग्रह पर बड़ी गड़बड़ियों के लिए आदर्श परिस्थितियां बनती हैं।“

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ (डीटीई) द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि 2024 के दौरान भारत में पिछले दो वर्षों की तुलना में कहीं अधिक चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा विकराल रूप ले चुकी हैं।

सीएसई द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि 2024 के पहले नौ महीनों में देश ने 274 में से 255 दिन चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया था। वहीं 2023 में यह आंकड़ा 235 दिन, जबकि 2022 में 241 दर्ज किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक इन चरम मौसमी घटनाओं ने किसानों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। इनकी वजह से 2024 में 32 लाख वर्ग किलोमीटर में फसलों को नुकसान पहुंचा है, जो 2022 की तुलना में 74 फीसदी अधिक है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और डाउन टू अर्थ के विश्लेषकों किरण पांडे और रजित सेनगुप्ता के मुताबिक 2024 में इन चरम मौसमी घटनाओं ने 3,472 जिंदगियों को छीन लिया, चिंता की बात है कि तीन वर्षों में इनमें 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि हर गुजरते साल के साथ स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर होती जा रही है।

उनके मुताबिक 2024 में भारत को लू, शीतलहर, चक्रवात, भारी बारिश, आकाशीय बिजली, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं से जूझना पड़ा है।

सीएसई-डीटीई द्वारा जारी  इंटरैक्टिव एटलस और डेटाबेस के मुताबिक, भारत को हर दिन कम से कम एक न एक आपदा का सामना करना पड़ा है। वहीं पिछले तीन वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2024 में सबसे ज्यादा दिन चरम मौसमी घटनाओं से आमना-सामना हुआ है। इनकी वजह से देश को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

जनरेशन अल्फा को विरासत में मिली है जलवायु परिवर्तन से जूझती दुनिया

सीएसई-डीटीई द्वारा जारी एटलस में यह भी सामने आया है कि 2024 में इन चरम मौसमी घटनाओं की वजह से 40.7 लाख हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचा है। वहीं 2023 में यह आंकड़ा 22.1 लाख हेक्टेयर, जबकि 2022 में 19.6 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया। इसका मतलब है कि 2022 की तुलना में इस नुकसान में 108 फीसदी का इजाफा हुआ है।

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2025 के लेखकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान जनरेशन अल्फा के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। 21वीं सदी की इस पहली पीढ़ी को इस दंश का सामना करती दुनिया विरासत में मिली है।

जनरेशन अल्फा जिसके 2025 एक 200 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है, वो अनचाहे संकट से जूझ रही है। भले ही पिछली पीढ़ियों के लिए, जलवायु परिवर्तन एक बढ़ता हुआ वैश्विक संकट था। लेकिन यह पीढ़ी जो इतिहास में सबसे बड़ी है, पहले ही एक ऐसे गर्म ग्रह में रहने को मजबूर है जो बदलावों को देख रहा है।