हाल के दिनों में राजस्थान और गुजरात में लाखों एकड़ जमीन पर खड़ी फसल की बर्बादी की वजह टिड्डी दल का हमला है। पूर्व पौधा संरक्षण अधिकारी और डेजर्ट लोकस्ट एक्सपर्ट अनिल शर्मा ने नीमली, राजस्थान में चल रहे अनिल अग्रवाल डायलॉग 2020 में कहा कि टिड्डी दल का एक ही लक्ष्य होता है, रास्ते में कहीं भी हरियाली दिखे तो उसे चट कर जाओ। जलवायु परिवर्तन से टिड्डों के हमले को जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि अफ्रीकी देश, खाड़ी देशों में बारिश की वजह से टिड्डों की संख्या बढ़ी है।
थार रेगिस्तान में जलवायु परिवर्तन की वजह से टिड्डों का प्रजनन तेजी से हो रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बेमौसम बारिश हो रही है जिससे टिड्डों की संख्या काफी बढ़ गई है। ये टिड्डे उड़कर भारत आ जाते हैं। पिछले वर्ष टिड्डों ने गुजरात और राजस्थान की 3,92,093 हेक्टेयर जमीन की हरियाली को चट कर दिया।
वह कहते हैं कि टिड्डे से बचने का कोई तरीका किसान और सरकारों के पास नहीं दिखता। जब भी टिड्डी दल के हमले की खबर आती है, सरकार को तुरंत इसका सर्वे कर क्षति का आकलन और टिड्डा के प्रकार पर शोध करना चाहिए। पीला या गुलाबी टिड्डा देखते ही उसे खत्म करने का इंतजाम होना चाहिए।
भारत में टिड्डों के हमले का इतिहास
1991 के बाद टिड्डे के कई प्रकार सामने आए, जिसमें कुछ पीले, कुछ हरे तो कुछ भूरे रंग के थे। हर बार भ्रम हुआ कि यह कोई अलग प्रजाति है। भारत में 1925 में टिड्डी दल का हमला हुआ था जो 1929 तक चला। वर्ष 1931 में तब की अंग्रेज सरकार ने एक संस्थान की स्थापना की थी, जिसका दफ्तर करांची में था, जो बाद में विभाजन के बाद जोधपुर आ गया। इस संस्थान ने 1939 में सर्वे के बाद एक रिपोर्ट पेश की। हालांकि, इसके बाद सरकारों की तरफ से कोई पुख्ता कदम नहीं उठाया गया।
क्यों खतरनाक है टिड्डी दल का हमला
अनिल शर्मा ने कहा कि देखा गया है कि जब टिड्डी दल का हमला होता है तब फसल बर्बाद होने की वजह से गांव के गांव खाली हो जाते हैं। टिड्डों पर नियंत्रण के लिए सरकार को रासायनिक दवाई, भारी मात्रा में पानी और छिड़काव का इंतजाम करना पड़ता है। मरुस्थल में ऐसी व्यवस्था करना लगभग नामुमकिन है।
शर्मा ने मरुस्थल के टिड्डों के बारे में बताते हुए कहा कि इस प्रजाति की वजह से इंसानों के द्वारा किया जाने वाला विकास का हर काम रुक सकता है। इसे समझाते हुए उन्होंने कहा कि मादा टिड्डी जीवनकाल में 3 बार अंडों का समूह पैदा करती है और एक समूह में 120 अंडे होते हैं। ये वयस्क होने के बाद 10 से 12 घंटे उड़ सकते हैं। ये समूह में उड़ते हैं जिससे रेल, रोड और हवाई यातायात प्रभावित हो सकता है। सामान्य स्थिति में ये 150 किमी रोज और हवा के साथ ये 400 किमी रोज यात्रा कर सकते हैं। ये नीम, जामुन जैसे कुछ पौधों को छोड़कर किसी भी हरे पत्ते को रास्ते में चलते हुए समाप्त करते जाते हैं।