जलवायु

50 वर्षों में विलुप्त हो जाएंगी पश्चिमी हिंद महासागर की सभी प्रवाल भित्तियां?

वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा वैश्विक तापमान में हो रही तीव्र वृद्धि और जरुरत से ज्यादा किए जा रहे मछलियों के शिकार के कारण हो रहा है

Lalit Maurya

अगले 50 वर्षों में पश्चिमी हिंद महासागर की सभी प्रवाल भित्तियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा वैश्विक तापमान में हो रही तीव्र वृद्धि और जरुरत से ज्यादा किए जा रहे मछलियों के शिकार के कारण हो रहा है, जिसके कारण इन प्रवाल भित्तियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।

जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में छपे इस शोध के मुताबिक यदि इन प्रवाल भित्तियों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई न की गई तो अफ्रीका के पूर्वी तट, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे द्वीपीय देशों में कोरल्स के विलुप्त होने का खतरा सबसे ज्यादा है। यह पहला मौका है जब शोधकर्ता हिंद महासागर के विशाल पश्चिमी हिस्सों में अलग-अलग प्रवाल भित्तियों पर मंडराते खतरे का आंकलन करने में सक्षम थे। उन्होंने अपने इस शोध में प्रवाल भित्तियों को प्रभावित करने वाले प्रमुख खतरों की भी पहचान की है। 

शोधकर्ताओं को पता चला है कि इस क्षेत्र की ज्यादातर सभी भित्तियां एक ऐसे खतरे की और बढ़ रही हैं, जो अगले अगले कुछ दशकों में ही इनके पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकता है और जिसकी भरपाई करना लगभग नामुमकिन है।   

इस बारे में जानकारी देते हुए इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता और केन्या स्थित महासागर अनुसंधान संस्थान के निदेशक डेविड ओबुरा ने जानकारी दी है कि जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो काफी गंभीर हैं। इस पूरे क्षेत्र में कोई भी जगह ऐसी नहीं है जहां भित्तियां पूरी तरह स्वस्थ हैं। वो सभी कुछ न कुछ हद तक प्रभावित हुई हैं और अनुमान है कि भविष्य में स्थिति बदतर हो सकती है। 

गौरतलब है कि अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने पश्चिमी हिन्द महासागर के करीब 11,919 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कोरल्स रीफ्स का आंकलन किया है जोकि विश्व की कुल प्रवाल भित्तियों के लगभग पांच फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।  शोधकर्ताओं की मानें तो मॉरीशस, सेशेल्स, कोमोरोस और मेडागास्कर जैसे देशों में जो दुनिया के लोकप्रिय पर्यटन क्षेत्रों में से हैं वो काफी हद तक इकोटूरिज्म के लिए समुद्री पर्यावरण पर निर्भर हैं, जो सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। 

यही नहीं वैश्विक स्तर पर समुद्री हीटवेव के परिणाम पहले ही बड़े स्तर पर कोरल ब्लीचिंग के रूप में सामने आने लगे हैं| अनुमान है कि समय के साथ यह घटनाएं गंभीर और तीव्र होती जाएंगी, जो बड़े पैमाने पर प्रवाल भित्तियों के मरने का कारण बन सकती हैं|

बढ़ता तापमान प्रवाल भित्तियों के लिए बन चुका है बड़ा खतरा

शोध की मानें तो जलवायु परिवर्तन पश्चिमी हिन्द महासागर में प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है, दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में इस क्षेत्र में समुद्री जल का तापमान कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है।  देखा जाए तो महासागर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण पैदा होने वाली 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर लेते हैं, इस तरह से यह जमीन की सतह को तो तेज गर्मी से बचा लेते हैं पर इनके कारण समुद्रों में लम्बे समय तक चलने वाली हीटवेव पैदा होती है जो मूंगों की कई प्रजातियों के लिए खतरा बन जाती हैं। 

लेकिन इसके साथ ही महाद्वीपीय अफ्रीका के पूर्वी तट पर केन्या से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक जरुरत से ज्यादा मछलियों का शिकार भी प्रवाल भित्तियों के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ-साथ मछलियों के बढ़ते शिकार जैसे स्थानीय खतरों पर भी ध्यान देने की जरुरत है। 

जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि 1950 से लेकर अब तक जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण, मछलियों के अनियंत्रित शिकार और उनके आवास को होते नुकसान के चलते करीब आधी प्रवाल भित्तियों का सफाया हो चुका है।   

गौरतलब है कि प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंसेज जर्नल (पनास) में छपे एक शोध में भी वैश्विक स्तर पर प्रवाल भित्तियों पर मंडराते खतरे के प्रति आगाह किया गया था। इस शोध के मुताबिक यदि वैश्विक उत्सर्जन में हो रही तीव्र वृद्धि जारी रहती है तो 2050 तक दुनिया की 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी। 

हालांकि यह अनुमान जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब परिदृश्य आरसीपी 8.5 पर आधारित था, जबकि यदि आरसीपी 2.6 परिदृश्य के तहत देखें तो सदी के अंत तक करीब 63 फीसदी प्रवाल भित्तियों में वृद्धि जारी रहनी की सम्भावना है जो दर्शाता है कि उमीदें अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। 

यह प्रवाल भित्तियां वैश्विक समुद्र तल के केवल एक छोटे से अंश यानी 0.2 फीसदी हिस्से को कवर करती हैं, लेकिन वो सभी समुद्री जीवों और पौधों की कम से कम एक चौथाई आबादी का आधार हैं। देखा जाए तो यह खूबसूरत प्रवाल भित्तियां न केवल समुद्री परिस्थितिकी तंत्र बल्कि हमारे लिए भी बहुत मायने रखती हैं| दुनिया भर में यह करीब 8.3 लाख से ज्यादा  प्रजातियों को आसरा देती हैं| साथ ही यह तटों पर रहने वाले लोगों को भोजन और जीविका प्रदान करती हैं, जिनसे मछली पालन और पर्यटन को मदद मिलती है| इतना ही नहीं यह समुद्री तूफानों से भी तटों की रक्षा करती हैं, साथ ही कई डूबते द्वीपों के लिए आधार प्रदान करती हैं|

ऐसे में इन खूबसूरत जीवों को बचाना पारिस्थितिकी तंत्र के लिए काफी मायने रखता है, जिसके लिए वैश्विक उत्सर्जन को कम करना अत्यंत जरुरी है।  साथ ही दुनिया भर में जिस तरह अंधाधुंध तरीके से मछलियों और समुद्री जीवों का शिकार किया जा रहा है उसे भी नियंत्रित करना जरुरी है।