जलवायु

भारत में जरूरी हो जाएगा एयरकंडीशनर, 2050 तक 23 गुना बढ़ जाएगी संख्या

अनुमान है कि सबसे बदतर हालात में जलवायु परिवर्तन के चलते देश का तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, ऐसे में आज की तुलना में एयर कंडीशनरों की जरुरत कई गुना बढ़ जाएगी

Lalit Maurya

वैश्विक तापमान में जिस तरह से वृद्धि हो रही है उसके चलते आने वाले समय में एयर कंडीशनर भारत में लक्ज़री नहीं बल्कि वक्त की जरुरत बन जाएंगे। अनुमान है कि 2050 तक भारत में करीब 110 करोड़ एयर कंडीशनर (एसी) लग चुके होंगें।

वहीं यदि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो 2020 में देश में करीब 4.8 करोड़ एसी थे। मतलब कि इन 28 वर्षों में एयर कंडीशनर की संख्या में करीब 23 गुना वृद्धि होने की सम्भावना है।

देखा जाए तो इसके लिए बढ़ती आबादी और वैश्विक तापमान में होती वृद्धि जिम्मेवार है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सबसे बदतर हालात में जलवायु परिवर्तन के चलते देश का तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। वहीं यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि की बात करें तो वो औद्योगिक काल से पहले की तुलना में करीब 1.01 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।

अभी हाल के कुछ महीनों में जिस तरह से भारत, यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों में जिस तरह से गर्मी और लू ने अपना कहर ढाया है, उसने स्पष्ट कर दिया है कि बढ़ता तापमान अब विकराल रूप लेता जा रहा है। इन कुछ महीनों में गर्मी के चलते हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। वहीं वैज्ञानिकों की मानें तो आने वाले समय में यह स्थिति कहीं ज्यादा विकट हो सकती है।

इसके बारे में कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि ऐसा ही चलता रह तो यह बढ़ता तापमान 2050 तक 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा। ऐसे में न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में एयर कंडीशनर की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी।

देखा जाए तो इसके लिए कहीं न कहीं बढ़ती आबादी की भी बड़ी भूमिका होगी। आंकड़ों की मानें तो अगले 28 वर्षों में भारत की आबादी में 20 करोड़ की वृद्धि हो सकती है, जबकि 2030 तक देश में मध्यवर्गीय आबादी बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। स्पष्ट है कि बदलती जलवायु और लोगों की पहुंच में आने के कारण देश दुनिया में एयर कंडीशनिंग (एसी) की मांग काफी बढ़ जाएगी।

देश में 10 फीसदी से भी कम आबादी के पास हैं एसी

गौरतलब है कि अभी भारत में 10 फीसदी से भी कम आबादी के पास एसी है। वहीं अनुमान है कि उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में 2050 तक भारत और इंडोनेशिया की 99 फीसदी शहरी आबादी को एयर कंडीशनिंग की जरुरत होगी।

ऐसा नहीं है कि बढ़ते तापमान और उसके चलते एयर कंडीशनर की बढ़ती मांग का असर सिर्फ भारत पर ही पड़ेगा। पूरी दुनिया इसके दायरे में आती है। वैज्ञानिकों  का अनुमान है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते वर्तमान तापमान अगले 30 वर्षों में कम लग सकता है।

यूके जैसे देशों में जहां एयर कंडीशनिंग दुर्लभ है वहां पिछले कुछ महीनों में हालात इतने बदतर हो गए थे कि वहां स्कूल, कार्यालय और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बंद करना पड़ गया था। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसकी वजह से अस्पतालों ने गैर-आपातकालीन सेवाओं को बंद कर दिया था।

देखा जाए तो एयर कंडीशनिंग जिसे लोग विलासिता का साधन समझते हैं वो आने वाले समय में बढ़ती गर्मी और लू के चलते जीवनरक्षक उपकरण बन जाएगा। लेकिन विडम्बना देखिए की इसके बावजूद दुनिया के सबसे गरीब हिस्सों में बसने वाली 280 करोड़ की आबाद के केवल 8 फीसदी घरों में एसी है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि बढ़ते उत्सर्जन के चलते कई देशों में कम से कम 70 फीसदी आबादी को 2050 तक एयर कंडीशनिंग की जरुरत होगी। वहीं उत्सर्जन की वर्तमान दर में भारत और इंडोनेशिया जैसे भूमध्यरेखीय देशों में कहीं ज्यादा आबादी को इसकी जरुरत पड़ सकती है। यहां तक ​​​​कि अगर दुनिया पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर भी ले तो यह आंकड़ा दुनिया के कई सबसे गर्म देशों में औसतन 40 से 50 फीसदी के बीच होगा।

जर्नल एनर्जी एंड बिल्डिंग्स में प्रकाशित इस रिसर्च के मुताबिक हालांकि आने वाले वक्त में एसी लोगों की जरुरत बन जाएगा। इसके बावजूद इसकी उपलब्धता में विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई काफी गहरी है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते जर्मनी जोकि एक समशीतोष्ण जलवायु वाले देश है उसमें भी भीषण गर्मी के दौरान 92 फीसदी आबादी को एसी की जरुरत होगी, वहीं अमेरिका में 96 फीसदी आबादी को इसकी जरुरत पड़ सकती है। भले ही उत्सर्जन में गिरावट आ भी जाए तो भी भारत की 92 फीसदी और इंडोनेशिया 96 फीसदी शहरी आबादी को एयर कंडीशनिंग लगाने की जरुरत होगी।

देखा जाए अमेरिका जैसे अमीर देश भविष्य में खराब से खराब स्थिति के लिए भी बेहतर तरीके से तैयार हैं। वर्तमान में, अमेरिका की लगभग 90 फीसदी आबादी के पास एसी है, जबकि भारत और इंडोनेशिया में यह दर 9 फीसदी से भी कम है।

सिर्फ महंगें एयर कंडीशनर ही नहीं हैं बढ़ती गर्मी का ईलाज

इसके साथ-साथ एक और समस्या है जिसके लिए तैयार रहने की जरुरत है और वो है बढ़ती ऊर्जा की मांग। अनुमान है की एसी की बढ़ती मांग के साथ बिजली की मांग भी बढ़ जाएगी। बढ़ती गर्मी और लू पहले ही दुनिया भर में विद्युत ग्रिडों को प्रभावित कर रही है। ऐसे में बढ़ती मांग मौजूदा सिस्टम को ब्रेकिंग पॉइंट पर धकेल सकती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में, एयर कंडीशनिंग पहले से ही कई राज्यों में अत्यधिक गर्म दिनों में उच्चतम आवासीय बिजली की मांग के करीब 70 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेवार है।

ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में वर्तमान ऊर्जा सम्बन्धी मांग को देखते हुए भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों के लिए ऊर्जा सम्बन्धी योजनाएं नहीं बनाई जा सकती। शोध के अनुसार इन देशों में कूलिंग के लिए मौजूदा कुल वार्षिक बिजली की मांग के करीब 75 फीसदी हिस्से की जरुरत होगी।

उनके अनुसार ऐसे में सोलर एनर्जी जैसी प्रौद्योगिकियां इन चुनौतियों से निपटने में विशेष रूप से कारगर सिद्ध हो सकती हैं। इसके साथ-साथ बेहतर बिल्डिंग निर्माण तकनीकें भी इस समस्या को हल करने में काफी हद तक मददगार हो सकती हैं।

देखा जाए तो बिल्डिंग्स में महंगे एसी नेचुरल वेंटिलेशन की तुलना में कहीं ज्यादा आराम दे सकता है लेकिन नेचुरल वेंटिलेशन इसके पर्यावरण और कीमत  को ध्यान में रखते हुए कहीं ज्यादा कारगर विकल्प हैं। इसी तरह बढ़ते कंक्रीट के जंगल में ज्यादा से ज्यादा पेड़ भी बढ़ते तापमान के असर को सीमित करने में काफी हद तक मददगार हो सकते हैं।