वर्तमान में, पर्माफ्रॉस्ट पारिस्थितिकी तंत्र ग्रह के बाकी हिस्सों की तुलना में तीन से चार गुना तेजी से गर्म हो रहे हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में कार्बन चक्रण और श्वसन में वृद्धि हो रही है।  फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, ब्रांट मेक्सेल
जलवायु

जलवायु परिवर्तन को चरम पर पहुंचा रहा है गर्म होता आर्कटिक, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट से अतिरिक्त उत्सर्जन भविष्य के जलवायु परिवर्तन को 10 से 20 फीसदी तक बढ़ा देगा, जिसका अनुमानित प्रभाव 2100 तक एक बड़े औद्योगिक राष्ट्र के बराबर होगा।

Dayanidhi

दुनिया भर के शोधकर्ताओं द्वारा पर्माफ्रॉस्ट कार्बन नेटवर्क के माध्यम से हाल ही में किए गए तीन शोधों में गर्म होते आर्कटिक टुंड्रा में होने वाली जैविक प्रक्रियाओं की जांच की है। जांच से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के जारी रहने से उस क्षेत्र के साथ-साथ दुनिया भर में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं। इस शोध में अन्य शोधकर्ताओं के साथ उत्तरी एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अहम भूमिका निभाई है।

दुनिया के सबसे उत्तरी पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें उत्तरी परिध्रुवीय पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र भी शामिल है, कार्बनिक कार्बन का एक अहम भंडार है। हालांकि यह क्षेत्र, जिसमें टुंड्रा और बोरियल जंगल का अधिकांश हिस्सा शामिल है, यहां धरती के मिट्टी का केवल 15 फीसदी हिस्सा है, लेकिन यह दुनिया की मिट्टी के कार्बनिक कार्बन का लगभग एक तिहाई हिस्सा जमा करता है।

पानी की तरह ही, कार्बन पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्रों में घूमता है, कुछ पौधों के प्रकाश संश्लेषण द्वारा वायुमंडल से बाहर निकाला जाता है और कुछ अन्य जैविक प्रक्रियाओं जैसे कि अपघटन के माध्यम से वायुमंडल में छोड़ा जाता है। कार्बन को वायुमंडल में छोड़ने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाओं को सामूहिक रूप से पारिस्थितिकी तंत्र श्वसन के रूप में जाना जाता है।

वर्तमान में, पर्माफ्रॉस्ट पारिस्थितिकी तंत्र ग्रह के बाकी हिस्सों की तुलना में तीन से चार गुना तेजी से गर्म हो रहे हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में कार्बन चक्रण और श्वसन में वृद्धि हो रही है। शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से इस बात की आशंका जताई है कि आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट से अतिरिक्त उत्सर्जन भविष्य के जलवायु परिवर्तन को 10 से 20 फीसदी तक बढ़ा देगा, जिसका अनुमानित प्रभाव 2100 तक एक बड़े, औद्योगिक राष्ट्र के बराबर होगा।

शोध में कहा गया है कि पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्यों में पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र से उत्सर्जन में वृद्धि के अनुमानों को ठीक से शामिल नहीं किया गया है। पेरिस समझौते के तहत 196 देशों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों में पर्माफ्रॉस्ट से होने वाले इन भावी उत्सर्जनों को शामिल नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने को ध्यान में रखते हुए वैश्विक और राष्ट्रीय कार्बन उत्सर्जन में कटौती को और अधिक महत्वाकांक्षी बनाना होगा।

पारिस्थितिकी तंत्र श्वसन पर शोध

वैज्ञानिकों ने पर्माफ्रॉस्ट वाले इलाकों से आंकड़े एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने का काम किया, ताकि दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र श्वसन को प्रभावित करने वाले कारणों को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पर्माफ्रॉस्ट और नॉन-पर्माफ्रॉस्ट दोनों पारिस्थितिकी तंत्रों में 70 इलाकों से कई दशकों के वार्षिक कार्बन डाइऑक्साइड प्रवाह के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें 181 पारिस्थितिकी तंत्रों से गर्मियों के आकड़े शामिल किए गए थे। उन्होंने पाया कि नॉन-पर्माफ्रॉस्ट सिस्टम गर्मियों में पौधों की वृद्धि के साथ अतिरिक्त कार्बन जमा करते हैं, लेकिन पर्माफ्रॉस्ट पारिस्थितिकी तंत्रों में, पतझड़ और सर्दियों में कार्बन का नुकसान इतना अधिक था कि गर्मियों में इसी तरह की वृद्धि से इसकी भरपाई हो जाती है।

शोधकर्ता ने कहा, पर्माफ्रॉस्ट वाले इलाकों में पतझड़ और सर्दियों की शुरुआत में पहले की तुलना में अधिक कार्बन निकलती है, जो गर्मियों के दौरान बढ़ते तापमान और इनके अधिक पिघलने के कारण है।

नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 28 टुंड्रा वाले इलाकों पर 56 प्रयोगों से आंकड़ों को जमा किया, जिसमें बढ़ते तापमान का अनुकरण करने के लिए छोटे समय में ग्रीनहाउस का उपयोग किया गया था, फिर परिणामों की गहन जांच पड़ताल की गई ताकि यह बेहतर ढंग से समझा जा सके कि भविष्य में बढ़ता तापमान इस क्षेत्र को कैसे प्रभावित कर सकता है। उन्होंने पाया कि हवा में 1.4 डिग्री सेल्सियस और मिट्टी में 0.4 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान में वृद्धि से पारिस्थितिकी तंत्र श्वसन में 30 फीसदी की वृद्धि हुई।

दोनों अध्ययनों ने स्थानीय पर्यावरणीय कारणों - जैसे कि पानी और पोषक तत्वों की उपलब्धता की ओर भी इशारा किया, जिसके कारण विभिन्न जगहों पर कार्बन अवशोषण या श्वसन अलग-अलग देखे गए।

इन अध्ययनों से प्राप्त आंकड़ों से पर्माफ्रॉस्ट के इलाकों में बढ़ते तापमान के जवाब में कार्बन चक्रण और जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया से एक अलग तरह की जानकारी निकल कर सामने आई। यह एक ऐसी जानकारी है जिसका उपयोग दुनिया भर में बढ़ते तापमान को सीमित करने के लिए मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए नीति निर्माण में किया जा सकता है।

दशकों के आंकड़ों और उनकी गणना

शोध के मुताबिक, पर्माफ्रॉस्ट के इलाकों में शोध जारी है और जैसे-जैसे शोधकर्ता अधिक आंकड़े एकत्र करते हैं, वे कार्बन चक्रण के बारे में बेहतर जानकारी सामने रख सकते हैं। नेचर क्लाइमेट चेंज विश्लेषण में, शोधकर्ताओं ने 1990 से 2009 के बीच किए गए मापों के आधार पर कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण और कार्बन डाइऑक्साइड के नुकसान की तुलना करने वाले पिछले शोध के विरोधाभासी निष्कर्षों का भी निपटारा किया।

शोध में कहा गया है कि प्रकृति आधारित पर्माफ्रॉस्ट के आंकड़ों को इकट्ठा करना, उसका विश्लेषण करना और निष्कर्ष निकालना आसान नहीं है।