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ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का एक हिस्सा टिपिंग प्वाइंट के करीब पहुंचा

ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने से दुनिया भर में समुद्र स्तर के 7 मीटर तक बढ़ने के आसार हैं, साथ ही प्रमुख महासागरीय धाराओं, मानसून, वर्षावन, हवा संबंधी प्रणालियों और वर्षा पैटर्न को बाधित करने के कारण ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होने की भी आशंका है।

Dayanidhi

अध्ययनकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर ग्रीनलैंड की बर्फ की पूरी चादर तेजी से पिघल जाती है, तो पूरी दुनिया के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने से दुनिया भर में समुद्र स्तर के 7 मीटर तक बढ़ने के आसार हैं।

ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के नुकसान से प्रमुख महासागरीय धाराओं, मानसूनी इलाकों, वर्षावन, हवा संबंधी प्रणालियों और वर्षा पैटर्न को बाधित करने के कारण ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होने की आशंका जताई गई है।   

अध्ययनकर्ताओं ने सेंट्रल-वेस्टर्न ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के जैकबशवन ड्रेनेज बेसिन के आंकड़ों से पता लगाया है कि बर्फ की चादर का यह हिस्सा नष्ट होने अथवा एक टिपिंग प्वाइंट पर पहुंच गया है। इस बात का खुलासा जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च, निकलास बोअर्स और नॉर्वे के आर्कटिक विश्वविद्यालय के मार्टिन रिपडल ने किया है।

यहां बताते चलें कि जैकबशवन ड्रेनेज बेसिन के माध्यम से बर्फ की चादर या ग्लेशियरों से संबंधित आंकड़ो को एकत्र किया जाता है। उपरोक्त सभी पिछले 140 वर्षों के दौरान बर्फ की चादर के पिघलने की दरों और बर्फ की चादर की ऊंचाई में होने वाले बदलाव का सावधानीपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं।

दोनों अध्ययनकर्ताओं ने स्थिति का आकलन करने के लिए ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर की करीबी से निगरानी का प्रस्ताव रखा है। इस अध्ययन का नेतृत्व कोपेनहेगन विश्वविद्यालय, डेनमार्क और जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च द्वारा किया गया है। यह अध्ययन पीएनएएस में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन में, रिपडल और बोअर्स ने 1880 के बाद से सेंट्रल-वेस्टर्न ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के ऊंचाई में हो रहे बदलावों का विश्लेषण किया है और उनकी तुलना संबंधित मॉडल सिमुलेशन से की है। विश्लेषण से उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला हैं कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का यह हिस्सा अस्थिर हो गया है, इसके तीव्र गति से पिघलने की स्थिति में यह नष्ट होने के कगार पर पहुंच जाएगा है, भले ही आने वाले दशकों में आर्कटिक के गर्म होने की प्रवृत्ति रुक ही क्यों जाए।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि एक बर्फ की चादर अपने आकार को तभी बनाए रख सकती है जब ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ का द्रव्यमान या बर्फ की हानि इसकी सतह पर गिरने वाली बर्फ से कम हो। आर्कटिक का गर्म होना इस द्रव्यमान संतुलन को बिगाड़ देता है क्योंकि गर्म ग्रीष्मकाल में सतह पर बर्फ अक्सर पिघल जाती है।

बर्फ की चादर का पिघलना ज्यादातर कम ऊंचाई पर अधिक बढ़ेगा, लेकिन कुल मिलाकर, यह बड़े पैमाने पर असंतुलन से सिकुड़ जाएगी। जैसे ही बर्फ की चादर की सतह कम होती है, इसकी सतह उच्च औसत तापमान के संपर्क में आती है, जिससे इसके अधिक पिघलने, आगे की ऊंचाई में कमी आने और तदनुसार तीव्र गति से बर्फ की अधिक मात्रा में हानि होती है। एक महत्वपूर्ण सीमा से अधिक, इस प्रक्रिया को उल्टा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि कम ऊंचाई के साथ, बर्फ की चादर को अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त करने के लिए अधिक ठंडे वातावरण की आवश्यकता होती है।

मध्य-पश्चिमी ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर से पिघले और फिर से बनने वाली बर्फ की चादर की ऊंचाई के आंकड़ों में बोअर्स और रिपडल ने जो अस्थिरता पाई है, वह इस बात की ओर इशारा करता है कि बर्फ के पिछले 100 वर्षों में पिघलने के कारण यह महत्वपूर्ण सीमा से बहुत कम स्तर पर पहुंच गई है।   

बर्फ की सतह के पिघलने में वृद्धि की भरपाई संभवतः आंशिक रूप से बर्फबारी में वृद्धि से हो सकती है, क्योंकि बर्फ की चादर की ऊंचाई बदलने के कारण वर्षा का पैटर्न भी बदल जाएगा।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा हमें ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के अन्य हिस्सों की भी अधिक बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता है। हमें इसे तत्काल बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है कि बर्फ की चादर के भविष्य में विकास को बेहतर करने के लिए विभिन्न सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रियाएं एक-दूसरे को कैसे संतुलित कर सकती हैं। अध्ययनकर्ता निकलास बोअर्स, जो मार्टिन रिपडल ने आशंका जताई कि निकट भविष्य में ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर तेजी से पिघलेगी।