आर्थिक और जलवायु असमानता के संबंध पर क्या कहेंगे?
लुकास चांसेल: देशों के बीच आर्थिक असमानता औपनिवेशिक काल से गहराई से जुड़ी है। औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा संसाधनों का दोहन संपत्ति निर्माण से जुड़ा हुआ है और इसी के साथ असमानता की शुरुआत हुई। यही वह समय है जब जलवायु असमानता की भी शुरुआत हुई। संपत्ति और जलवायु असमानता दोनों आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं।
इसने पश्चिमी देशों द्वारा “क्लाइमेट स्पेस” कब्जे को जन्म दिया। जब आप उद्योग चलाने के लिए कोयला जला रहे हैं तो आप कार्बन स्पेस का भी उपयोग कर रहे हैं। यह उत्सर्जनों के लिए ऐतिहासिक जिम्मेदारी का प्रश्न है।
यह असमानता 19वीं शताब्दी की शुरुआत से संपत्ति असमानता के व्यापक पैटर्न से जुड़ी है। औद्योगिक क्रांति ने इसे और गहरा किया जो औपनिवेशिक दोहन के साथ-साथ पर्यावरणीय दोहन भी थी।
कॉर्नेलिया मोरेन: ऐतिहासिक आंकड़ों में देशों के बीच और देशों के भीतर दोनों ही स्तरों पर असमानता बहुत अधिक रही है। कार्बन-न्यूट्रल भविष्य और आर्थिक समानता की दिशा में संक्रमण बहुत कठिन होगा, भले ही इसकी आवश्यकता हो।
जलवायु पर चर्चा आम तौर पर औद्योगिक देशों बनाम विकासशील देशों पर केंद्रित रहती है। आपने देशों के बजाय अमीर व्यक्तियों पर ध्यान दिया है। क्या यह इस ओर संकेत करता है कि आर्थिक असमानता इतनी अधिक है कि कुछ अमीर व्यक्ति ही सब कुछ यहां तक कि कार्बन बजट तय करते हैं?
लुकास चांसेल: सबसे पहले यह राज्य और व्यक्तिगत दोनों का गठजोड़ है । निर्वाचित सरकारें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मतदाता बहुत कुछ कर सकते हैं, लेकिन अमीर लोगों की जिम्मेदारी और प्रभाव दोनों असमान रूप से अधिक हैं। किसी देश के भीतर भी अमीर लोगों का उत्सर्जन में योगदान बहुत अधिक है। रणनीति यह है कि केवल देश-स्तर पर न देखें, बल्कि देश के भीतर उन चंद लोगों को भी देखें जो अत्यंत संपन्न हैं और बड़े उत्सर्जक हैं। इस समूह में केवल संपत्ति ही केंद्रित नहीं है, बल्कि ऐसे निवेश भी हैं जिनसे बहुत अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है।
इसे भारत के उदाहरण से ही समझिए। यहां कुल प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बहुत कम है, लेकिन इसके भीतर शीर्ष औद्योगिक घरानों का हिस्सा सबसे अधिक है। यह उनकी कंपनियों या निवेशों के कारण है। यह केवल उनके निजी जेट या जीवनशैली से जुड़े उत्सर्जन नहीं हैं, बल्कि उन “सौदों” से जुड़े हैं जो वे उन्हीं जेटों में बैठकर करते हैं। यह उनकी विशाल पूंजी है जो जलवायु परिवर्तन का असली कारण बनती है।
क्या आप कहना चाहते हैं कि अमीर व्यक्तियों के पास सरकारों से अधिक पूंजी है?
लुकास चांसेल: असल में निजी पूंजी अब सार्वजनिक पूंजी से अधिक है। उदाहरण के लिए अमेरिका सरकार कुछ मानकों पर बिल गेट्स या एलन मस्क से “गरीब” है। सरकार के पास संपत्ति तो है, लेकिन उसके ऊपर भारी ऋण भी है। जब आप इसे घटा देते हैं, तो अमेरिकी सरकार की निवल पूंजी (नेट वर्थ) शून्य या नकारात्मक हो जाती है। दूसरी ओर, एलन मस्क या बिल गेट्स की निवल संपत्ति सकारात्मक है।
इस प्रकार अमीर व्यक्तियों के पास इतनी अधिक संपत्ति है कि वे निवेशों के फैसले ले सकते हैं। यह उन्हें राजनीतिक शक्ति भी प्रदान करती है। देशों के पास अब भी शक्ति है, लेकिन इन दोनों के बीच का संतुलन अत्यंत अमीर लोगों के पक्ष में झुक गया है।
आप कहते हैं कि “अच्छी तरह डिजाइन की गई जलवायु नीतियां असमानता को कम कर सकती हैं।” इसे विस्तार से बताएं।
कॉर्नेलिया मोरेन: कार्बन-न्यूट्रल भविष्य की ओर ट्रांजिशन में नए पूंजी निर्माण की आवश्यकता होगी और वह बहुत बड़ा होगा। ऐसे में प्रश्न यह है कि इसका स्वामित्व किसके पास होगा? इसे कौन वित्त पोषित करेगा? और इससे लाभ किसे मिलेगा?
हमारा तर्क है कि इस बदलाव को न्यायसंगत बनाने के लिए सार्वजनिक निवेश और स्वामित्व आवश्यक है। वर्तमान में निजी और सार्वजनिक संपत्ति के वितरण में अत्यधिक असमानता है।
लुकास चांसेल: ऊर्जा प्रणाली का पुनर्गठन एक सदी में एक बार मिलने वाला अवसर है, जिससे शक्ति का संतुलन बदला जा सकता है। यह अवसर आने वाले कई सौ वर्षों तक नहीं मिलेगा। इन परिसंपत्तियों की आयु बहुत लंबी होती है। जो इन्हें बनाता है और इन पर निवेश करता है, वह आगे चलकर और अधिक आर्थिक मूल्य अर्जित करता है।
हां, अरबपति इन निवेशों को कर सकते हैं, लेकिन सरकारें भी कर सकती हैं या स्थानीय सरकारों जैसे अन्य साझेदारों के साथ मिलकर भी कर सकती हैं।
पिछली सदी में जब देशों ने ऊर्जा प्रणालियों का राष्ट्रीयकरण किया था, तब उद्देश्य था सार्वजनिक स्वामित्व सुनिश्चित करना। आज हमारे सामने वही स्थिति है, जहां हमें यह तय करना है कि स्वामित्व केवल निजी न होकर मिश्रित होना चाहिए, वह भी कई स्तरों पर जांच और संतुलन के साथ। यदि हम संपत्ति और शक्ति के अत्यधिक केंद्रीकरण को स्वीकार करते हैं तो यह आवश्यक है।
आप अमीरों के निवेश में निहित कार्बन सामग्री पर कर लगाने की बात कर रहे हैं। इसे आप समानता का उपाय क्यों मानते हैं?
लुकास चांसेल: आम तौर पर जब आप जीवाश्म ईंधन पर कर लगाते हैं, तो उसका 100 प्रतिशत बोझ उपभोक्ताओं पर डाला जाता है। और उपभोक्ताओं के पास कोई विकल्प नहीं होता। उन्हें यह झेलना ही पड़ता है। दूसरी ओर, निवेशकों के पास कई विकल्प होते हैं। वे चाहें तो स्वच्छ प्रौद्योगिकी में निवेश कर सकते हैं। लेकिन वर्तमान प्रणाली उन्हें कोई सीधा संकेत नहीं देती कि उनके निवेशों से कितना कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। इस तरह अमीर लोगों पर वास्तव में कार्बन उत्सर्जन का कर नहीं लगता, जबकि उपभोक्ताओं पर पड़ता है। इसलिए हमारा प्रस्ताव है कि उनके निवेशों के “कार्बन कंटेंन” पर कर लगाया जाए ताकि उत्पादकों तक यह संकेत पहुंचे। इसके अलावा, ऐसी संपत्ति-आधारित कर प्रणाली जो कार्बन सामग्री को ध्यान में रखे, वह स्वच्छ भविष्य में निवेश के लिए अधिक राजस्व भी उत्पन्न कर सकती है।