हाल ही में अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रवाल भित्तियों पर किए एक शोध से पता चला है कि वैश्विक उत्सर्जन में यदि तीव्र वृद्धि जारी रहती है तो 2050 तक करीब 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी| यह अनुमान ग्लोबल वार्मिंग के आरसीपी 8.5 परिदृश्य पर आधारित है|
हालांकि रिपोर्ट के अनुसार उम्मीदें अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं, हमारे पास अभी भी इन प्रवाल भित्तियों को बचाने का समय है, पर वो समय बहुत तेजी से हमारे हाथों से निकला जा रहा है| यदि जलवायु परिदृश्य आरसीपी 2.6 के तहत देखें तो सदी के अंत तक 63 फीसदी प्रवाल भित्तियों में वृद्धि जारी रहेगी, लेकिन यह तभी मुमकिन है जब उत्सर्जन में कटौती और वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को कम किया जाए|
समुद्रों में बढ़ता तापमान और अम्लीकरण पहले ही प्रवाल भित्तियों के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं| हालांकि जलवायु के अलग-अलग परिदृश्यों में इन प्रवाल भित्तियों के विकास पर कितना असर पड़ेगा, इस बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है| प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंसेज जर्नल (पनास) में छपे शोध में इसे समझने का प्रयास किया गया है|
इस शोध में दुनिया के 233 अलग-अलग स्थानों पर पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियों की 183 प्रजातियों का अध्ययन किया गया है| जिनमें 49 फीसदी प्रवाल भित्तियां अटलांटिक महासागर, 39 फीसदी हिन्द महासागर और 11 फीसदी प्रशांत महासागर की थी| इसके साथ ही 2050 और सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन के अलग-अलग परिदृश्यों में समुद्रों के बढ़ते तापमान और अम्लीकरण के चलते प्रवाल भित्तियों पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण किया गया है| इसके निष्कर्ष से पता चला है कि यदि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम भी हो तो इसके बावजूद प्रवाल भित्तियों की वृद्धि दर पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगें|
दुनिया में पहले ही सामने आ चुकी हैं कोरल ब्लीचिंग की घटनाएं
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मॉर्गन प्रचेत ने बताया कि निष्कर्ष बताते हैं कि यदि वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं की जाती तब तक इन प्रवाल भित्तियों का विकास नहीं होगा| उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन पहले ही प्रवाल भित्तियों के लिए खतरा बन चुका है, समुद्री हीटवेव के परिणाम पहले ही बड़े स्तर पर कोरल ब्लीचिंग के रूप में सामने आने लगे हैं| समय के साथ यह घटनाएं गंभीर और तीव्र होती जा रही हैं और बड़े पैमाने पर प्रवाल भित्तियों के मरने का कारण बन रही हैं|
कोरल भित्तियों का कंकाल कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है पर समुद्रों में बढ़ता अम्लीकरण उनके कंकाल को विकसित करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है जिसका असर उनके विकास पर पड़ रहा है| इसके कारण समुद्र में हो रही वृद्धि के साथ इन प्रवाल भित्तियों के बढ़ने की क्षमता भी खतरे में पड़ गई है| शोध के अनुसार यदि मध्यम और उच्च प्रभाव वाले परिदृश्यों को देखें तो उनके अनुसार सदी के अंत तक कोई भी प्रवाल भित्ति समुद्र के बढ़ते जल स्तर के अनुरूप वृद्धि नहीं कर पाएगी|
जलवायु परिवर्तन, प्रवाल भित्तियों की विकास दर को कैसे प्रभावित कर रहा है, इसे समझना थोड़ा जटिल है क्योंकिं यह किसी कोरल पर जलवायु के सीधे तौर पर पड़ रहे प्रभाव से अलग है| प्रवाल भित्तियां, कैल्शियम कार्बोनेट के परत दर परत जमा होने से विकसित होती हैं| इस कैल्शियम कार्बोनेट को या तो कोरल या फिर कोरलाइन शैवाल द्वारा बनाया जाता है|
इस शोध से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता रयान लोवे ने बताया कि वर्तमान प्रवाल भित्तियों की संरचना जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला के बीच संतुलन को दर्शाती हैं| जिसमें अकेले प्रवाल ही शामिल नहीं हैं| इसमें वो शैवाल भी शामिल हैं जो भित्तियों को एक दूसरे से जोड़ते हैं|
उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन इन भित्तियों को बनाने वाले किसी एक जीव को कैसे प्रभावित करेगा यह काफी हद तक स्पष्ट है पर इस शोध में मौजूदा प्रवाल भित्तियों को बनाए रखने वाले जीवों के विभिन्न समुदाय आपस में किस तरह जटिल प्रतिक्रिया करेंगें और उसका भविष्य में इन रीफ संरचनाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा उसे स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है|
रिपोर्ट के अनुसार प्रवाल भित्तियों पर पड़ने वाला यह असर सारी दुनिया में एक जैसा नहीं है| एक तरफ जहां अधिकांश परिदृश्यों में प्रशांत महासागर में पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियों का भविष्य अन्य की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर है| वहीं आरसीपी 2.6 परिदृश्य के तहत अटलांटिक का भविष्य सबसे ज्यादा खराब है|
प्रवाल भित्तियां न केवल समुद्र के परिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है यह हमारे लिए भी बहुत मायने रखती हैं| यह करीब 830,000 से अधिक प्रजातियों का घर हैं| यह तटों पर रहने वाले समुदायों को भोजन और जीविका प्रदान करती हैं| इनसे मतस्य पालन और पर्यटन को मदद मिलती है| यह समुद्री तूफानों से भी तटों की रक्षा करती हैं, साथ ही कई डूबते द्वीपों के लिए जमीन प्रदान करती हैं| ऐसे में इन प्रवाल भित्तियों को बचाने के लिए जरुरी है कि जितना जल्दी हो सके वैश्विक उत्सर्जन में हो रही वृद्धि को कम किया जाए|