जलवायु

जलवायु परिवर्तन, संघर्ष और हिंसा के चलते 8.4 करोड़ लोग हुए विस्थापित

साल के शुरुआती छह महीनों के दौरान दुनियाभर में भड़की संघर्ष और हिंसा की आग ने 5.1 करोड़ लोगों को अपने ही देश में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया था

Lalit Maurya

2021 के शुरुवाती छह महीनों में जनवरी से जून के बीच दुनिया भर में करीब 8.4 करोड़ लोगों को जलवायु परिवर्तन, संघर्ष और हिंसा के चलते विस्थापन की पीड़ा झेलनी पड़ी थी। यह जानकारी यूएन रिफ्यूजी एजेंसी यूएनएचसीआर द्वारा आज विस्थापितों पर जारी मिड-ईयर ट्रेंडस रिपोर्ट में सामने आई है। 

रिपोर्ट के मुताबिक विस्थापितों की इस संख्या में दिसंबर के बाद से करीब 8.24 करोड़ की वृद्धि हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह आंतरिक विस्थापन था। दुनिया भर के कई देशों, विशेष तौर पर अफ्रीका में जिस तरह से संघर्ष चल रहा है उसकी वजह से हाल ही में बड़ी संख्या में लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा था।   

यही नहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इस साल के शुरुआती छह महीनों के दौरान दुनियाभर में भड़की संघर्ष और हिंसा की आग ने 5.1 करोड़ लोगों को अपने ही देश में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया था, जिनमें से अधिकांश नए मामले अफ्रीका में सामने आए थे। 

अकेले डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगों में 13 लाख और इथियोपिया में 12 लाख लोग विस्थापित हुए थे। वहीं म्यांमार और अफगानिस्तान में भी हिंसा के चलते बड़ी संख्या में लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। यही नहीं 2021 की पहली छमाही के दौरान शरणार्थियों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई थी, जो 2.1 करोड़ पर पहुंच गई थी।

केवल 126,700 शरणार्थियों की ही हो पाई थी घर वापसी

यूएनएचसीआर द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इनमें से अधिकांश नए शरणार्थी सिर्फ पांच देशों से आए थे जिनमें सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक से 71,800, दक्षिण सूडान से 61,700, सीरिया से 38,800, अफगानिस्तान से 25,200 और नाइजीरिया से 20,300 लोगों को अपना घर छोड़ शरणार्थी बनना पड़ा था। हालांकि इस अवधि के दौरान आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों में से 10 लाख से भी कम और 126,700 शरणार्थी अपने देश वापस लौट पाए थे। 

इस दौरान सीरिया में करीब 1,44,000 आंतरिक रूप से नए विस्थापितों की सूचना सामने आई थी। वहीं यमन में 41,000 नए विस्थापित सामने आए थे, जहां अकेले अप्रैल में हुई भारी बारिश और बाढ़ के चलते देश में करीब 7,000 लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से करीब आंतरिक रूप से विस्थापित हुए 75 फीसदी लोग बदतर हालत में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। 

यही नहीं कोविड-19 के चलते कई देशों ने सीमा पर जो प्रतिबन्ध लगाए हैं उनके चलते कई स्थानों पर इन शरणार्थियों की पहुंच को सीमित कर दिया था। यूएनएचसीआर के प्रमुख फिलिपो ग्रांडी ने इस बारे बताया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हिंसा, उत्पीड़न और मानवाधिकारों के हो रहे उल्लंघन को रोकने में विफल रहा है जिस वजह से लोगों को अभी भी अपने घरों को छोड़ विस्थापित होना पड़ रहा है। 

उनके अनुसार हिंसा, संघर्ष, गरीबी, खाद्य असुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी के सम्मिलित प्रभाव ने उन विस्थापितों की मानवीय दुर्दशा को और बढ़ा दिया है, जिन्होंने विकासशील देशों में शरण ली थी। वहीं जलवायु परिवर्तन कई क्षेत्रों में पहले से मौजूद समस्याओं को और बढ़ा रहा है, जिससे वहां शरणार्थी के रुप में रहने वालों की समस्याएं और बढ़ गई हैं। 

ऐसे में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से शान्ति कायम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को दोगुना करने की बात कही है। साथ ही विस्थापित समुदायों और उनकी मेजबानी करने वालों के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध करने की भी अपील की है। उनके अनुसार यदि कम संसाधनों वाले देश और समुदाय यदि आगे बढ़कर जबरन विस्थापित हुए लोगों की सुरक्षा और देखभाल का बोझ उठा रहे हैं तो यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेवारी है कि उनकी पर्याप्त मदद की जाए।