जलवायु

ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भयभीत या चिंतित हैं 82 फीसदी भारतीय: रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2021 से जनवरी 2022 तक 4,619 भारतीयों का ग्लोबल वार्मिंग को लेकर टेलीफोन के माध्यम से सर्वेक्षण किया गया

Dayanidhi

क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और सीवोटर इंटरनेशनल पर येल प्रोग्राम की 'ग्लोबल वार्मिंग फॉर इंडिया, 2022' नामक रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग को लेकर 82 प्रतिशत भारतीय भयभीत या चिंतित हैं तथा ये लोग पेरिस समझौते में भारत की भागीदारी के पक्ष में हैं। जबकि शेष 18 प्रतिशत इन मुद्दों के बारे में या तो सजग या इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं हैं।

रिपोर्ट में उत्तरदाताओं में चार चीजों की पहचान की गई है, जिसमें - अलार्म्ड या भयभीत, कंसर्नड या चिंतित, कॉशस या सतर्क और डिसिन्गैज्ड या इस मुद्दे से कोई लेना देना नहीं है। इनमें से, जिन लोगों ने ग्लोबल वार्मिंग के बारे में "अलार्म्ड या भयभीत" होने का दावा किया, वे इसे हल करने के लिए राजनीतिक और राष्ट्रीय कार्रवाई के सबसे अधिक समर्थक थे और व्यक्तिगत तौर पर कार्रवाई करने की भी बात करते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2021 से जनवरी 2022 तक 4,619 भारतीयों का एक टेलीफोन के माध्यम से सर्वेक्षण किया गया। प्रश्न भारतीय लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता, विश्वास, नीति समर्थन और व्यवहार के साथ-साथ स्थानीय मौसम और जलवायु पैटर्न के बारे में धारणाओं पर आधारित था। इसमें  चरम मौसम की घटनाओं के प्रति कमजोरी और खतरों को भी शामिल किया गया था।

लगभग सभी भयभीत 94 प्रतिशत कहते हैं कि वे ग्लोबल वार्मिंग के बारे में चिंतित हैं, जिनमें से 79 प्रतिशत 'बहुत चिंतित' पाए गए। बड़ी संख्या में संबंधित 86 प्रतिशत भी कहते हैं कि वे ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंतित हैं  रिपोर्ट में कहा गया कि 17 प्रतिशत 'बहुत ज्यादा चिंतित' थे।

इसके विपरीत, सतर्क लोगों में से लगभग 41 प्रतिशत ने कहा कि वे ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंतित हैं, जबकि लगभग आधे 52 प्रतिशत ने चिंतित नहीं होने की बात कही। रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 20 प्रतिशत ऐसे लोग जिन्होंने कहा था कि इस मुद्दे से लेना देना नहीं है उनका भी मानना है कि वे ग्लोबल वार्मिंग के बारे में चिंता करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश उत्तरदाताओं ने ग्लोबल वार्मिंग के बारे में भारतीयों को पढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नौकरियों के लिए लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने की बात कही।

कम से कम 91 प्रतिशत "भयभीत" उत्तरदाताओं, 88 प्रतिशत "चिंतित", और 74 प्रतिशत "सतर्क" उत्तरदाताओं ने ग्लोबल वार्मिंग के बारे में भारतीयों को पढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम को शामिल करने की नीति बनाने की बात पर जोर दिया। कुल 90 प्रतिशत, 88 प्रतिशत और 75 प्रतिशत संबंधित भागों ने नवीकरणीय ऊर्जा नौकरियों के लिए लोगों को प्रशिक्षित करने का समर्थन किया।

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के प्रमुख जगदीश ठाकर ने कहा, सभी चार क्षेत्रों में बहुमत ने वर्षा सहित स्थानीय मौसम पैटर्न में बदलाव देखने की बात कही। रिपोर्ट यह भी बताती है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक असमानताएं अलग-अलग भारतीय आबादी के बीच जलवायु के खतरों में बढ़ोतरी करती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जनसांख्यिकी, और सामाजिक और घरेलू विशेषताएं ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिसमें कहा गया है कि "भयभीत" और "चिंतित" वर्ग अत्यधिक शिक्षित और बाकी श्रेणियों की तुलना में युवा हैं।

रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्रों में रहने वाले भयभीत और चिंतित लोगों के अधिक होने की संभावना है।  अन्य निष्कर्षों में, 74 प्रतिशत भयभीत, 64 प्रतिशत चिंतित, और 50 प्रतिशत सतर्क महसूस करते हैं कि भारत सरकार को ग्लोबल वार्मिंग को हल करने के लिए और अधिक काम करना चाहिए।

इसी तरह, 82 प्रतिशत भयभीत, 77 प्रतिशत चिंतित और 66 प्रतिशत सतर्क ने पेरिस समझौते में भारत की भागीदारी होने की बात कही।

दिसंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अपनाया गया, पेरिस समझौता 4 नवंबर 2016 को लागू हुआ। इसका महत्व यह है कि पहली बार एक अहम समझौता जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए सभी देशों को एक साथ लाता है।

रिपोर्ट लक्षित संचार रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट बताती है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक असमानताएं  अलग-अलग तरह की भारतीय आबादी के बीच जलवायु के खतरों को बढ़ाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, इन निष्कर्षों से नीति निर्माताओं और व्यवसायों को ग्लोबल वार्मिंग को हल करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने और समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुंचाने वाले स्थायी समाधान विकसित करने की दिशा में काम करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी।