जलवायु

भीषण गर्मी और लू के साए में जीने को मजबूर हैं भारत सहित दक्षिण एशिया में तीन-चौथाई बच्चे

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि भारत सहित अन्य दक्षिण एशियाई देशों में रहने वाले 76 फीसदी बच्चे लू और भीषण गर्मी के साए में जीने को मजबूर हैं। 18 साल से कम उम्र के इन बच्चों की संख्या 46 करोड़ से ज्यादा है। ये वो बच्चे हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया के उन क्षेत्रों में रह रहे हैं, जहां साल में 83 या उससे ज्यादा दिनों तक तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहता है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा जारी इस नए विश्लेषण के मुताबिक यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो मौजूदा समय में हर तीसरा बच्चा बढ़ते तापमान और गर्मी से प्रभावित है। देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों के चलते जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसको देखते हुए इन बच्चों के भविष्य को लेकर चिंताएं और बढ़ गई हैं।

अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते बच्चों को साल में बार-बार लू का सामना करना पड़ सकता है। जानकारी मिली है कि दक्षिण एशिया में हर साल 28 फीसदी बच्चे औसतन चार से पांच लू की घटनाओं का सामना करते हैं।

यूनिसेफ ने एक अन्य रिपोर्ट “बीट द हीट: प्रोटेक्टिंग चिल्ड्रन फ्रॉम हीटवेव्स इन यूरोप एंड सेंट्रल एशिया” में बढ़ती गर्मी और लू के खतरों को उजागर करते हुए लिखा है कि यूरोप और मध्य एशिया में हर दूसरे बच्चे को लू से खतरा है। मतलब की इन देशों में करीब 9.2 करोड़ बच्चों को बढ़ती गर्मी और लू का सामना करने को मजबूर हैं। वहीं अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते अगले 27 वर्षों में दुनिया का करीब-करीब हर बच्चा लू की चपेट में होगा।

बढ़ते तापमान के साथ और बिगड़ेगी स्थिति

देखा जाए तो बच्चे लू के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके शरीर का तापमान वयस्कों की तुलना में काफी तेजी से बढ़ता है, जिससे उन्हें हीटस्ट्रोक के साथ-साथ गंभीर बीमारियों का खतरा भी बना रहता है। इतना ही नहीं लू बच्चों में ध्यान केंद्रित करने और सीखने की क्षमता में बाधा डालकर उनकी शिक्षा को भी प्रभावित करती है।

यूनिसेफ ने अपनी एक अन्य रिपोर्ट "द कोल्डेस्ट ईयर ऑफ द रेस्ट ऑफ देयर लाइव्स" नामक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर करीब 55.9 करोड़ बच्चे बार-बार आने वाली लू का सामना करने को मजबूर हैं। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया के करीब-करीब हर बच्चे (202 करोड़ बच्चों) पर लू का खतरा मंडराने लगेगा।

गौरतलब है कि जुलाई 2023 वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे गर्म महीना था, जिसकी वजह से दुनिया के कई क्षेत्रों में भीषण गर्मी के साथ लू का कहर देखा गया। बता दें कि जुलाई के दौरान दुनिया के करीब-करीब हर महाद्वीप में बढ़ते तापमान के नए रिकॉर्ड दर्ज किए गए थे। यहां तक की कई देशों में जहां इस समय सर्दियां का मौसम था वहां भी वो सामान्य से कहीं ज्यादा गर्म थी।

क्लाइमेट सेंट्रल ने अपनी नई रिपोर्ट में इस बारे में जानकारी दी है कि जुलाई के दौरान दुनिया की करीब 81 फीसदी आबादी यानी 650 करोड़ लोगों ने बढ़ते तापमान की वजह से गर्मी की तपिश महसूस की थी। वहीं इस दौरान करीब 200 करोड़ लोग पूरे महीने जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बढ़ती गर्मी का सामना करने को मजबूर थे।

इस बारे में दक्षिण एशिया के लिए यूनिसेफ के क्षेत्रीय निदेशक संजय विजेसेकेरा का कहना है कि, "वैश्विक तापमान उबाल पर है, आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि बढ़ते तापमान और लू के चलते दक्षिण एशिया में लाखों बच्चों के जीवन और भविष्य पर खतरा बढ़ गया है।"

उनका यह भी कहना है कि इस क्षेत्र में देश, अभी दुनिया में सबसे गर्म नहीं हैं, लेकिन यहां गर्मी लाखों बच्चों के जीवन के लिए खतरा पैदा कर रही है। उनका आगे कहना है कि, "हम विशेष रूप से शिशुओं, छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कुपोषण से जूझ रहे बच्चों को लेकर चिंतित हैं क्योंकि वे लू और गर्मी के अन्य गंभीर प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।"

यूनिसेफ द्वारा 2021 में बच्चों के लिए जारी जलवायु जोखिम सूचकांक (सीसीआरआई) भी इस बात की पुष्टि करता है, जिसके मुताबिक भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान में बच्चों को जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के चलते 'अत्यंत उच्च जोखिम' का सामना करना पड़ता है।

उदाहरण के लिए पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत के कुछ क्षेत्रों, जैसे जैकोबाबाद में 2022 में विकट गर्मी पड़ी थी। उस दौरान इस शहर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था। जो इसे दुनिया के सबसे गर्म शहरों में  शुमार करता है। इसकी वजह से करीब 18 लाख लोगों को स्वास्थ्य सम्बन्धी गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ा था।

 इसी तरह अगस्त 2022 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद भीषण गर्मी पड़ी थी, जिससे दक्षिणी सिंध का अधिकांश भाग डूब गया था। वहीं जून 2023 में, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 800,000 से अधिक बच्चे गंभीर गर्मी के तनाव से जूझ रहे थे।

बारिश में भी गर्मी से सुरक्षित नहीं बच्चे

दक्षिण एशिया में यह बारिश का मौसम है, लेकिन इस मौसम में भी गर्मी से बच्चों की हालत खराब हो सकती है। बच्चे तापमान में आते बदलावों के प्रति तेजी से अनुकूलन नहीं कर पाते, इसलिए वे अपने शरीर से अतिरिक्त गर्मी को बाहर निकालने में सक्षम नहीं होते हैं। इसकी वजह से उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।

इससे छोटे बच्चों में शरीर के तापमान का बढ़ना, दिल की धड़कन का तेज होना, ऐंठन, सिरदर्द, पानी की कमी, बेहोशी जैसी समस्याओं के साथ उनके अंगों पर भी गंभीर असर पड़ता है। इसकी वजह से न केवल शिशुओं में मानसिक विकास पर असर पड़ता है। साथ ही हृदय रोग और तंत्रिका सम्बन्धी विकार जैसे लक्षण सामने आ सकते हैं।

यह गर्मी गर्भवती महिलाओं को भी बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इससे उनमें बढ़ता ब्लड प्रेशर, प्रारम्भिक संकुचन, दौरा, समय से पहले जन्म और स्टिलबर्थ जैसे गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। ऐसे में बर्फ से सिंकाई, पंखा करने या पानी के छिड़काव से छोटे बच्चों में बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

यूनिसेफ ने अपने इस विश्लेषण में बढ़ती गर्मी और लू से बचाव के लिए हीटस्ट्रोक और बच्चों के स्वास्थ्य पर इसके पड़ने वाले असर को लेकर जागरूक होने की बात कही है। साथ ही इससे जुड़ी बीमारियों को लेकर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में जागरूकता पर जोर दिया गया है। यूनिसेफ ने ऐसी परिस्थितियों में तुरंत कार्रवाई करते हुए प्राथमिक इलाज देने की भी सलाह दी है। साथ ही यह भी कहा है कि जरूरत पड़ने पर रोगी को तुरंत स्वास्थ्य केंद्र या डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।