जलवायु

68 फीसदी पफिन पक्षियों के घरोंदों पर मंडराता जलवायु परिवर्तन का खतरा

अनुमान है कि सिर्फ पफिन ही नहीं जलवायु में आते बदलावों के चलते सदी के अंत तक 80 फीसदी रेजरबिल्स और 87 फीसदी आर्कटिक टर्न पक्षियों के ब्रीडिंग क्षेत्र भी इससे प्रभावित होंगे

Lalit Maurya

जलवायु में जिस तरह बदलाव आ रहे हैं उसके चलते पश्चिमी यूरोप में पफिन पक्षियों के 68 फीसदी घोसलें खतरे में हैं। काले सफेद रंग का यह खूबसूरत समुद्री पक्षी ज्यादातर अटलांटिक महासागर के तटों पर पाया जाता है। यह पक्षी बड़ी आसानी से समद्र में तैर सकता है और पानी में पाई जाने वाली मछलियों को अपना आहार बनाता है।

इतना ही नहीं, द जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट से पता चला है केवल यही पक्षी नहीं बल्कि यूरोप में कई अन्य समुद्री पक्षियों पर भी सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है।

शोधकर्ताओं ने इसके लिए जलवायु परिवर्तन के कारण इन पक्षियों के आहार उपलब्धता में आती कमी और लम्बे समय तक चलने वाले तूफानी मौसम को जिम्मेवार माना है। साथ ही अनुमान है कि 80 फीसदी रेजरबिल्स और 87 फीसदी आर्कटिक टर्न पक्षियों के ब्रीडिंग क्षेत्र भी इससे प्रभावित होंगें।

इन पक्षियों के बारे में रिपोर्ट और जेडएसएल से जुड़े शोधकर्ता हेनरी हक्किनन का कहना है कि इस बात की कल्पना करना भी मुश्किल है कि अटलांटिक पफिन जोकि यूरोप के सबसे कीमती समुद्री पक्षियों में से एक हैं वो सदी के अंत तक हमारे तटों से गायब हो जाएंगें। साथ ही समुद्री पक्षियों की अन्य महत्वपूर्ण प्रजातियां भी इन बदलावों से प्रभावित होंगी।

उनके अनुसार समुद्री पक्षी दुनिया के उन पक्षी समूहों में शामिल हैं जिनकी आबादी में मानव गतिविधियों, और जलवायु परिवर्तन के कारण बड़ी तेजी से गिरावट आ रही है। इसमें भोजन की उपलब्ध्ता से लेकर मौसम की चरम घटनाएं और प्रजनन क्षेत्रों को होता नुकसान शामिल है।

उन्होंने आगे बताया कि इन पक्षियों को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि वो जमीन पर प्रजनन करते हैं लेकिन वो जीवित रखने के लिए समुद्र पर निर्भर हैं। देखा जाए तो यह समुद्र और जमीन दोनों इकोसिस्टम्स के लिए जरूरी हैं। ऐसे में इन प्रजातियों को बचाने के लिए किए प्रयास कई अन्य प्रजातियों के लिए भी फायदेमंद होंगें।

ईडर डक और आइवरी गल जैसे पक्षियों के बारे में अभी भी है जानकारियों का आभाव

शोधकर्ताओं ने इन पक्षियों को बचाने के लिए इन्हें नए उपयुक्त  प्रजनन क्षेत्रों में बसाने के प्रयासों की बात की है जो इनके लिए फायदेमंद रह सकती है। उदाहरण के लिए शोधकर्ताओं ने सीगल पक्षियों पर इसे आजमा कर देखा है। चूंकि जलवायु परिवर्तन से गर्मी की लहरों और मछली में गिरावट का खतरा है ऐसे में कमजोर पक्षियों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना महत्वपूर्ण हो सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक समुद्री पक्षी, प्रवासी होते हैं, जो देश-विदेश, महासागरों में बड़ी दूर तक लम्बी उड़ान भरते हैं और ऐसे में इन पक्षियों के संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने के लिए हमें यह समझने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन उनके पर्यावरण को उनकी संपूर्ण सीमा में कैसे बदल रहा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इन जीवों को जलवायु संकट से बचाने के लिए सशक्त संरक्षण उपायों को विकसित करना जरुरी है, लेकिन इसके लिए किस प्रजाति पर कौन से खतरे मंडरा रहे हैं इस बारे में विशिष्ट समझ विकसित करने की जरूरत है।

पफिन की तरह ही कुछ पक्षियों के लिए इस बारे में हमारे पास पुख्ता जानकारी मौजूद है कि जलवायु परिवर्तन उनकों कैसे प्रभावित कर रहा है, जबकि कई प्रजातियों जैसे ईडर डक और आइवरी गल के बारे में अभी भी जानकारियों का आभाव है। ऐसे में इन पक्षियों को जीवित रहने में मदद करने के लिए ज्ञान के इस अंतराल को तुरतं भरने की आवश्यकता है।

ऐसे में जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अटलांटिक तट के आसपास प्रजनन करने वाली 47 प्रजातियों को बचाने के लिए अपनी तरह की पहली संरक्षण मार्गदर्शिका प्रकाशित की है, जिसकी मदद से इन खूबसूरत पक्षियों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाया जा सके। इस रिपोर्ट में हर प्रजाति की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक को कैसे बचाया जाए इस बारे में आवश्यक कार्रवाइयों का जिक्र किया है।

शोधकर्ताओं का भी कहना है कि यदि इन खूबसूरत प्रजातियों को बचाना है तो जलवायु खतरों से निपटनें के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।