जलवायु

हर साल नदियों, झीलों, तालाबों से हो रहा है 440 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जित

हर साल नदियों, धाराओं, झीलों और तालाब जैसे जल स्रोतों से वैश्विक स्तर पर करीब 440 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जित हो रहा है, जोकि पिछले अनुमान से करीब 13 फीसदी ज्यादा है

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि हर साल नदियों, धाराओं, झीलों और तालाब जैसे जल स्रोतों से वैश्विक स्तर पर करीब 440 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जित हो रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन जल स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन की यह मात्रा पिछले अनुमान से करीब 13 फीसदी ज्यादा है।

इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह से वैश्विक जलवायु के साथ-साथ भूमि उपयोग में बदलाव आ रहे हैं उससे इस उत्सर्जन में होने वाली वृद्धि भविष्य में भी जारी रहने की आशंका है। ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों द्वारा किया यह अध्ययन जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं को यह जानकारी पिछले अनुमानों और उनके आंकड़ों की मॉडलिंग के साथ-साथ ज्यादा जलस्रोतों पर किए अध्ययन और उनसे प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आई है। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उन जलस्रोतों को भी शामिल किया है जो या तो सूख गए हैं या फिर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। साथ ही जो आकार में काफी छोटे हैं।

शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं, उनसे पता चला है कि वैश्विक स्तर पर होने वाले इस उत्सर्जन का करीब 73 फीसदी हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड या मीथेन के रुपए में उत्सर्जित हो रहा है। नदियां, झील, तालाब जैसे अंतर्देशीय जलस्रोत जमीन और समुद्र के बीच एक महत्वपूर्ण हाइड्रोलॉजिकल कनेक्शन का काम करते हैं। लेकिन इसके बावजूद अक्सर वैश्विक कार्बन बजट की गणना करते समय इनकों अनदेखा कर दिया जाता है।

समुद्रों में पहुंचने से पहले ही उत्सर्जित हो जाता है 83 फीसदी कार्बन

वैज्ञानिकों को पता चला है कि जमीन पर पैदा होने वाला कार्बन जो वाटरशेड से इन जलस्रोतों में प्रवेश करता है उसका 83 फीसदी से ज्यादा हिस्सा या तो तलछट में दब जाता है या फिर महासागरों में पहुंचने से पहले ही वायुमंडल में उत्सर्जित हो जाता है।

इस बारे में ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता रचेल पिला ने जानकारी दी है कि भूमि से इन नदियों, धाराओं, झीलों, और तालाबों में प्रवेश करने वाला करीब 70 से 80 फीसदी कार्बन समुद्र में नहीं बनता है वो पहले इन जलस्रोतों में प्रोसेस होता है।

ऐसे में पृथ्वी के सिस्टम से जुड़ी पहेली का यह भी एक जरुरी हिस्सा है, जिस बारे में अब तक बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसकी मदद से हम भविष्य के लिए बेहतर भविष्यवाणी कर सकते हैं।

वहीं हाल ही में जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के करीब आधे के लिए जलीय पारिस्थितिक तंत्र जिम्मेवार है जोकि मानव द्वारा उत्सर्जित मीथेन से कहीं ज्यादा है।

शोध से पता चला है कि मीथेन के वैश्विक उत्सर्जन में जलीय पारिस्थितिक तंत्र का योगदान 41 से 53 फीसदी के बीच हो सकता है। इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि जो जलस्रोत इंसानों द्वारा प्रभावित थे वो प्राकृतिक स्रोतों की तुलना में कहीं ज्यादा मीथेन उत्सर्जित कर रहे थे।