2020 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान के चलते 38.6 लाख भारतीय अपने ही देश में शरणार्थी बन गए थे। यह जानकारी आज इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर द्वारा जारी ग्लोबल रिपोर्ट ऑन इंटरनल डिस्प्लेसमेंट 2021 में सामने आई है। वहीं देश में विस्थापित हुए 3,900 लोगों के लिए हिंसा और संघर्ष की घटनाओं को जिम्मेवार माना गया है।
भारत में विस्थापन कोई नई बात नहीं है, हर साल बाढ़, सूखा, चक्रवात, संघर्ष जैसी घटनाओं के चलते बड़ी मात्रा में लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। हालांकि यदि प्राकृतिक आपदाओं की बात करें तो एशिया में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारत उन कुछ गिने चुने देशों में से एक है जहां बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होते हैं।
हर साल इन आपदओं और उससे उपजे सामाजिक आर्थिक संकट के चलते लाखों लोग विस्थापित होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार अकेले 2020 में भी इन आपदाओं के चलते 38.6 लाख लोग विस्थापित हुए थे, जिनमें सबसे ज्यादा मई 2020 में आए चक्रवाती तूफान अम्फान में करीब 24 लाख लोग विस्थापित हुए थे। इनमें सबसे ज्यादा लोग पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से विस्थापित हुए थे। वहीं इसके दो सप्ताह बाद आए तूफान निसर्ग से महाराष्ट्र और गुजरात में करीब 170,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। इन्हें फिर से बसाने के लिए की तमाम कोशिशों के बावजूद साल के अंत में 929,000 लोग विस्थापितों के रूप में रह रहे थे।
आज जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहा है इन घटनाओं और तूफानों का आना भी आम बात होता जा रहा है। भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर इन चक्रवाती तूफानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है साथ ही यह तूफान कहीं अधिक शक्तिशाली होते जा रहे हैं। यदि हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो 13 से 15 जनवरी 2021 के दौरान तमिलनाडु में आई बाढ़ में करीब 843 लोग विस्थापित हुए थे। वहीं 7 फरवरी को उत्तराखंड में आई बाढ़ में 226 लोग विस्थापित हुए थे। इसी तरह हाल ही में आए चक्रवाती तूफान तौकते में 2 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है।
आपदाओं के चलते दुनियाभर में 3 करोड़ से ज्यादा लोगों छोड़ना पड़ा था अपना घर
ऐसा नहीं है कि प्राकृतिक और जलवायु से जुड़ी आपदाओं का कहर केवल भारत पर ही टूट रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते 2020 के दौरान दुनिया के 104 देशों में करीब 3.07 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे, जबकि संघर्ष और हिंसा के चलते करीब 98 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था।
यदि प्राकृतिक आपदाओं से विस्थापित हुई लोगों की संख्या को देखें तो सबसे ज्यादा लोग पूर्वी एशिया और पैसिफिक से विस्थापित हुए थे जिनकी संख्या करीब 1.2 करोड़ थे। वहीं अफ्रीका में यह आंकड़ा करीब 43 लाख था। दक्षिण एशिया में यह आंकड़ा 92.4 लाख, अमेरिका में 45.3 लाख, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 3.4 लाख और यूरोप एवं मध्य एशिया में 2.34 लाख के करीब था।
यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो इन प्राकृतिक आपदाओं के चलते जहां चीन में 50 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे। वहीं बांग्लादेश में यह आंकड़ा 44.4 लाख, फिलीपीन्स में 44.5 लाख, भारत में 38.6 लाख और इथियोपिया में 6.6 लाख के करीब था।
आज दुनिया जलवायु परिवर्तन और उसके कारण बढ़ती आपदाओं, संघर्ष और तनाव के साथ-साथ कोरोना महामारी को भी झेल रही हैं। यह समय बिखराव का नहीं एकजुटता का है। हमें जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आपदाओं, संघर्ष और महामारियों का सामना मिलकर करना होगा। जिससे इनके खतरे और प्रभाव को कम से कम किया जा सके।
इस पर न केवल हमरा आज बल्कि आने वाला कल भी निर्भर है। हमें इस बात की गंभीरता को समझना होगा कि यह जरुरी नहीं की यदि हम आज बच गए हैं तो कल भी इससे सुरक्षित रहेंगें। यह ऐसे खतरे हैं जिनकों रोका न गया तो इनसे कोई सुरक्षित नहीं है।