वर्ष 2018 में भारत में कुछ प्रमुख नीतियों और कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दो प्रमुख समझौतों पर कार्रवाई शुरू की गई। पेरिस समझौते के नियमों को अपनाया गया था और 1 जनवरी, 2019 से मॉन्ट्रियाल प्रोटोकोल के संशोधन लागू हुए। वर्ष 2019 के लिए एजेंडा स्पष्ट है कि प्रमुख कार्यक्रमों को लागू करने तथा हमारे अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने के लिए हमें संस्थागत और विनियामक रूपरेखा बनानी होगी। वर्ष 2019 के लिए मुख्य पर्यावरणीय प्राथमिकताओं की मेरी सूची इस प्रकार है:
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम: वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अलग-अलग नीतियों वाले दृष्टिकोण को बदलना होगा तथा इसके स्थान पर व्यापक और एकजुट कार्ययोजना लागू करनी होगी। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अंतर्गत 100 से अधिक शहरों का विकास किया गया है तथा स्वच्छ वायु योजनाएं लागू की गई हैं। इसे प्रभावी रूप से लागू करने के लिए संस्थानिक रूप दिया जाए। इसे सख्ती से लागू किए बिना अन्य सभी उपाय निष्फल साबित होंगे।
एक बार इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक: एक ही बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक पर वर्ष 2022 तक प्रतिबंध लगाने के संकल्प को अमल में लाना होगा। वर्तमान में अलग-अलग राज्य एक बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक को भिन्न-भिन्न अर्थ में लेते हैं। िवकल्पों को बढ़ावा देकर इसकी राष्ट्रीय परिभाषा बनाई जानी चाहिए जिसे विस्तृत योजना का समर्थन प्राप्त हो।
स्वच्छ भारत अभियान: सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन सफल कार्यक्रमों को जारी रहना चाहिए। स्वच्छ भारत अभियान (एसबीएम) ऐसा ही कार्यक्रम है। इस वर्ष, एसबीएम को स्थायी बनाने के लिए इसे मजबूत करना होगा।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय और राज्य कार्य योजना: वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय योजना (एनएपीसीसी) और जलवायु परिवर्तन संबंधी राज्य योजना (एसएपीसीसी) को स्वीकार किया गया था। इसके मिले-जुले परिणाम सामने आए हैं। एक ओर जहां राष्ट्रीय सौर मिशन और राष्ट्रीय उन्नत ऊर्जा दक्षता मिशन काफी सफल रहा, वहीं दूसरी ओर अन्य अभियान उतने सफल नहीं रहे जितनी उम्मीद की गई थी।
एसएपीसीसीएस भी कागजों से आगे नहीं बढ़ सका। अब वक्त आ गया है कि एनएपीसीसी और एसएपीसीसी की पुन: समीक्षा की जाए तथा हमारी अर्थव्यवस्था को कार्बनमुक्त करने के लिए व्यापक रूपरेखा का विकास किया जाए तथा इसे जलवायु परिवर्तन के अनुरूप बनाया जाए। हमें केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों का स्पष्ट बंटवारा सुनिश्चित करना है। वर्तमान में, उत्सर्जन रोकने का दायित्व केवल केंद्र सरकार पर है। इस स्थिति में बदलाव लाने की जरूरत है।
राष्ट्रीय वन नीति और अधिनियम: राष्ट्रीय वन नीति 2018 का मसौदा विचारों को यथार्थ रूप देने में विफल रहा है। इसके अलावा पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन की प्रक्रिया भी शुरू की है। इन दोनों का सही होना अति आवश्यक है। भारत को ऐसे वन विनियमों की जरूरत है जो वनों को बढ़ाने, उनकी देखभाल व रक्षा करने तथा उनका निरंतर उपयोग करने में लोगों की भूमिका और संभावना को पहचान सकें। इसके लिए वन विभाग को अपना साम्राज्यवादी नजरिया छोड़ना होगा तथा समुदाय द्वारा वनों की देखभाल करने में सहायक की भूमिका निभानी होगी।
राष्ट्रीय नदी पुनरोद्धार योजना: केवल गंगा ही प्रदूषित नहीं है, बल्कि पानी के लगातार दोहन और गंदे पानी को साफ किए बिना इसे नदियों में छोड़ने से सभी छोटी-बड़ी नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं। कावेरी से लेकर गोदावरी और सतलुज से लेकर यमुना तक, सभी नदियों को पुनरोद्धार योजना की जरूरत है। आइए हम वर्ष 2019 में राष्ट्रीय नदी पुनरोद्धार योजना का शुभारंभ करें।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: हमारे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) निष्प्रभावी और भ्रष्ट हैं तथा हर बीते वर्ष के साथ पुराने होते जा रहे हैं। उन्हें 21वीं सदी की प्रदूषण संबंधी चुनौतियों को विनियमित करने, निगरानी करने तथा लागू करने के मुताबिक नहीं बनाया गया है। हम आधुनिक पर्यावरण विनियामक प्राधिकरण के बिना इन चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते। अब वक्त आ गया है कि हम पीसीबी को नया रूप दें तथा प्रभावी निगरानी और प्रवर्तन के लिए उनकी क्षमता का निर्माण करें।