ग्लोबल वार्मिंग मौसम में सामान्य बदलावों के साथ मिलकर चरम तापमान और बारिश दोनों में बहुत तेज बदलावों की एक दशक लंबी अवधि पैदा कर सकता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं हुई तो अगले दो दशक में होगी बड़ी तबाही, दो तिहाई आबादी को झेलना होगा नुकसान

Dayanidhi

एक नए अध्ययन के अनुसार, यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में जबरदस्त तरीके से लगाम नहीं लगाई जाती है, तो दुनिया की लगभग तीन चौथाई आबादी अगले 20 सालों में चरम तापमान और भयंकर बारिश संबंधी तेज बदलावों का सामना कर सकती हैं।

रीडिंग विश्वविद्यालय द्वारा समर्थित, अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए शोध से पता चलता है कि यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती की जाती है, तो 20 फीसदी आबादी के चरम मौसम के खतरों का सामना करने के आसार हैं, यदि उचित कार्रवाई नहीं की गई तो यह आंकड़ा 70 फीसदी तक पहुंच सकता है।

नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र दिखाता है कि कैसे ग्लोबल वार्मिंग मौसम में सामान्य बदलावों के साथ मिलकर चरम तापमान और बारिश दोनों में बहुत तेज बदलावों की एक दशक लंबी अवधि पैदा कर सकता है।

कुछ अध्ययनों ने विभिन्न देशों पर चरम मौसम के प्रभाव का पता लगाया है। शोधकर्ता ने शोध में कहा, हम क्षेत्रीय बदलावों पर गौर कर रहे हैं, क्योंकि दुनिया के औसत की तुलना में लोगों और पारिस्थितिकी तंत्र के अनुभव के लिए उनकी प्रासंगिकता बढ़ जाती है। साथ ही आने वाले दशकों में एक या उससे अधिक चरम घटनाओं की दरों में पर्याप्त बदलावों का अनुभव करने वाले क्षेत्रों की पहचान करते हैं।

विषम परिस्थितियां

अध्ययन में बड़े जलवायु मॉडल सिमुलेशन का उपयोग यह दिखाने के लिए किया गया था कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बड़े हिस्से, जिसमें वर्तमान जनसंख्या का 70 फीसदी हिस्सा शामिल है, उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत अगले 20 सालों में तापमान और बारिश दोनों की चरम सीमाओं में बदलाव होने के आसार जताए गए हैं। उत्सर्जन में भारी कमी के साथ, यह संख्या 20 फीसदी या लगभग 1.5 अरब लोगों तक गिरने की उम्मीद है।

तेजी से होने वाले बदलावों से अभूतपूर्व परिस्थितियों और चरम घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है, जो वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभावों के अनुपातहीन हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए, लू गर्मी के तनाव और लोगों और पशुओं दोनों की अत्यधिक मृत्यु दर, पारिस्थितिकी तंत्र पर तनाव, कृषि उपज में कमी, बिजली संयंत्रों को ठंडा करने में कठिनाई और यातायात में रुकावट का कारण बन सकती हैं।

इसी तरह, बारिश की चरम सीमा बाढ़ और बस्तियों, बुनियादी ढांचे, फसलों और पारिस्थितिकी तंत्रों को नुकसान पहुंचा सकती है, कटाव को बढ़ा सकती है और पानी की गुणवत्ता को कम कर सकती है। इस प्रकार, समाज चरम सीमाओं के बदलावों की उच्च दरों के कारण ज्यादा प्रभावित होता है, खासकर जब एक साथ कई खतरे बढ़ जाते हैं।

सफाई के जोखिम

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, हमने यह भी पाया है कि वायु प्रदूषण की तेजी से कम करना, खासकर एशिया में, गर्म चरम स्थितियों में तेजी से वृद्धि की ओर ले जाती है और एशियाई ग्रीष्मकालीन मॉनसून को प्रभावित करती है।

जबकि वायु प्रदूषण पर लगाम लगाना स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, वायु प्रदूषण ने ग्लोबल वार्मिंग के कुछ प्रभावों को भी छिपा दिया है। अब प्रदूषित हवा और ग्लोबल वार्मिंग साथ मिलकर आने वाले दशकों में चरम स्थितियों में बहुत भारी बदलाव ला सकते हैं।

यह नया शोधपत्र तीव्र परिवर्तन पर आधारित है, शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि परिणामों का जलवायु के अनुकूल ढलने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

शोध के मुताबिक, सबसे अच्छी स्थिति में, तेजी से होने वाले बदलाव 1.5 अरब लोगों को प्रभावित करेंगे। इससे निपटने का एकमात्र तरीका अगले एक से दो दशकों में पहले से ही खतरनाक चरम घटनाओं की बहुत अधिक आशंका वाली स्थिति के लिए तैयार रहना है।