हिमालयी क्षेत्र में बढ़ रही जलवायु संबंधी चरम मौसमी घटनाएं जल विद्युत परियोजनाओं को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। क्लाइमेट रिस्क होराइजंस की ताजा रिपोर्ट “नेविगेटिंग क्लाइमेट रिलेटेड फाइनैंशियल रिस्क्स : असेसिंग द वल्नरबिलिटी ऑफ हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट्स इन उत्तराखंड” में चेतावनी दी गई है कि चरम मौसमी घटनाओं में जलविद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह नष्ट करने की क्षमता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, चमोली में 2021 और तीस्ता III में 2023 में इसके उदाहरण भी देखे गए हैं। जलवायु जनित घटनाओं ने इस दोनों परियोजनाओं को काफी पीछे धकेल दिया है और भारी आर्थिक क्षति पहुंचाई है। चमोली में कुछ अनुमानों में आपदा का वित्तीय प्रभाव करीब 1,625 करोड़ रुपए आंका गया है। हालांकि केवल मलबा हटाने में ही 3,400 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। चमोली की घटना में अनुमानित 1,74,58,547 क्यूबिक मीटर मलबा आया था जो 4,30,35,319 टन के बराबर है। अगर इस मलबे को नोएडा में बिल्डिंग गिराने के बाद हटाए गए मलबे को हटाने की दर से भी हटाया जाए तो 48,415 दिन यानी करीब 133 साल लगेंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक, जल विद्युत परियोजनाएं उच्च जोखिल वाले वाले क्षेत्रों में स्थापित हो रही हैं। राज्य के ये स्थान आने वाले वर्षों में भूकंपीय या जलवायु जनित आपदाओं की जद में आ सकते हैं। करीब 70 हजार करोड़ के निवेश वाली कम से कम ऐसी 15 परियोजनाएं उत्तराखंड के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड में 25 मेगावाट से अधिक वाली 81 बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं और 18 परियोजनाएं चालू हालत में हैं। चरम जलवायु से संबंधित खतरों ने इनके भविष्य पर अनिश्चितता पैदा कर दी है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि हिमालयी क्षेत्र की गतिशील और बदलती जलवायु परिस्थितियां के कारण जलविद्युत संरचनाओं से खड़े होने वाले खतरों पर बारीक नजर रखने की जरूरत है। पुराने जलवायु डेटा और उच्च जोखिम वाले अपस्ट्रीम क्षेत्रों में बस्तियों और संरचनाओं ने इन परियोजनाओं की संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है।
भविष्य के खतरे
उत्तरखंड आपदाओं के प्रति हमेशा संवेदनशील रहा है। रिपोर्ट में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की डिजास्टर रिस्क असेसमेंट रिपोर्ट 2019 के आधार पर भविष्य में भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन के खतरों से प्रभावित होने वाले इलाकों को बताया गया है।
राज्य की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने वाले हरिद्वार और ऋषिकेश को सर्वाधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में माना गया है। मंगलोर और हरिद्वार-रूड़की बेसिन पर इसका सबसे अधिक खतरा है। बाढ़ के सबसे बड़े जोखिम वाले क्षेत्रों के रूप में भी मंगलोर बेसिन है। इसके बाद पोंटा-विकासनगर जोखिम का स्थान है। भूस्खलन के जोखिम वाले बेसिनों में पिथौरागढ़-बागेश्वर बेसिन पहले स्थान पर है।
जल विद्युत परियोजनाओं के संदर्भ में उत्तराखंड के आठ प्रमुख नदी बेसिनों में जोशीमठ-श्रीनगर नदी बेसिन सबसे संवेदनशील है। टिहरी-उत्तरकाशी और पिथौरागढ़-बागेश्वर बेसिन की पहचान अति संवेदनशील के रूप में हुई है।
रिपोर्ट में जोखिमों को कम करने के लिए सुझाव दिया गया है कि उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में नई जलविद्युत परियोजनाएं लाने से बचना चाहिए। साथ ही मल्टी हैजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम को लागू करना चाहिए ताकि जलवायु जनित आपदाओं का सूचना समय पर दी जा सके और बचाव के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें। यह सुझाव भी दिया गया है कि अप्रत्याशित बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर फटने के खतरों के मद्देनजर जलविद्युत परियोजनाओं में क्लाइमेट रिजीलिएंट मानकों को लागू और सुदृढ़ किया जाए।