जलवायु

हर घंटे 1.9 मीट्रिक टन नाइट्रिक ऑक्साइड उत्सर्जित कर रही हैं तिब्बती पठार की 135 झीलें

Dayanidhi

गैसों को जलवायु पर प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है, नाइट्रस ऑक्साइड को कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के बाद तीसरी सबसे बड़ी ग्रीनहाउस गैस माना जाता है। नाइट्रिक ऑक्साइड मानवजनित गतिविधियों के कारण निकल सकती है, जैसे कि बिजली संयंत्र, वाहन, निर्माण उपकरण आदि, लेकिन यह झीलों से भी निकल सकती हैं।

आम तौर पर, मानव स्रोतों की तुलना में झीलों में नाइट्रिक ऑक्साइड को हवा की गुणवत्ता या जलवायु मॉडल में एक प्रमुख कारण नहीं माना गया है, लेकिन नए शोध ने तिब्बती पठार में मध्य, दक्षिण और पूर्वी एशिया के सबसे दूर की झीलों पर गौर किया है, तथा इस समझ को चुनौती दी है।

तिब्बती पठार में हजारों झीलें हैं और यह चीन के झील पर्यावरण का लगभग आधा हिस्सा है जो चीन, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान में दो अरब से अधिक लोगों को बहुमूल्य जल संसाधन प्रदान करता है। ये झीलें अलग-अलग क्षेत्रों में हैं जहां इनसे पानी बाहर नहीं बहता है, जिससे क्षारीय (पीएच मान 9 से 12) और खारापन वाला वातावरण बनता है।

चीन की पेकिंग विश्वविद्यालय के जलवायु और महासागर-वायुमंडल अध्ययन प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं और उनके सहयोगियों ने 1.9 मीट्रिक टन नाइट्रिक ऑक्साइड उत्सर्जन को रिकॉर्ड करने के लिए 50 वर्ग किमी से बड़ी 135 झीलों के उपग्रह से लिए गए आकड़ों का विश्लेषण किया है। हालांकि यह उत्सर्जन दुनिया के बड़े शहरों में से एक बीजिंग में हर घंटे निकलने वाले 7.8 मीट्रिक टन उत्सर्जन से अधिक नहीं है।

उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क शहर में हर घंटे तीन टन नाइट्रिक ऑक्साइड का उत्सर्जन, लंदन में हर घंटे 1.7 टन और पेरिस हर घंटे 0.3 टन उत्सर्जित करते हैं। यह फसल क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन से भी अधिक था। तिब्बती पठार के दक्षिण में झीलों के 20 किमी की दूरी के भीतर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर उनके निकटतम परिवेश की तुलना में 31.2 फीसदी अधिक था।

नाइट्रिक ऑक्साइड उत्सर्जित करने वाली शीर्ष दस झीलें सबसे अधिक शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि का अनुभव करने वाले क्षेत्रों से मेल खाती हैं, जिससे तिब्बती पठार में गर्मी बढ़ रही है। असाधारण रूप से, किंघाई झील में हर घंटे 0.24 टन उत्सर्जन हो रहा है, जो बहुत ज्यादा है, इसकी तुलना 450 मेगावाट क्षमता वाले कोयला आधारित बिजली संयंत्र द्वारा उत्पादित उत्सर्जन से की जा सकती है।

झीलों से नाइट्रिक ऑक्साइड के ऐसे असामान्य रूप से उच्च स्तर का कारण पठार पर ग्लेशियरों और पर्माफ्रॉस्ट के गर्म होने और पिघलने के साथ-साथ माइक्रोबियल प्रक्रियाओं के संयोग को माना गया है, हालांकि अन्य स्रोतों में बिजली और जलने जैसी चीजें भी शामिल हैं। ऐसी प्रक्रियाएं वायुमंडल में नाइट्रिक ऑक्साइड को नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में बदल देती हैं, विशेष रूप से क्षोभमंडल स्तर, जिसे उपग्रहों द्वारा मापा जाता है।

गर्मियों में झीलों का गर्म होना हर दशक में 0.40 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है, बर्फ और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के कारण पठार पर झीलों का आकार और बहुतायत बढ़ रही है। झीलों की समुद्र तल से ऊंचाई 4.5 किमी से 5 किमी तक है, जिससे ग्लेशियर और पर्माफ्रॉस्ट कटाव पर सबसे गंभीर प्रभाव पड़ने का खतरा है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड माप में मौसमी चक्रीयता में पाया गया कि गर्मियों में चरम के मुकाबले सर्दियों में दोगुने थे।

इन झीलों के भीतर, विशेष बैक्टीरिया अनॉक्सिक (कम ऑक्सीजन) वातावरण में पनपते हैं, जो प्राकृतिक स्रोतों, कृषि क्षेत्र से बहने वाले पानी और सीवेज से नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं, जिसे बाद में नाइट्राइट या नाइट्रीकरण और बाद में नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाती है। दूसरे उत्पाद के रूप में नाइट्रिक ऑक्साइड बनाता है।

इतनी बड़ी मात्रा में नाइट्रिक ऑक्साइड का बनना समस्याग्रस्त है क्योंकि यह ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकती है, जो जलवायु परिवर्तन को तेज करता है। जैसे-जैसे ओजोन परत और अधिक क्षतिग्रस्त हो जाती है, अधिक सौर विकिरण पृथ्वी की सतह तक प्रवेश कर सकता है, जिससे ग्रह गर्म हो सकता है। जब ग्रह गर्मी उत्सर्जित करता है, तो लगातार बढ़ती ग्रीनहाउस गैस परत इस गर्मी को रोक लेती है, इसलिए यह वापस अंतरिक्ष में जाने के बजाय, ग्रह को और अधिक गर्म करती है।

जबकि झीलों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को पहले मानवजनित स्रोतों की तुलना में बहुत कम आंका जाता था, यह रिपोर्ट बताती है कि इस नजरिए को बदलने की जरूरत है। शोधकर्ता ग्लोबल वार्मिंग के भविष्य के मॉडलिंग में दुनिया भर में झील और आंतरिक भागों के पानी में नाइट्रिक ऑक्साइड उत्सर्जन को शामिल करने की वकालत करते हैं ताकि हमें यह समझने में मदद मिल सके कि पृथ्वी की प्रणाली के सभी पहलू जलवायु परिवर्तन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं और उससे प्रभावित हो सकते हैं। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित किया गया है।