मध्य प्रदेश में पराली में आग की बढ़ती घटनाएं प्रदेश में धान के बढ़ते चलन की देन हैं। फोटो : विकास चौधरी 
वायु

मध्य प्रदेश में क्यों जल रही है सबसे अधिक पराली?

इस साल पंजाब से तीन गुणा अधिक पराली जलाने वाला राज्य बना मध्य प्रदेश

Bhagirath

सारांश

जहां एक तरफ पंजाब में पराली में आग की घटनाओं में भारी कमी आई, वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में इनके बढ़ने का सिलसिला जारी है

मध्य प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर पराली जलने का सीधा का अर्थ यह है कि यहां धान की खेती जोर पकड़ रही है और पराली के उचित प्रबंधन का अभाव है

अप्रत्याशित और चरम बारिश की घटनाएं जिन जिलों में अधिक हुईं हैं, वहां धान के प्रति झुकाव बहुत तेज हुआ है

उत्तर भारत के राज्यों में धान की पराली में आग लगाने का सिलसिला जारी है। इस साल मध्य प्रदेश में पराली के लिए बदनाम रहे पंजाब से करीब 3 गुणा अधिक पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं। नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोईकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) के डैशबोर्ड के अनुसार, 15 सितंबर से 26 नवंबर 2025 तक मध्य प्रदेश में पराली जलाने की कुल 14,708 घटनाएं हुईं जबकि पंजाब में 5,095 घटनाएं हुई हैं।

आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश के 47 जिलों में इस साल पराली जली हैं और इसके छह जिलों- श्योपुर, दतिया, होशंगाबाद, जबलपुर, ग्वालियर और सिवनी में 1,000 से अधिक पराली में आग की घटनाएं हुई हैं। ये जिले उत्तर भारत के छह राज्यों- पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में सबसे अधिक पराली में आग लगाने वाले जिले भी हैं। इनमें श्योपुर पहले स्थान पर है जहां सबसे अधिक 2,439 पराली में आग की घटनाएं दर्ज हुई हैं। पिछले वर्ष भी मध्य प्रदेश का यह जिला 2,508 ऐसी घटनाओं के साथ अव्वल था।

वहीं पंजाब के 22 जिलों में तरणतारण, संगरूर, फिरोजपुर, मुक्तसर, बठिंडा, मोगा और अमृतसर पराली में आग लगाने वाले प्रमुख जिले हैं, लेकिन पंजाब के किसी भी जिले में 1,000 से अधिक पराली की घटनाओं का आंकड़ा नहीं छुआ है। सर्वाधिक पराली वाले तरणतारण जिले में भी 696 पराली की घटनाएं दर्ज की गई हैं।  

धान का चलन

पंजाब और राजस्थान की बदलती तस्वीर का तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चलता है कि जहां एक तरफ पंजाब में पराली में आग की घटनाओं में भारी कमी आई, वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में इनके बढ़ने का सिलसिला जारी है।

डाउन टू अर्थ ने पिछले वर्ष दिसंबर में सर्वाधिक पराली में आग लगाने वाले मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले की यात्रा की थी और यह पता लगाने की कोशिश की थी कि आखिर क्यों श्योपुर और मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में पराली में आग की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।

इस दौरान पता चला कि श्योपुर में इतने बड़े पैमाने पर पराली जलने का सीधा का अर्थ यह है कि यहां धान की खेती जोर पकड़ रही है और पराली के उचित प्रबंधन का अभाव है। कराहल ब्लॉक के सिलपुरी गांव में रहने वाले 50 वर्षीय हरिओम यादव ने बताया कि उनके गांव में धान की तरफ स्थानांतरण बहुत तेजी से हुई है। सिलपुरी में पांच से छह साल पहले तक गांव में खरीफ की मुख्य फसल सोयाबीन और उड़द थी जो अब केवल 30 प्रतिशत खेतों में ही उगाई जा रही है। शेष 70 प्रतिशत रकबा धान के अधीन है।

2018-19 में जिले के कुल 1 लाख 65 हजार हेक्टेयर रकबे में धान का रकबा 43,127 हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में 65,610 हेक्टेयर पहुंच गया। बडौदा ब्लॉक में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक एसएल गुर्जर ने डाउन टू अर्थ को बताया, “2024 में यह रकबा करीब 85,000 हेक्टेयर पहुंच गया है। 2025 में इसके एक लाख हेक्टेयर के करीब पहुंचने का अनुमान है।” वहीं दूसरी तरफ सोयाबीन का रकबा 2018-19 में 20,865 हेक्टेयर के मुकाबले 2022-23 में 17,789 पहुंच गया।

श्योपुर मंडी समिति के आंकड़े कहते हैं कि 2018-19 में धान की आवक 2,514 क्विंटल थी जो 2023-24 में बढ़कर 12,40,225 क्विंटल तक पहुंच गई। जबकि इस अवधि में सोयाबीन की आवक 95,198 क्विंटल से घटकर 7,197 क्विंटल तक पहुंच गई है। साथ ही खरीफ की एक अन्य अहम फसल उड़द की आवक इस अवधि में 43,669 क्विंटल से घटकर 2,148 क्विंटल पर सिमट गई है। मंडी में इस अवधि में ज्वार की आवक भी 2,078 क्विंटल से घटकर 862 क्विंटल और तिल की आवक 10,296 क्विंटल से कम होकर 9,337 क्विंटल पर पहुंच गई है।

पानी का उपलब्धता

श्योपुर के किसानों की धान के प्रति झुकाव की मुख्य वजह पानी की उपलब्धता है। गुर्जर कहते हैं कि जिले में मॉनसून की अच्छी बारिश हो रही है। हालिया कुछ वर्षों में यह सामान्य से 100 प्रतिशत अधिक तक दर्ज की गई है। मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़े भी बताते हैं कि 2025 में श्योपुर में सामान्य से 116 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। इसी तरह 2024 के मॉनसून सीजन में श्योपुर में कुल 1,323 एमएम बारिश हुई जो सामान्य 666 एमएम बारिश से 99 प्रतिशत अधिक है। 2024 में मध्य प्रदेश में किसी भी जिले में औसत के मुकाबले सबसे अधिक बारिश श्योपुर में हुई है। 2023 में सामान्य से दो प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। इससे पहले 2022 में 1,000 एमएम से अधिक और 2021 में भी जिले में सामान्य से 100 प्रतिशत अधिक मॉनसूनी बारिश दर्ज की गई।

जानकार बताते हैं कि बारिश जहां एक और अधिक हो रही है, वहीं दूसरी ओर कम दिनों में ज्यादा बारिश की घटनाएं भी धान के बढ़ने की वजह है। अप्रत्याशित और चरम बारिश की घटनाएं जिन जिलों में अधिक हुईं हैं, वहां धान के प्रति झुकाव बहुत तेज हुआ है। किसानों के अनुसार, इस प्रकार की बारिश सोयाबीन और उड़द के अनुकूल नहीं है। इस वजह से किसान पारंपरिक फसलों के स्थान पर धान को प्राथमिकता दे रहे हैं। गुर्जर बताते हैं, “अधिक बारिश से पिछले चार-पांच वर्षों में सोयाबीन बुरी तरह पिट रहा है। वह किसानों को कुछ देकर नहीं जा रहा है और करीब 60 प्रतिशत उड़द भी खराब हो रही है। लाभ के मामले में इस वक्त धान का मुकाबला कोई फसल नहीं कर पा रही है।”

अन्य जिले भी श्योपुर की राह पर

श्योपुर की तरह ही मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में धान के रकबे में बढ़ोतरी हुई है और सोयाबीन व उदड़ के रकबे में कमी दर्ज की गई है। राज्य के किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के आंकड़ों मुताबिक, 2019 में राज्य में धान का रकबा 28 लाख हेक्टेयर, उड़द का रकबा 24 लाख हेक्टेयर और सोयाबीन का रकबा करीब 55 लाख हेक्टेयर था। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के क्रॉप डिवीजन के ताजा आंकड़ों की मानें तो साल 2024 राज्य में धान का रकबा 36 लाख हेक्टेयर, उड़द का रकबा 9.8 लाख हेक्टेयर और सोयाबीन का रकबा 53.8 लाख हेक्टेयर हो गया। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, पांच वर्षों (2018-19 से 2022-23) में मध्य प्रदेश के 52 जिलों में से 39 जिलों में धान का रकबा बढ़ा है। जबकि 12 जिलों में इसमें कमी दर्ज की गई है। कुछ जिलों में रकबे में बढ़ोतरी दो से तीन गुना तक हुई है। वहीं राज्य के 20 जिलों में सोयाबीन का रकबा कम हुआ है। जिन जिलों में सोयाबीन का रकबा बढ़ा है, वहां बढ़त धान के मुकाबले बहुत सीमित है।

मध्य प्रदेश के श्योपुर के साथ-साथ जिन जिलों का झुकाव धान के प्रति हुआ है, वहां पराली में आग की घटनाएं रिकॉर्ड की जा रही हैं। श्योपुर के एक किसान के अनुसार, बिना पराली में आग लगाए खेती मुश्किल है। यहां की मिट्टी सख्त है, इसलिए उन्हें जल्दी गेहूं लगाना होता है। धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच मुश्किल से 10 दिन मिलते हैं। ऐसी स्थिति में पराली में आग लगाना किसानों की मजबूरी है।

श्योपुर के पड़ोसी जिले शिवपुरी में जाकनौंद गांव में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव मध्य प्रदेश में धान के बढ़ते चलन को खतरे की घंटी के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि यह प्रवृत्ति जारी रही तो आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश में भी पंजाब की तरह भूजल और प्रदूषण का संकट गहरा सकता है।