भारत में वायु प्रदूषण का असर गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों पर अधिक होता है।
स्वच्छ ईंधन की कमी और पारंपरिक चूल्हों का उपयोग स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
बुजुर्गों और बच्चों में प्रदूषण से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है
जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की मांग और खर्च बढ़ता है।
स्वच्छ हवा हर पीढ़ी का अधिकार है। हमें ऐसे कदम उठाने चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी साफ हवा मिल सके। प्रदूषण के बारे में अब तक यह पारंपरिक धारणा कायम रही है कि वायु प्रदूषण का असर हर किसी पर एक जैसा होता है। लेकिन, अब समझ में आया है कि ऐसा नहीं है। समय के साथ और अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण विकसित हुए हैं। अब यह जांचने के लिए नए तरीके अपनाए जा रहे हैं कि कैसे अलग-अलग उम्र, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, पोषण स्तर और अन्य कारकों के आधार पर विभिन्न समूह वायु प्रदूषण से अलग-अलग रूप में प्रभावित होते हैं। ये कारक उनकी संवेदनशीलता और हाशिए पर होने की स्थिति को तय करते हैं।
कई रिसर्च में यह साफ हो चुका है कि नवजात बच्चों की मौत, खासकर जीवन के पहले महीने में, श्वासनली के निचले हिस्से में संक्रमण की वजह से होती है। कम वजन के बच्चे और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे भी वायु प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होते हैं (इसका जिक्र पिछले अध्यायों में है)। अब यह भी देखा गया है कि गर्भ में पल रहे बच्चों तक भी प्रदूषित हवा के जहरीले कण पहुंच जाते हैं, क्योंकि वे आसानी से मां के शरीर से गर्भनाल के जरिए अंदर जा सकते हैं। बच्चों के फेफड़े और प्रतिरक्षा तंत्र यानी उसकी बीमारियों से लड़ने की ताकत अभी पूरी तरह विकसित नहीं होती, इसलिए प्रदूषण के संपर्क से उन्हें होने वाले खतरे भी ज्यादा होते हैं।
देश-दुनिया में हो रहे अध्ययनों से लगातार इस बात के सबूत मिल रहे हैं, जिनसे पता चलता है कि कमजोर समूहों पर वायु प्रदूषण का असर सबसे ज्यादा पड़ता है। कमजोर समूहों के लिए कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। वायु प्रदूषण से संबंधित जोखिमों के प्रति भेद्यता और संवेदनशीलता को परिभाषित करने के लिए कई विशेषताओं पर विचार किया जाता है। इनमें उम्र, लिंग, सामाजिक-आर्थिक असमानताएं, पोषण की स्थिति, व्यावसायिक संपर्क और भौगोलिक स्थान शामिल हैं, जो समुदायों की प्रदूषण स्रोतों से निकटता निर्धारित करते हैं। अब यह बात साफ हो चुकी है कि सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों में बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं (खासकर गर्भवती महिलाएं) और सामाजिक रूप से वंचित समुदाय वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। हमें इन अलग-अलग जोखिमों की प्रकृति को ठीक से समझने की जरूरत है, ताकि सही समाधान निकाले जा सकें।
भारत में महामारी विज्ञान से संबंधित कई अध्ययन उपलब्ध हैं, जिनसे गरीब और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं में वायु प्रदूषण के प्रति खतरों का पता चलता है। इन अध्ययनों से यह साफ हो जाता है कि गरीबी और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन तक उनकी पहुंच न होने के कारण वे प्रदूषण की मार झेल रही हैं। भारत में लिंग के आधार पर भी वायु प्रदूषण का असर अलग-अलग दिखाई देता है। जब महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति खराब होती है, तो उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पातीं, जिससे उनकी मौत का खतरा बढ़ जाता है और मृत्यु दर और भी बदतर हो जाती है।
इतना ही नहीं, खासकर शहरी क्षेत्रों में निम्न आय वर्ग की महिलाएं खाना पकाने और गर्म करने के लिए बहुत खराब वेंटिलेशन वाले पारंपरिक चूल्हों का उपयोग करती हैं, जिनमें हवा के आने-जाने की कोई व्यवस्था नहीं होती है। ये चूल्हे जैव-ईंधन लकड़ी, गोबर, कोयला (बायोमास) से जलते हैं और कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन जैसी जहरीली गैसें व पार्टिकुलेट मैटर छोड़ते हैं, जो पीएम 2.5 से होने वाले कुल बाहरी वायु प्रदूषण का लगभग 24 प्रतिशत हिस्सा हैं। ये महिलाएं घर के अंदर लगातार इस वायु प्रदूषण के संपर्क में रहती हैं। ऊपर से उनका पोषण पहले से ही खराब होता है, जिससे उनके फेफड़े, दिल और प्रजनन तंत्र पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
अब व्यापक तौर पर यह समझ बन चुकी है कि बुजुर्गों पर भी वायु प्रदूषण का असर ज्यादा होता है। उम्र बढ़ने के साथ उनका शरीर पहले से कई बीमारियां जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल की बीमारियां और धीमा मेटाबॉलिज्म जैसी समस्याएं झेल रहा होता है। ऐसे में ज्यादा उम्र और वायु प्रदूषण मिलकर दिल का दौरा, स्ट्रोक, फेफड़ों के रोग (सीओपीडी, अस्थमा) और डायबिटीज आदि का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
बुजुर्गों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) भी कमजोर हो जाती है। उन्हें न्यूरोलॉजिकल बीमारियों जैसे पार्किंसन और अल्जाइमर का भी खतरा बढ़ जाता है। साथ ही उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। इन वजहों से उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत पड़ती है, अचानक में भर्ती कराना पड़ सकता है और दवाओं का खर्च भी बढ़ जाता है। बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण का असर इसलिए भी ज्यादा होता है, क्योंकि वे पहले ही लंबे समय से, बल्कि जिंदगी भर इसकी मार झेलते रहे हैं। इतने लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने का सेहत पर घातक असर पड़ता है। दुनिया भर के आंकड़े दिखाते हैं कि जिन देशों में आबादी ज्यादा और बुजुर्गों की संख्या अधिक है, वहां वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियां और मौतें भी ज्यादा होती हैं। भारत भी अब जनसांख्यिकीय परिवर्तन की उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। यहां की विशाल जनसंख्या, बुजुर्गों की बड़ी आबादी और सामाजिक-आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए लोग, ये तीनों चीजें मिलकर खतरे को और गंभीर बना देती हैं।
स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के असर का बोझ गरीबों पर सबसे ज्यादा पड़ता है। इसकी वजह है उनकी कमजोर सेहत, कुपोषण, बीमारी से उबरने की कम ताकत और जहरीली हवा के ज्यादा संपर्क में रहना। हालांकि अब कुछ शोध सामने आने लगे हैं, जो दिखाते हैं कि कम आमदनी वाले वर्ग पर वायु प्रदूषण का असर गंभीर होता है, लेकिन अभी भी इस पहलू पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है और न ही इसे नीतियों में पूरी तरह शामिल किया गया है।
भारत में इस विषय पर कुछ गिने-चुने अध्ययन हुए हैं, लेकिन जो भी जानकारी उपलब्ध है, वह यह साफ दिखाती है कि कम आमदनी वाले लोग वायु प्रदूषण के मामले में विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं और इससे उनके स्वास्थ्य में बहुत असमानताएं आती है। 2021 के येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में अप्रत्यक्ष प्रदूषण स्रोतों से होने वाली मौत का खतरा गरीबों पर बहुत ज्यादा होता है। यानी, अगर उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए, तो बाहरी हवा के प्रदूषण से होने वाले नुकसान में गरीबों और अमीरों के बीच की असमानता कम हो सकती है। हालांकि, गरीब परिवारों को घर के अंदर के वायु प्रदूषण से मौत का खतरा 10 गुना ज्यादा होता है। इसलिए भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली असमय मौतों को कम करने का सबसे असरदार तरीका खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन, जैसे एलपीजी का इस्तेमाल करना है।
2023 में नेचर सस्टेनेबिलिटी में एक वैश्विक अध्ययन “ग्लोबल एयर पॉल्यूशन एक्सपोजर एंड पॉवर्टी” प्रकाशित हुआ। इस अध्ययन में पाया गया कि दुनिया के करीब 71.60 करोड़ सबसे कम आय वाले लोग (जो रोजाना 1.90 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करते हैं) ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण का असुरक्षित स्तर पर है। प्रदूषण का स्तर मध्यम-आय वाले देशों में ज्यादा पाया गया है, जहां अभी भी ऐसे पुराने और गंदे उद्योग व तकनीकें इस्तेमाल में हैं, जिनसे प्रदूषण फैलता है।
यह अध्ययन दिखाता है कि भारत में ज्यादा आय वाले परिवार बाहरी वायु प्रदूषण में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं, इसकी वजह है उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीजें, परिवहन और उत्पादन से निकलने वाले धुएं और गैसें। लेकिन इसके बावजूद, कम आय वाले परिवारों को असमय मौत का खतरा उच्च आय वालों की तुलना में 9 गुना ज्यादा होता है। 2022 के विश्व बैंक के एक अध्ययन में भी कहा गया है कि खतरनाक स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले हर 10 में से एक व्यक्ति अत्यधिक गरीबी में रहता है। वायु प्रदूषण का यह स्तर अमीर परिवारों की तुलना में भीषण गरीबी में रहने वालों के लिए स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर जोखिमों को बढ़ा देता है। इतना ही नहीं, गरीबी और स्वास्थ्य देखभाल तक पर्याप्त पहुंच न होने से वायु प्रदूषण का बुरा असर और भी बढ़ जाता है।
कुछ अध्ययनों में चेतावनी दी गई है कि गरीबी और हाशिए पर रहने वाले लोगों में कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। इसकी वजह वायु प्रदूषण है और यह गंभीर चिंता का विषय है। दरअसल, किसी भी जहरीले असर का आखिरी पड़ाव कैंसर हो सकता है। मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर के “प्रिवेंटिव ऑन्कोलॉजी विभाग” ने करीब 20 साल पहले एक शुरुआती सर्वे किया था।
इसमें झुग्गियों में कैंसर के मामले ज्यादा पाए गए और इसके पीछे की एक बड़ी वजह वायु प्रदूषण को माना गया था। इस बात के गंभीर मायने गरीबों के लिए और भी डरावने हैं। अमेरिका में हार्वर्ड सेंटर फॉर कैंसर प्रिवेंशन ने भी शुरुआती वर्षों में पाया था कि गरीबों में फेफड़ों के कैंसर के मामले ज्यादा होते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी ने भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि गरीबी में रह रहे लोगों को कैंसर का खतरा ज्यादा होता है और इसके साथ कई गंभीर मुद्दे जुड़े होते हैं। इनमें बीमारी से जुड़ी तकलीफें, इलाज का भारी खर्च, स्वास्थ्य सुविधाओं व बीमा का अभाव और जागरूकता की कमी जैसे मुद्दे शामिल थे।