सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो अपार्टमेंट के निर्माण की अनुमति देने के लिए मानदंड निर्धारित करने पर विचार-विमर्श कर रहा है। 20 जनवरी, 2025 को अदालत ने कहा है कि बिना उचित पार्किंग स्पेस के किसी भी अपार्टमेंट को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इलेक्ट्रिक कारों को और अधिक किफायती बनाने की उसकी योजनाओं के बारे में भी पूछा है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने इस मामले में सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच), आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (एमओएचयूए), भारी उद्योग मंत्रालय (एमएचआई), पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी), और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) के साथ-साथ कई सरकारी अधिकारियों से जवाब देने को कहा है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के शहरी नियोजन और विकास प्राधिकरणों से भी जवाब मांगा है। इसमें दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) जैसी संस्थाएं शामिल हैं। अधिकारियों को अनुपालन के लिए समयसीमा बताने को कहा गया है। इस मामले में अगली सुनवाई तीन फरवरी, 2025 को होगी।
मुद्दा दिल्ली एनसीआर में वाहनों के बढ़ते प्रदूषण और बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की आवश्यकता से जुड़ा है।
एनजीटी ने अरावली को प्रदूषित करने वाले जहरीले स्क्रैप भट्टों पर शुरू की कार्रवाई
22 जनवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरियाणा और राजस्थान के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से उनका जवाब मांगा है। मामला अरावली में चल रहे स्क्रैप भट्टों से जुड़ा है।
इसके साथ ही जिन अन्य लोगों से जवाब मांगा गया है, उनमें जयपुर और चंडीगढ़ में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भी शामिल हैं। इन सभी अधिकारियों से अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करना करने को कहा गया है।
इस मामले में अगली सुनवाई पांच मई, 2025 को होनी है।
गौरतलब है कि 28 दिसंबर, 2024 को प्रकाशित एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है।
खबर में अरावली क्षेत्र, विशेष तौर पर राजस्थान-हरियाणा सीमा पर ताउरू के निकट, अवैध स्क्रैप भट्टों के कारण पैदा हो रही पर्यावरण से जुड़ी गंभीर समस्याओं को उजागर किया गया है।
इस खबर के मुताबिक एक दर्जन से अधिक पोर्टेबल भट्टे बिना किसी अनुमति के खुलेआम चल रहे हैं। वे वाहनों के स्क्रैप, मुख्य रूप से रबर के टायरों को जलाकर चपटी चादरें बनाते हैं, जिनका इस्तेमाल ईंट भट्टे के मालिक ईंधन के रूप में करते हैं।
लेख में कहा गया है कि ये भट्टे मिट्टी और पानी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहे हैं, जिससे मवेशियों की मौत हो रही है। इसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। यह भी आरोप है कि हरियाणा और राजस्थान एक-दूसरे पर दोष मढ़ते रहते हैं, जबकि यह अभी भी चल रहा है और समस्या बनी हुई है।