दिल्ली की हवा में भारी धातुओं की मौजूदगी के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा दायर रिपोर्ट पर असंतोष जताया है। इसके साथ ही 6 फरवरी, 2025 को अदालत ने सीपीसीबी से कहा है कि वह नया जवाब दाखिल करे।
अदालत का कहना है कि रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है कि क्रोमियम, तांबा, जस्ता और मोलिब्डेनम जैसी भारी धातुओं की निगरानी की गई थी या नहीं, और न ही यह बताया गया है कि उनकी निगरानी क्यों नहीं की गई। इन भारी धातुओं का जिक्र टाइम्स ऑफ इंडिया में 29 सितंबर, 2024 को प्रकाशित खबर में भी किया गया है।
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के जवाब में भी ऐसी ही स्थिति सामने आई है। वहीं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) ने इस मुद्दे की समीक्षा करने और जवाब देने के लिए अदालत से चार सप्ताह का समय मांगा है।
इस मामले में अगली सुनवाई 15 मई, 2025 को होगी।
मूल आवेदन अखबार में प्रकाशित एक खबर के आधार पर दायर किया गया है। इस खबर में आईआईटी दिल्ली द्वारा किए एक अध्ययन का हवाला दिया गया है।
इस अध्ययन में दिल्ली की हवा में सीसा, कैडमियम और निकल जैसी भारी धातुओं के खतरनाक स्तर का पता चला है। अध्ययन से यह भी खुलासा किया गया है कि पूर्वी दिल्ली में, पीएम 2.5 में पाए जाने वाली मुख्य भारी धातुएं क्रोमियम, तांबा, जस्ता, मोलिब्डेनम और सीसा थी।
एसटीपी ट्रीटेड जल का पूरी तरह हो उपयोग, एनजीटी ने नोएडा प्राधिकरण को दिया निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने नोएडा प्राधिकरण को आदेश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से उपचारित पानी का शत-प्रतिशत उपयोग किया जाए।
अदालत ने प्राधिकरण से उपचारित पानी के पूर्ण उपयोग के लिए समयसीमा के साथ एक विस्तृत योजना भी प्रस्तुत करने को कहा है। 6 फरवरी, 2025 को यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की बेंच ने दिया है।
इस मामले में अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया है।
मामले में अदालत इस दावे की जांच कर रही है कि क्या न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा), एसटीपी से उपचारित जल का सिंचाई या अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के बजाय उसे नाले में डाल रहा है।
15 अक्टूबर 2024 को दाखिल जवाब में नोएडा प्राधिकरण ने जानकारी दी है कि वर्तमान में नोएडा एसटीपी से हर दिन 26 करोड़ लीटर उपचारित जल उत्पन्न हो रहा है, लेकिन उसमें से केवल 6.8 करोड़ लीटर का ही उपयोग किया जा रहा है, जबकि मौजूदा समय में 19.2 करोड़ लीटर जल नालियों में बहाया जा रहा है।
अदालत को यह भी बताया गया है कि एसटीपी को जोड़ने के लिए पाइपलाइन बिछाने का काम अंतिम चरण में है, और उसके दिसंबर 2024 तक पूरा हो जाने की सम्भावना है।
हालांकि, नोएडा की ओर से पेश वकील ने अदालत को जानकारी दी है कि काम अभी पूरा नहीं हुआ है। हालांकि वकील यह नहीं बता पाए कि पाइपलाइन का कितना काम पूरा हो चुका है और कितना अभी बाकी है।
अदालत का कहना है कि एसटीपी द्वारा उपचार किए जल का अपना महत्व है, क्योंकि इसका उपयोग विभिन्न परियोजनाओं में किया जा सकता है। साथ ही इससे प्राकृतिक रूप से मौजूद जल को बचाने में मदद मिल सकती है।